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Monday, August 3, 2015

भारत का पहला धर्म रिपोर्टर डॉ. प्रणव दवे

विषय धर्म और डॉ. का सम्बोधन ये दोनों ही हमें किसी ऐसे व्यक्ति का ध्यान कराते हैं जो उम्र लायक है। पर हमारे धर्म रिपोर्टर डा. प्रणव दवे केवल 33 वर्ष के है और देश के पहले पूर्णकालीन धर्म रिपोर्टर है।
प्रणव दवे फिलहाल टाइम्स ऑफ इन्डिया के गुजराती दैनिक नवगुजरात समय में पूर्णकालीन रिलीजन रिपोर्टर हैं और पिछले 14 वर्षों से वे केवल धर्म के बारे में ही लिखते आ रहे हैं और प्रतिष्ठित अखबारों के धर्म परिशिष्ठ का संकलन कर रहे हैं।
उनका परिचय उनकी विद्वता और उनक लेख उनके कलम की पहचान हैं। उन्होंने संस्कृत और पाली (संस्कृत का वह रूप जिसमें जैन साहित्य लिखा गया है) में गुजरात यूनिवर्सिटी से डबल एमए किया है। भविष्य पुराण में सूर्य पूजा पर शोध ग्रन्थ लिख पीएचडी किया है। अब वे दूसरी पीएचडी कर रहे हैं। विषय है साइबर मीडिया का हिन्दू धर्म पर प्रभाव। डबल एमए के बाद डबल पीएचडी की तैयारी वह भी 33 वर्ष की अल्पायु में ही।
हिन्दी की सहजता से ही संस्कृत में संवाद करने वाले डॉ. प्रणव दवे अपनी इस उपलब्धियों के लिए उनके पिता रोहित दवे को उनका गुरु मानते हैं। रोहित भाई सूचना विभाग से जुड़े थे और गायत्री परिवार से शुरू से ही जुड़े हुए हैं। उनका धर्म और पत्रकारिता का घरेलू वातावरण ही उनका इन दो विषयों में आगे बढ़ने का प्रेरणा मंत्र बना।
प्रणव जितने धर्म में निपुण हैं उतने ही आधुनिक टेक्नोलॉजी में दक्ष। गुजरात के अग्रणी समाचार पत्र गुजरात समाचार के दो वर्ष के कार्यकाल में धर्म रिपोर्टिंग के अलावा प्रणव उस समाचारपत्र के वेब पोर्टल का कामकाज भी सम्भालते थे। यही कारण है कि उनकी दूसरी पीएचडी साइबर मीडिया और धर्म के बीच एक कड़ी है।
उनके यादगार क्षणों में कोई कमी नहीं है। जयेन्द्र सरस्वती जिन्हें जयललिता केस में जेल जाना पड़ा था, उन्होंने अहमदाबाद में किसी को भी इन्टरव्यू देने की ना कह दी थी। केवल प्रणव दवे को ही इन्टरव्यू दिया था। इसका कारण न तो प्रणव दवे का नाम था और न ही उनके अखबार का बैनर। इसका कारण इतन मात्र था कि प्रणव दवे ने अपना परिचय उन्हें संस्कृत में दिया था।
उनका कहना है कि हिन्दू धार्मिक संस्थाएं काफी तेजी से आईटी का उपयोग कर रही हैं और यह उनके प्रचार प्रसार का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने सूर्य मीमांसा नामक पुस्तक भी लिखी है जिसमें गुजरात के सूर्य मंदिरों के विषय में जानकारी है।
उन्हें ज्योतिष में भी काफी विश्वास है। उनका कहना है कि ज्योतिष एक प्रकार का साईन बोर्ड है जो हमें आने वाली घटनाओं से अवगत कराता है।

