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Thursday, July 5, 2007

जब कोई शिकायत न सुने...

RTI यानि कि सूचना अधिकार। इस कानून ने आम आदमी के अधिकारों में क्रांति ला दी है। अब हम हमारी जानकारी पा कर ही रहते हैं। अगर अधिकारी जानकारी न दे तो उसकी खाट खड़ी हो जायेगी, हो रही है।

पर जानकारी का क्या फ़ायदा? मतलब तो काम होने से है। सरकार ने उसके विभिन्न कार्यालयों के लिये सिटीजन चार्टर बना रखे हैं। ये बतलातें हैं कि संस्था क्या करती है। यह यह भी बतलाते है कि कौन क्या काम करता है।

पर इससे अपना काम हो जाये यह जरुरी तो नहीं है। जन्म मृत्यु रजिस्ट्रेशन कार्यालय सूचना अधिकार के तहत यह तो बतलायेगा कि अर्जी कहां है। सिटीजन चार्टर यह बतायेगा कि कौन अधिकारी अर्जी की कौनसी चटनी बनायेगा।

पर मुझे यह सर्टिफ़िकेट मिले इसकी गारंटी क्या? निश्चित समय में मिले इसका कोई प्रावधान नही। जानकारी लेने मात्र से क्या होगा? हाल ही में संसद की एक स्थायी समिति जब दौरे पर निकली तब उसे ऎसे बहुत से किस्से जानने को मिले। लोगो ने शिकायत तो की है पर अधिकारी अपनी पूरी क्रिएटीविटी से उनकी फ़ाईल को टल्ले चढाते रहते है।

गुजरात के दौरे पर आई इस समिति के अध्यक्ष सुदर्सन का कहना है कि अब जन फ़रियाद के निश्चित समय पर निकाल के लिये कानून बनना चाहिये। पर उनकी समिति केवल सिफ़ारिश ही कर सकती है। कानून बनाना सरकार के हाथ में है। समिति जल्द ही उसकी सिफ़ारिश करेगी।

भैये भगवान करे सरकार जल्द ही आपकी राय मान कानून बना दे। करोडो़ को राहत होगी। भगवान तक हम इसलिये पहुंचे कि हमारे हिन्दुस्तान को भगवान ही तो चला रहा है।

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