महात्मा गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ को आखिरकार उसका कुलपति बनने के लिए एक गांधीवादी मिल ही गया। ये हैं गांधीजी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई।
एक बात साफ़ है कि इस किस्से में बंगाल के गर्वनर गोपालकृष्ण गांधी जैसा कोई चक्कर नहीं पडेगा। गोपालकृष्ण गांधीजी के पौत्र हैं। उन्होंने कुलपति बनना स्वीकार कर लिया था, पर उसके बाद उन्हें मालूम पडा था कि वो तो गुजरात विद्यापीठ के कुलपति बनने के लायक गांधीवादी नहीं हैं।
देसाई तो गांधीकथा कहते हैं। शहर शहर जाते हैं और कथाकारों की तरह गांधी कथा कहते हैं। उन्होंने गांधी को आम आदमी तक लोककथा शैली से पहुंचाने का बीडा उठाया है। वो काफ़ी सफ़ल हो रहे हैं। उनकी कथाएं बुध्धिजीवियों और अन्य को काफ़ी आकर्षित कर रही हैं। वे २००२ के दंगों के बाद से यह गांधी कथा कर रहे हैं।
१९२४ में जन्में नारायण देसाई गांधीआश्रम और वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी और उनके साथियों के साथ ही बडे हुए हैं। दक्षिण गुजरात के वेडछी में अपना कार्यक्षेत्र शुरु करने वाले नारायण देसाई ने विनोबा भावे के साथ भी काफ़ी काम किया। उन्हें उनके पिता महादेव देसाई और महात्मा गांधी की जीवनी लिखने के लिये साहित्य अकादमी का अवार्ड भी मिला है।
विध्यापीठ मे हर रोज सभी को प्रार्थना मे भाग लेना और चर्खा कातना अनिवार्य है। इसके बावजूद यह एक हकीकत है कि गांधी के मूल्य इन छात्रो मे नही उतर रहे हैं । आशा है कि नारायण देसाई की रामकथा विध्यापीठ के छात्रों को गांधी के मार्ग पर चलायेगी।
एक बात साफ़ है कि इस किस्से में बंगाल के गर्वनर गोपालकृष्ण गांधी जैसा कोई चक्कर नहीं पडेगा। गोपालकृष्ण गांधीजी के पौत्र हैं। उन्होंने कुलपति बनना स्वीकार कर लिया था, पर उसके बाद उन्हें मालूम पडा था कि वो तो गुजरात विद्यापीठ के कुलपति बनने के लायक गांधीवादी नहीं हैं।
देसाई तो गांधीकथा कहते हैं। शहर शहर जाते हैं और कथाकारों की तरह गांधी कथा कहते हैं। उन्होंने गांधी को आम आदमी तक लोककथा शैली से पहुंचाने का बीडा उठाया है। वो काफ़ी सफ़ल हो रहे हैं। उनकी कथाएं बुध्धिजीवियों और अन्य को काफ़ी आकर्षित कर रही हैं। वे २००२ के दंगों के बाद से यह गांधी कथा कर रहे हैं।
१९२४ में जन्में नारायण देसाई गांधीआश्रम और वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी और उनके साथियों के साथ ही बडे हुए हैं। दक्षिण गुजरात के वेडछी में अपना कार्यक्षेत्र शुरु करने वाले नारायण देसाई ने विनोबा भावे के साथ भी काफ़ी काम किया। उन्हें उनके पिता महादेव देसाई और महात्मा गांधी की जीवनी लिखने के लिये साहित्य अकादमी का अवार्ड भी मिला है।
विध्यापीठ मे हर रोज सभी को प्रार्थना मे भाग लेना और चर्खा कातना अनिवार्य है। इसके बावजूद यह एक हकीकत है कि गांधी के मूल्य इन छात्रो मे नही उतर रहे हैं । आशा है कि नारायण देसाई की रामकथा विध्यापीठ के छात्रों को गांधी के मार्ग पर चलायेगी।
6 comments:
चलिए बधाई हो!!
सुना है नारायणभाई की बापूकथा कमाल की है. पहले लगता था कि मठी गांधीवादियों की तरह यह भी प्रसिद्धि पाने का कोई प्रयास है लेकिन एक-दो ऐसे लोगों ने बापू कथा की प्रशंसा की जो मेरे लिए आदर्श का स्थान रखते हैं.
कभी मौका मिला तो हम भी सुनेंगे बापू कथा.
नारायण देसाई को 'अग्निकुण्डमा खिलेलू गुलाब'(महादेव देसाई की जीवनी) के लिए साहित्य अकादमी तथा 'मारू जीवन एज मारी वाणी'(चार खण्डों में गाँधीजी की जीवनी) के लिए ज्ञानपीठ का 'मूर्तिदेवी पुरस्कार मिला है।गुजरात नरसंहार के बाद उन्हें लगा कि इसके लिए मुझे खुद को भी जिम्मेदार मानना चाहिए ,चूँकि गाँधी के सूबे के लोगों तक उनके सन्देश के न पहुँचने का यह परिणाम है।किताब आम जन तक नहीं पहुँचेगी,कथा पहुँचेगी इसलिए 'गाँधी-कथा' शुरु हुई और सतत जारी है।पहले सिर्फ गुजरात में करने का संकल्प था,अब अन्य राज्यों में भी हो रही है।
नारायण देसाई के बारे में देखी जा सकती है ।
शुक्रिया जानकारी देने के लिए। नारायण देसाई की कथाओं को भी ब्लाग पर ले आएं तो बेहतर होता। जो सुन नहीं सके हैं वो पढ़ कर आनंद ले सकेंगे।
चलीये हमें भी 11 जुलाई से 15 जुलाई तक इस कथा सूनने का अवसर मिलेगा। बहेतरीन पोस्ट। आभार
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