Monday, July 27, 2015

तुषारभाई का वेडिंग टूरिज्म

आजकल टूरिज्म का जमाना है। तरह तरह का टूरिज्म। अब खेत-खलिहान देखने जाएं, फार्म टूरिज्म। आप बीमार हो या किसी बीमार व्यक्ति को बड़े अस्पताल ले जाए तो मेडीकल टूरिज्म।
आजकल लोग (धनाढ्य व्यक्ति) पर्यटक स्थलों पर जा शादी आयोजित करते हैं। अपने सूरत और नासिक के लोग सापूतारा में शादी करने जाते हैं। कई लोग विदेश में बारात ले जा वहीं शादी करते हैं।
आप इसे क्या कहना चाहेंगे? वेडिंग टूरिज्म। अपने अहमदाबाद के तुषार अजमेरा का तो यही मानना है। वर्षों से शादी की फोटोग्राफी करते हैं। पर उनका मानना है कि शादी दुल्हा दुल्हन और उसके फोटोग्राफ का साधारण इवेन्ट नहीं है। यह एक बदलाव का इवेन्ट है। दो परिवारों में आने वाले बदलाव का सूचक इवेन्ट है।
अपने इसी ख्याल को तुषारभाई लंडन में प्रदर्शन में अगस्त और सितम्बर माह में रखने वाले हैं। उन्होंने एक ही शादी के फोटो का एल्बम बनाया है। यह उनका इस प्रकार का पहला प्रदर्शन है। भारत और भारत के बाहर। इसकी भी बड़ी रोचक कहानी है तुषारभाई की।
एक बार लंडन घूम रहे थे। ख्याल आया कि यहां की शादी में हिन्दुस्तान जैसा मजा कहां है?न जाने कब बरसात टपक पड़े। इस डर से आम आदमी तो हॉल ही में शादी करते हैं। धनाढ्य वर्ग के लोग शादी के लिए स्पेन, टर्की वगैरह जाते हैं, जहां खुले आसमान का आनन्द ले सकें।
वे लंडन के लोगों को बताना चाहते हैं कि भारत में यह सब कुछ है। उनका कहना है कि अगर वहां के लोग विदेश जा सकते हैं तो भारत में भी आ सकते हैं।
इससे उन्हें क्या मिलेगा? उनका जवाब है कुछ नया करने का आनन्द। सही बात है शादी की फोटोग्राफी के कुछ सौ पाउन्ड के लिए तो वे यह नहीं करेंगे।

Saturday, July 25, 2015

मोदीजी की कविताएं हिन्दी में, एक नया परिचय

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन की उथल पुथल में यदि कुछ होता है तो वह है उनके व्यक्तित्व का मानवीय स्वरूप, उनके कवि हृदय की पहचान। यह बात उनकी कविताओं को पढ़ कर बहुत ही स्पष्ट रूप से उभर कर आती है।
हाल ही में कवियत्री डा. अंजना संधीर से मिलना हुआ। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री आनन्दीबेन पटेल ने उनके द्वारा मोदीजी की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का विमोचन किया। उच्च कोटि के इस अनुवाद को पढ़ कर लगता है कि मानो मोदीजी ने हिन्दी में ही कविताओं को लिखा है।
थोड़े समय में ही यह पुस्तक लेखकों और कवियों में देश में काफी लोकप्रिय हो गई है। इसका मुख्य कारण है कि इस पुस्तक ने मोदीजी के भीतर के कवि को एक राष्ट्रीय पहचान दी है। हिन्दी पढ़ने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग है। उस वर्ग के माध्यम से देश के कई राज्यों में लोगों को प्रधानमंत्री के कवि हृदय का परिचय हुआ है।
आज अंजना संधीर ने इन कविताओं के उडिया अनुवाद की पुस्तक दिखलाई। यह इस पुस्तकआंखें ये धन्य है” के लगभग 8 भाषाओं में हो रहे अनुवाद में से एक है। हालांकि मोदीजी की कविताओं के संकलन में 67 कविताएं गुजराती में हैं, अनुवाद के लिए आधार बन रही हैं हिन्दी में अनुवादित अंजना संधीर की पुस्तक। किसी भी लेखक के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उसकी पुस्तक कई अन्य पुस्तकों के लिए आधार बने। अंजना संधीर के लिए यह पुस्तक एक ऐसा ही आधार बनी है।
अंजना संधीर अहमदाबाद की है और नरेन्द्र मोदीजी से उनका व्यक्तिगत परिचय है। गुजराती पुस्तक उन्हें मोदीजी की ओर से 2008 में मिली थी। इसका अनुवाद उन्होंने पिछले वर्ष किया। अंजनानी इन कविताओं में एक मानवतावादी, राष्ट्रवादी और संवेदनशील कवि मोदी को देखती है।
उनकी हम तो कविता इसी मानवत्व की आत्माभिव्यक्ति है-
कोई पन्थ नहीं, नहीं सम्प्रदाय,
मानव तो बस है-मानव;
उझाले में क्या फर्क पड़ता है,
दीपक हो या लालटेन........!”
जीवन में प्रेम की उष्मा आवश्यक है। कर्तव्य और त्याग की उष्मा आवश्यक है। प्रेम की उष्मा के बिना मानव उत्कृष्टता की ओर बढ़ ही नहीं सकता।
बिना प्रेम पंगु बन मानव लाचार, पराधीन सा जीता है।
अभाव की एक डोरी ले, पल को पल से जीता है।
तस्वीर के उस पार कविता में भी उनकी ओजस्विता, स्वाभिमान, श्रम-साधना परिलक्षित है।
मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूं
अपने आत्मविश्वास में
अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में,
तुम मुझे मेरे काम से ही जानो.......
...... मेरी आवाज की गूंज से पहचानो,
मेरी आंख में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है।
अन्त में उनकी यह कविता जाना नहीं
यह सूर्य मुझे पसन्द है
अपने सात घोड़ों की लगाम
हाथ में रखता है
लेकिन उससे कभी भी घोड़ों को
चाबुक मारा हो
ऐसा जानने में आया नहीं
इसके बावजूद
सूर्य को मति
सूर्य को गति
सूर्य को दिशा
सब एक दम बरकरार
केवल प्रेम

