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Wednesday, January 5, 2011

सफारी - विज्ञापन बिना का एक लोकप्रिय मासिक


आजकल किसी भी प्रकाशन की सफलता का अर्थ है उसकी विज्ञापन एकत्र करने की शक्ति का मजबूत होना। बिना विज्ञापन किसी प्रकाशन का होना कल्पना के बाहर की बात है। सिवाय की वह प्रकाशन किसी कंपनी का आतंरिक प्रकाशन हो या फिर किसी ट्रस्ट की ग्रांट पर निभने वाला प्रकाशन हो।


पर गुजरात का लोकप्रिय मासिक सफारी एक अपवाद है। इस माह इस मासिक ने २०० अंक पूरे किये हैं। १९८० में शुरू हुए इस मासिक को दो बार बंद भी करना पडा। आर्थिक तंगी इसका मुख्या कारण था। इन सबके बावजूद आज इस प्रकाशन ने २०० का अंक छू लिया है। यह केवल २०० अंक प्रकाशित करना नहीं है। इसके सम्पादक नगेन्द्र विजय का कहना है कि आज सफारी की ७१,००० से अधिक प्रतिया बिकती हैं।


उनकी बात पर कोई शंका की जरूरत नहीं है। सफारी की लोकप्रियता है। १९८० में बालको के प्रकाशन के रूप में शुरू हुए इस प्रकाशन ने आज गुजराती पाठक के दिल दिमाग में ज्ञान विज्ञान से भरपूर एक रोचक शैली वाले मासिक के रूप में जगह बना ली है। नगेन्द्र विजय कहते हैं कि यह असंभव नहीं है। मेरे लिए यह पैसा कमाने का जरिया नहीं अपितु लोगो को सरल और समझ में आने वाली भाषा में तरह तरह की जानकारी देना है। यही कारण है कि हर प्रकार की समस्याओं का सामना करते हुए भी आज इसके २०० अंक प्रकाशित हो चुके हैं।


औसतन अच्छे प्रकार के कागज़ पर रंगीन चित्रों से भरपूर लेखों वाले इस मासिक का दाम है २५ रूपये। नगेन्द्र विजय का कहना है कि यह थोड़ी ज्यादा कीमत है। अधिकतर लोगो के दिमाग में सफारी शब्द के साथ विज्ञान का प्रकाशन आता है। पर नगेन्द्र विजय स्पष्ट करते हैं कि इसमें इतिहास और अन्य रसप्रद विषयों पर भी लिखा जाता है।


समय के साथ इसकी सज्जा और लेखों आदि के विषय भी बदलते रहते हैं। यही इसकी पाठकों के बीच इसकी लोकप्रियता का राज है , वे कहते हैं। किसी जमाने में इसकी पहेली काफी लोकप्रिय थी। बाद में इसमें सुपर सवाल कालम शुरू हुआ वह भी काफी लोकप्रिय हुआ। भारत पाकिस्तान युद्ध की कहानियों ने भी पाठको को बांधे रखा।


तीन वर्ष पहले सफारी अंगरेजी में भी शुरू हुआ। पर वह अभी भी संघर्ष कर रहा है। उसका प्रसार १६००० कापियां है। इसका कारण बाजारू व्यवस्था है। इसके चलते नगेन्द्र विजय और उनके पुत्र ने उसे गुजरात के बाहर केवल चंदे के आधार पर बेचने का निर्णय किया है। सफारी के २०० अंकों की कहानी कुछ पैरों में बयान नहीं की जा सकती है। १५ वर्ष पूर्व सफारी ने अपनी वेबसाइट भी शुरू की। आज वह काफी लोकप्रिय है।


उनके पुत्र हर्शल का कहना है कि वे हिंदी और मराठी में भी इसका प्रकाशन शुर करेंगे। मैं पिता पुत्र की इस जोड़ी से बात कर भाजपा के कार्यालय पहुंचा तो वहा मेरी मुलाक़ात मीडिया विभाग में मौलिक जोशी से हो गई। मैंने सफारी का जिक्र किया तो तपाक से बोले की बहुत अच्छा प्रकाशन है । इसी महीने २०० अंक पूरे हुए है। मेरे पिताजी और मैं हम दोनों ही इसके बड़े चाहक हैं। बोले कि वे तो पहले अंक से ही इसे पढ़ रहे है। और अगले आधा घंटे में उन्होंने मुझे सफारी की विशेषताओं के बारे में काफी गहराई से बताया। सरल भाषा में गूढ़ विषयों की रोचक शैली में जानकारी इसकी सब से बड़ी विशेषता है। इससे भी अधिक तो यह है कि यह पाठको में राष्ट्र प्रेम की भावना जगाती है।


यह है इस सफारी की सफलता की कहानी.

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