लालकृष्ण आडवाणी के बाद उनके शिष्य गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन्ना विवाद में फ़ंस रहे हैं। इसके केन्द्र में है राज्य सरकार के पाक्षिक गुजरात में जिन्ना की प्रशंसा करता हुआ लेख- जिन्ना का खास दोस्त हिन्दू था।
यह लेख जून १६ के अंक में छपा था। और यदि सरकार के दावे पर विश्वास करें तो गुजरात का सरकुलेशन दो लाख से अधिक है। यह इस पाक्षिक में छपता है। यह कहता है कि गुजरात यानि कि सरकार का नहीं, साडे पांच करोड गुजरातियों का "गुजरात" है। पर यह बात अलग है कि यह विवाद इस समाचार के एक अंग्रेजी अखबार मे ६ जुलाई के छपने के बाद हुआ । यह अखबार दो लाख नही बिकता।
इस लेख में कहा गया है कि हिंदू नेताओं ने जिन्ना से संबंध काट दिए थे, इसलिए उससे किसी भी प्रकार के संवाद के रास्ते बंद हो गये। जिन्ना इससे बहुत ही व्यथित और कटु हो गये।
लेखक गुणवंत शाह ने जिन्ना के एक करीबी "दोस्त" कानजी द्वारकादास का उल्लेख करते हुए कहा है कि जिन्ना के आत्म सम्मान को ठेस पहुंची थी और इसलिए वे कटु हो गये और उनके आसपास अविश्वास का वातावरण हो गया।
विहिप नेता प्रवीण तोगडिया ने तो जिस दिन इस लेख की रिपोर्ट एक अंग्रेजी अखबार में छपी उसी दिन उसकी भर्तत्सना की थी। मौका नहीं चूकते हुए विपक्ष के नेता ने भी इस लेख के लिए मोदी पर बंदूके तानी है।
पाक्षिक के एक्जीक्युटिव एडीटर सुघीर रावल का इस विषय में बहुत औपचारिक जवाब है कि ये लेखक के अपने विचार हैं। क्या यह इतना आसान है? क्या किसी कांग्रेसी नेता या आम आदमी द्वारा मोदी के विरुद्ध लिखे गए लेख पर भी क्या उनका यही रवैया होगा?
देखे इस चुनावी वर्ष मे किसे क्या फ़ायदा होता है।
यह लेख जून १६ के अंक में छपा था। और यदि सरकार के दावे पर विश्वास करें तो गुजरात का सरकुलेशन दो लाख से अधिक है। यह इस पाक्षिक में छपता है। यह कहता है कि गुजरात यानि कि सरकार का नहीं, साडे पांच करोड गुजरातियों का "गुजरात" है। पर यह बात अलग है कि यह विवाद इस समाचार के एक अंग्रेजी अखबार मे ६ जुलाई के छपने के बाद हुआ । यह अखबार दो लाख नही बिकता।
इस लेख में कहा गया है कि हिंदू नेताओं ने जिन्ना से संबंध काट दिए थे, इसलिए उससे किसी भी प्रकार के संवाद के रास्ते बंद हो गये। जिन्ना इससे बहुत ही व्यथित और कटु हो गये।
लेखक गुणवंत शाह ने जिन्ना के एक करीबी "दोस्त" कानजी द्वारकादास का उल्लेख करते हुए कहा है कि जिन्ना के आत्म सम्मान को ठेस पहुंची थी और इसलिए वे कटु हो गये और उनके आसपास अविश्वास का वातावरण हो गया।
विहिप नेता प्रवीण तोगडिया ने तो जिस दिन इस लेख की रिपोर्ट एक अंग्रेजी अखबार में छपी उसी दिन उसकी भर्तत्सना की थी। मौका नहीं चूकते हुए विपक्ष के नेता ने भी इस लेख के लिए मोदी पर बंदूके तानी है।
पाक्षिक के एक्जीक्युटिव एडीटर सुघीर रावल का इस विषय में बहुत औपचारिक जवाब है कि ये लेखक के अपने विचार हैं। क्या यह इतना आसान है? क्या किसी कांग्रेसी नेता या आम आदमी द्वारा मोदी के विरुद्ध लिखे गए लेख पर भी क्या उनका यही रवैया होगा?
देखे इस चुनावी वर्ष मे किसे क्या फ़ायदा होता है।
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