Friday, June 26, 2015

दीखते मोदीजी, बोलते मोदीजी

अपने नरेन्द्र मोदीजी भारत के पहले यत्र तत्र सर्वत्र प्रधानमंत्री हैं। अभी तक सरकार में सब कुछ राष्ट्रपति के नाम में होता है। वह भी केवल सरकारी आदेशों में। वह अब भी होता है।
पर अपने मोदीजी न केवल विभिन्न क्षेत्रों में छपे हुए होते हैं, वे दिखलाई भी देते हैं। पिछले हफ्ते का योग दिवस इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।
पूरे दिन मोदीजी टी वी पर छाए रहे। क्योंकि कार्यक्रम मोदीजी का था इसलिए राष्ट्रपति और उप- राष्ट्रपति को न्यौता नहीं। लग रहा था कि मोदीजी नहीं होते तो योग का क्या होता ?
मोदीजी ने स्वंय कुछ सरल पोज दे, रशियो के पुतिनजी को बता दिया कि वे केवल योग का प्रचार नहीं करते, स्वंय योग भी करते हैं। आजकल मोदीजी प्रेरणास्वरूप बनते जा रहे हैं। सभी जगह यही छवि छा रही है उनकी।
सुप्रीम कोर्ट के सरकारी विज्ञापन में केवल प्रधानमंत्री की फोटो वाले फैसले के बाद तो अपने मोदीजी को विज्ञापनों में खुला मैदान मिल गया है। अब कोई मंत्री, मुख्यमंत्री को फोटो नहीं।
मोदी हितेच्छु काफी सृजनशील हैं। आज तक प्रेस इंर्फोमेशन ब्यूरो की वेबसाइट पर केवल समाचार के शीर्षक वाला होमपेज होता था। मोदीजी के आने के बाद इस वेबसाइट पर मोदीजी की फोटो मुख्य होती है, समाचार बाद में दिखते हैं।
अभी कुछ दिन पहले बीएसएनएल से एक एसएमएस मिला। उसका सार था कि प्रधानमंत्री की प्रेरणा से बीएसएनएल 15 जून से भारत में फ्री रोमिंग शूरू करने जा रहा है।
आज सुबह एक फोन आया। उस पर प्रधानमंत्री वाला संदेश रिकार्डड मैसेज के रूप में सुनाई दिया।
मान गये जिय किसी अधिकारी ने यह आइडिया लगाया है उसकी सोच को दाद देनी पड़ेगी। उसने मोदीजी के प्रशंसाप्रिय दिमाग का सही अध्ययन किया है।
काश अधिकारी बीएसएनएल के कामकाज को सुधारने में यह दिमाग लगाते तो लोगों का कितना भला होता। पर उससे जरूरी नहीं कि मोदीजी खुश होते।
देखा मोदीजी यत्र तत्र सर्वत्र । दीखते मोदीजी, बोलते मोदीजी।
   



Thursday, June 25, 2015

जवाहर कर्नावट का अक्षय्यम

आज ही अक्षय्यम का नया अंक आया। यह बैंक ऑफ बड़ौदा का त्रैमासिक है। हालांकि ऑफिस में इस प्रकार की कई मैगज़ीन आती हैं, पर मुझे यह काफी प्रिय है। इसके लेखों में बोलचाल की भाषा और विषय की गहराई का अनोखा समतोल है। शायद इसी कारण इसे पढ़्ने में आनंद आता है।
जवाहर कर्नावट
इसके साथ हे हमारी इसके सम्पादक और हमारे पुराने परिचित जवाहर कर्नावट की यादें ताजा हो जाती हैं जब वे अहमदाबाद में थे। जवाहर कर्नावट उन चुने हुए हिन्दी अधिकारियों में हैं जिनमे भाषा की पकड़ के साथ एक पत्रकार की समचार सूंघो नाक भी है। यह अक्षय्यम के हर लेख में बखूबी झलकता है।
अक्षय्यम की हिन्दी मुझे इसलिये पसन्द है क्योंकि इसमे सरकारी क्लिष्ट हिन्दी का कोई दिखावा नही है। पिछले एक अंक में जिस तरह बैंक के कार्यपालक निदेशक रंजन धवन का परिचय दिया गया था वह किसी भी ऑफिस मैगज़ीन में देखने को नहीं मिलता। जवाहर कर्नावट जैसा सम्पादक ही इस प्रकार के  वर्णन को लिख और प्रकाशित कर सकता है।
कार्यपालक निदेशक रंजन धवन के बारे लिखा है “ बैंक में आपकी छवि एक जिंदादिल, चुस्त दुरुस्त, हरफनमौला व्यक्तित्व की है”।छू जाने वाली बोल्चाल की भाषा। हालांकि हर अंक एकाद महिने लेट निकलता है, इसकी भाषा और विषय चयन में कोई चूक नही होती।
जवाहर कर्नावट के लिए यह जरूर एक बड़ी खुशी की बात होगी कि रिजर्व बैंक ने उनके अक्षय्यम को इस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ बैंक मैगज़ीन का अवार्ड दिया। इसी माह जून महिने में यह अवार्ड दिया गया।
जवाहर कर्नावट पिछले दो वर्षों में इस मैगज़ीन में काफी बदलाव लाये हैं। भारतीय भाषाओं के बारे में , बाहर के लेख और किसी सेलीब्रिटी का इंटरवयू। इस प्रकार के मसाले से इस मैगज़ीन ने हमारे जैसे पाठकों के दिल और दिमाग में एक जगह बना ली है। इस सब के बावजूद अगर मुझे सबसे प्रिय कोई कॉलम लगता है तो वह है- आइये सीखिए भारतिय भाषाएं। इसमे एक ही बोलचाल के वाक्य को हिन्दी सहित आठ भाषाओं में लिखा जाता है। हर बार नया विषय और उससे जुड़े 15 वाक्य।एक बार रेलगाड़ी से जुड़े 15 वाक्य थे तो इस बार हवाई जहाज से सम्बन्धित। और ये सभी वाक्य देवनागरी लिपि में लिखे होते हैं।
जैसे कि तेलगु में मैने मथुरा में गाड़ी बदली थी हो जायेगा नेनु मक्षरालो बंडिनी मारानु और कन्नड़ में नानु माथुरादल्लि रलु बदलायिसिदे!
जवाहर कर्नावट को शुरू से ही पत्रकारिता का शौक रहा है।उस जमाने में हिन्दी स्टैनोग्राफी में माहिर हो और पत्रकारिता का शौक होने के कारण वे नई दुनिया आदि अखबारों के लिये फ्रीलांसिंग करते थे। बैंक में स्टेनो की नौकरी मिलने के बाद भी उनका यह शौक बरकार रहा एक नये अंदाज में। उन्होने हिन्दी पत्रकारिता पर पी एच डी कर डाली उनका शोधग्रंथ जल्द ही एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित होने वाला है।
उनकी एक पुस्तक भी जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। यह है विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता के सौ साल। इसके लिए वे कई देशों मे भी गए हैं।

अक्षय्यम के ताजा अंक में विदेशों मे हिन्दी दिवस के आयोजन की रिपोर्ट है। बैंक ऑफ बड़ौदा ने इस बार पहली बार विदेशों मे हिन्दी दिवस मनाया था। पूरे  25 देशों में।

Tuesday, June 23, 2015

ब्रिटिश लाइब्रेरी

दत्तात्रेय कुलकर्णी
इस रविवार को लाइब्रेरी के आनलाईन रिसोर्सिस के उपयोग पर एक घंटे के कार्यक्रम में भाग लिया। काफी उपयोगी था।
इस लाइब्रेरी के साथ शुरू से ही सम्बन्ध है।35 साल हो गए हैं। अहमदाबाद में शुरू हुई तब से. उस जमाने से जब कर्णिक इसके लाइब्रेरियन हुआ करते थे और आज लाइब्रेरियन के नए स्वरूप मैनेजर के पद पर दत्तात्रेय कुलकर्णी हैं।

जिस प्रकार से कुलकर्णीजी ने विभिन्न संसाधनों के बारे में जानकारी दी और हमारे जैसे पाठकों के छोटे-छोटे कभी कभार फालतू विषय वाले, सवालों के जवाब दिए उससे उनका विषय ज्ञान ही नहीं पर मेम्बर प्रेम भी झलकता है।
लाइब्रेरी की यही खूबी है कि जो आज तक हमें इससे जोड़े हुए हैं। पिछले महिने लायब्रेरी से हुता रावल का फोन आया। योगेशभाई आपने कलकत्ता लायब्रेरी में जिस पुस्तक को रिजर्व करवाया है वह अहमदाबाद में भी उपलब्ध है। क्या आपके लिए अहमदाबाद में इसे रिजर्व कर दूं।
आप भी किसी लाइब्रेरी के सदस्य होंगे। क्या आपने लाइब्रेरी को पाठक के लिए इतना संवेदनशील पाया है? जवाब ना में ही होगा। मेरा खुद का अनुभव यह कहता है. और इस लाइब्रेरी के स्टाफ का यह व्यवहार मुझ पत्रकार तक ही सीमित नहीं है।
मैं गुजरात विद्यापीठ लाइब्रेरी का 1969 से आजीवन सदस्य हूं और लगभग 1980 से एमजे लाइब्रेरी से जुड़ा हुआ हूं। ये दोनों राज्य की सबसे बड़ी लाइब्रेरी हैं। इससे पहले म्यु. कार्पोरेशन के बालभवन में बच्चों की किताबें पढ़ने जाता था।
पर आजकल मेरी प्रिय लाइब्रेरी ब्रिटिश लाइब्रेरी है जिसका मैं महत्तम उपयोग करता हूं। न तो मैं अंग्रेजों का तरफदार हूं, न ही अंग्रेजी का। ब्रिटिश लाइब्रेरी की कई विशेषताएं हैं जिन्होंने इसे मेरे जैसे पाठकों का प्रिय स्थल बना दिया है।
मेरे जीवन में इस लाइब्रेरी से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हैं जो एक लम्बे रोचक लेख का मसाला बन सकती हैं। फिलहाल तो लाइब्रेरी की खासियतों की ही बात करूंगा।
सर्वप्रथम तो यह कि यहां पुस्तकें इस प्रकार से रखी हुई हैं कि कोई भी आसानी से पुस्तक ढूंढ सकता है पास के स्टूल या कुर्सी-टेबल पर बैठ पढ़ सकता है।
इससे विशेष यह है कि अच्छी विदेशी किताबें तो मिलती ही हैं साथ ही लेटेस्ट भी। 2015 में आप 2015 की ताजा किताब पढ़ सकते हैं।
इन सबसे खास यह कि यदि आपको कुछ अच्छा लगे तो जेरोक्स भी करवा सकते हैं! !उतारने की माथापच्ची ही नहीं।
मेरे लिए सबसे बड़ा आकर्षण है इसकि विदड्रोन (पुस्तकालय से बाहर नकाली गई पुस्तके) बुक्स की सेल। हर वर्ष मार्च में कुछ हजार पुरानी पुस्तकें सदस्यों को सस्ते दाम पर बेची जाती है। मेरी लाइब्रेरी में इस प्रकार की दर्जनों पुस्तकें हैं। हर वर्ष मैं काफी पुस्तकें इस सेल में खरीदता हूं।
अगला बड़ा लेख मैं लाइब्रेरी में बैठ कॉफी के साथ लिखूंगा सभी मेम्बरों में एक अन्य चीज जो प्रिय हैं वह है कॉफी। आप लाइब्रेरी में कॉफी के साथ लिख पढ़ सकते हैं, क्या किसी लाइब्रेरी में कॉफी के साथ किताब पढ़ने का लुत्फ उठा सकते हैं?
लिखने को तो और बहुत कुछ है। खैर फिर कभी।

Sunday, June 21, 2015

महिला डॉक्टर -पहले महिला बाद में डॉक्टर

शीर्षक पढ़ आप कहेंगे कि यह तो सभी को मालूम है। आप क्या तोप मार रहे हैं यह कह कर। सही बात है। पर, हमारा मुद्दा है कि महिला डॉक्टरों का महिला केन्द्रित कार्यक्रम।
शहर में रविवार, योग दिवस, को महिला डॉक्टरों ने एक कार्यक्रम आयोजित किया। यह महिला डॉक्टरों के लिए था । अन्य महिलाएं भी आमंत्रित थीं, अहमदाबाद मेडिकल ऐसिसयेशन की महिला शाखा के इस कार्यक्रम में।
महिला महिला ही है। व्यावसायिक जिम्मेदारियों के साथ परिवार की देख रेख का भार भी उठाती हैं। भले ही खुद डॉक्टर हो, किसी भी सामान्य महिला की तरह खुद के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह।
भले ही खुद कितना भी कमाती हो, कमाई और कर आयोजन के लिए पिता या पति या भाई पर आधार रखती हैं या महिला डॉक्टर।
ये सब ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने इस शाखा की अध्यक्षा डॉ. मोना देसाई को इस कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए प्रेरित किया। उनका कहना है कि इसमें ऐसे विषय चुने ,जो हर महिला डाक्टर को किसी रूप से छूते हैं।
मोटापन, कास्मेटिक सर्जरी किस महिला को स्पर्श नहीं करती। भले वे स्वयं डाक्टर हों, जरूरी नहीं कि वे इन वषयों को गहराई से जानती हों । इसलिए, ब्रेस्ट और सर्वाइकल कैन्सर के साथ साथ इन दो विषयों पर भी विषय एक्सपर्ट इन महिला डाक्टरों के लिए थे
आज टैक्नोलॉजी के जमाने में जहां नए नए गैजेट किसी के लिए भी चैलैन्ज हैं वहीं साईबर क्राइम किसी को भी लपेट में लेते ऐसा नया अपराध उभर रहा हो। तो हमारी मोनाजी ने महिला डॉक्टरों के लिए इसे भी चुन लिया ।
अद्यतन टैक्नोलॉजी और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से लैस होने के बावजूद महिला डॉक्टर है तो हिन्दुस्तानी ही और वह हिन्दुस्तानी ही बनी रहे तो मोनाजी के इस एक दिवसीय सेमीनार में आधुनीकरण विदाऊट वेस्टर्नाइजेशन पर भी एक लेक्चर था
उनका कहन है कि रूढ़ीवादी महिला अब प्रगतिवादी हो गई है। इस सफर में महिला ने कुछ पाया है तो कुछ खोया भी है। इसकी बैलैंस शीट पर भी चर्चा रखी गई थी
वास्तव में जिस तरह से विषय चुने गए और वक्ता का चयन हुआ वह पूरे कार्यक्रम की सर्जनात्मक शक्ति को अभिव्यक्त करता है। स्वाभाविक है इसकी मौलिकता ने 600 से अधिक डेलीगेट्स को आकर्षित किया और रजिस्ट्रेशन बंद करना पड़ा।

महिला किसी भी क्षेत्र में कितनी भी आगे पहुंच गई हो, आखिरकार वो महिला ही रहती है। उसकी समस्याएं उसकी ही रहती हैं।

Saturday, June 20, 2015

मोदी योग दिवस

पिछले कुछ दिनों से अखबारों में जिस प्रकार योग के अधपके ज्ञान से भरपूर लेख और समाचार पढ़ने को मिल रहे हैं उसमें लगता है कि मोदीजी प्रेरित योग दिवस से पहले योग शायद पाताल की गहराई में खो गया था।
अपने पत्रकार मित्र तथाकथित सेलीब्रिटीज के इन्टरव्यू छाप रहे हैं कि कैसे वे वर्षों से योगा कर रहे हैं। लगता है कि योग यानि कि आसन। आदि यह सच है तो पतंजलि योग के बाकी सात अंग यम, नियम आदि का क्या?
इसमें कोई शक नहीं कि टीवी युग में योग गुरु बनने की होड़ में बाबा रामदेव ने अच्छे अच्छों को पछाड़ दिया है। अब लगता है कि मोदीजी आगे निकल रहे हैं। जिस तरह से विज्ञापन और प्रचार मसाला परोसा जा रहा है उससे तो यही लगता है।
1960 के दशक से महेश योगी, बीके अयंगर एवं अन्य ने विश्व में योग की ज्योत जलाई उसके लिए किसी संयुक्त राष्ट्र की छाप नहीं थी।
योग पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा चुक है। पर आज यह बतलाया जा रहा है कि मोदीजी की प्रेरणा से विश्व के 177 देशों ने विश्व योग दिन की मंजूरी दी जिससे योग की वैश्विक पहचान बनी. तो अभी तक जो हुआ वह क्या था?
अपनी मुख्यमंत्री आनन्दी बेन पटेल की सरकार के विज्ञापनों का क्या कहना? ध्रुव तारे की तरह स्थिर है मोदीजी का स्थान गुजरात सरकार के विज्ञापनों में। इस बार भी मोदीजी ही केन्द्र में हैं। हां सुप्रीम कोर्ट के के कारण आनन्दीबेन का फोटो नहीं है।
पर सूचना विभाग ने इसका भी तरीका ढूंढ निकाला। आनन्दीबहन का ध्यान मुद्रा का फोटो जारी हुआ। हर दृष्टि से इस फोटो की न्यूज वैल्यू थी। गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री योगमय होती हुई!! कुछ भी असम्भव नहीं यदि कोई कुछ करने की ठान ले। कई अखबारों में यह फोटो छपी भी।
विज्ञापन का कहना है कि विश्व योग दिन के मोदीजी के प्रस्ताव को यूएन ने मंजूरी दी उससे यूएन ने उनके अडिग व्यक्तित्व पर उसकी मोहर लगा दी।
शुक्र है कि विज्ञापन ने मोदीजी की छप्पन इंच की छाती की बात नहीं की। वैसे जब भारतीय सेना ने बर्मा में आतंकियों पर कार्रवाई की थी तब कुछ अखबारों ने कहा था कि मोदीजी ने उनकी छप्पन इंच की छाती बता दी है।
मोदीजी के ध्यान के फोटो तो पिछले एक वर्ष में कई बार छप चुके हैं। ध्यान मुद्रा ही क्यों, कोई अन्य आसन क्यों नहीं जो उनके शरीर के लचीलेपन और स्फूर्ति को बताए।
मोदीजी भले ही योग के कितने ही प्रेमी हों, हैं तो वे नेता ही। कुछ ने सूर्यनमस्कार और ओंकार का विरोध किया तो ये दोनों ही योग दिवस कार्यक्रम से बाहर! यह कोई नेता ही कर सकता है। किसी वस्तु की जान निकल कर भी कहे कि लो ये तुम्हारे लिए हैं।

तो ये योग दिवस है या मोदी योग दिवस।

Friday, June 19, 2015

पप्पू का जन्मदिन

आज राहुल बाबा का जन्मदिन था। हमें मालूम नहीं था, लोगों को भी मालूम नहीं था। पर जिस तरह से कांग्रेस ने राहुलजीका जन्मदिन मनाया पूरे देश को मालूम पड़ गया कि राहुल बाबा का जन्मदिन है।
पूरे 45 साल के हो गए हैं अपने राहुलजी। पर पार्टी के नेता यह स्वीकार कर रहे हैं कि पहली बार राहुलजी का जन्मदिन मना रहे हैं।
ऐसा क्या हो गया कि राहुलजी का जन्मदिन मनाया जा रहा है। ये वही राहुल है, कांग्रेस के उपाध्यक्ष। अध्यक्ष बनने की बात महिनों से चल रही है। वो अध्यक्ष बने तब ठीक। आज तो वो उपाध्यक्ष ही हैं।
उनका जन्मदिन कोई छोटी बात नहीं है। अपने विश्वाटन वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने देशाटन कर रहे राहुलजी को फोन कर जन्मदिन की बधाई दी। उनका यह जन्मदिन पिछले वर्ष भी था। जहां तक हमारी जानकारी है मोदीजी उस समय राहुलज को मोदीजी के लोगों के  प्रिय पप्पूके रूप में जानते थे। पप्पू को जन्मदिन की क्या बधाई?
वैसे भी लोगों का कहना है कि पिछले दस वर्ष अपने राहुल भैय्या ने उनका जन्मदिन विदेश में ही मनाया है। साफ है कि केवल उनके मित्र ही उनका जन्मदिन मनाते थे। आज देश मना रहा है!
आजकल हमारे राहुलजी देशाटन में लगे हुए हैं। गांव बांव की धूल चख रहे हैं। साफ है जन्मदिन भी भारत में मना रहे हैं। अभी तक हमें यह मालूम नहीं पड़ा कि वे देशी लड्डू खाकर जन्मदिन मना रहे हैं या विदेशी केक काट कर।
हां कांग्रेस वाले जोर जोर से उनका तरह तरह के कार्यक्रमों से जन्मदिन मना रहे हैं। गुजरात कांग्रेस ने लेपटोप वाले राहुलजी के आईटी क्रांति वाले पिता राजीवजी को याद कर ई-वोटिंग जागृति अभियान किया। पार्टी नेताओं को इस क्षेत्र में राहुलजी का कोई ठोस योगदान नहीं मिला तो प्रेजेन्टेशन राजीवजी से शुरू किया।
पुडुचेरी में किसी ने प्रर्थन की तो किसी ने लोगों को भोजन कराया। दिल्ली में कांग्रेसी नेता ढोल नगारे बजते हुए देखे गए।
हमारे एक विद्वान मित्र ने हमारी सोच को एक नई दृष्टि दी। साथ ही एक प्रश्न भी। उन्होंने कहा कि राहुलजी का जन्मदिन इसलिए मनाया गया क्योंकि वे पिछले कुछ महिनों में राहुल बाबा उर्फ पप्पू से राहुल गांधी बन गए हैं। विपसन्ना ध्यान के बाद के पप्पू के नए अवतार धारदार नेता राहुल गांधी के जन्मदिन का उत्सव


सवाल यह है कि राहुल कि उम्र कितनी 45 साल या 4.5 महिने ! !

Thursday, June 18, 2015

मोदीजी की योगा एक्सप्रेस

मोदीजी ने प्रधानमंत्री बनने के कुछ महिनों में ही वैश्विक स्तर पर योग का लोहा मनवा लिया और इस रविवार 21 जून को वो पूरी दुनिया से योगासन करवा रहे हैं।
योगासन कार्यक्रमों और योगा के प्रचार प्रसार के लिए लोगों, संस्थाओं और सरकारी मंत्रालयों में गला काट स्पर्धा लगी हुई है। आए दिन किसी नए कार्यक्रम की घोषणा अखबारों में जगह बनाने के लिए अन्य समाचारों को हिलाती हुई दिखलाई देती है।
अपना रेल मंत्रालय कैसे पीछे रहता। घोषणा कर दी कि अब, तत्काल प्रभाव से अहमदाबाद-हरिद्वार के बीच चलने वाला हरिद्वार मेल योगा एक्सप्रेस कहलाएगा। देखा जाए तो यह पुराने दिल्ली मेल का तीसरा अवतार है।
यह गाड़ी शुरु हुई थी अहमदाबाद-दिल्ली के बीच दिल्ली मेल के नाम से बाद में गाड़ी बढ़ी हरिद्वार तक और नाम हो गया हरिद्वार मेल। पर तीसरे अवतार योगा एक्सप्रेस की तुक हमें समझ नहीं आई।
अरे भई अगर हम योगा के मूल भारतीय नाम योग के संदर्भ में देखें तो हर गाड़ी व्यक्तियों और शहरों को जोड़ती है। देखा शब्दों का कमाल!!
और अगर योगा’ की बात करें तो अज हमारी गाडियों की जो हालत है वह आम आदमी को डब्बे में घुसाने और उसमें जगह बनाने के लिए तरह तरह के आसन करने के लिए मजबूर कर देती है। हमारे रेलमंत्री का कहना है कि इस नामकरण से योगा का प्रचार होगा।
यह कोई जयपुर-बान्द्रा के डब्बों पर लगा वंडर सीमेंट का विज्ञापन थोड़े ही है, जो योग का प्रचार प्रसार करेगा। हरिद्वार-मेल ही क्यों?
हरिद्वार का योग से क्या सम्बन्ध? हां एक बात है कि वहां बाबा रामदेव उनके पतंजलि योग विद्यापीठ के एकड़ों जमीन में फैले प्रागण में अपने पेट को गाड़ी की तरह छुक-छुक चला अच्छों अच्छों के छक्के छुड़ा देते हैं।
योगा एक्सप्रेस की घोषणा सुनते ही हमारे दिमाग में दो दिन पहले की गुजरात के शिक्षा मंत्री भूपेन्द्रसिंह की बात याद आई। जब उनसे एक पत्रकार ने पूछा कि योगा डे का प्रचार हो रहा है पर पतंजलि का क्या? वे तपाक से बोले थे मैंने पतंजलि योगविद्यापीठ का जिक्र किया है। (यह हमारे भूपेन्द्रसिंह आसन वाले जीरो कॉलम में हैं)
आज इन्स्टेन्ट फूड की इस पीढ़ी के लिए तो योग यानि कि रामदेव और पतंजलि यानि पतंजलि योग विद्यापीठ (ऋषि पतंजलि नहीं)। रेल मंत्री को भी मालूम है कि मोदीजी के दोनों हाथ बाबा रामदेव पर है और दिल्ली में रहकर भी मोदीजी के लिए गुजरात ही सब कुछ है, भले वे विश्वाटन करते हों।
अब हरिद्वार में मोदीजी के गुजरात और मोदीजी के रामदेव को जोड़ता है तो मंत्रीजी ने एक गाड़ी से मोदी और रामदेव दोनों को खुश रखने के लिए दिल्ली मेल का तीसरा अवतार योगा एक्सप्रेस रेल लाईन पर चला दिया। रेल मंत्रालय में आसनस्थ रहना है या नहीं!!

Wednesday, June 17, 2015

कूल मंत्री नितिन पटेल

आपको लग रहा होगा कि गुजरात की आज की ब्रेकिंग न्यूज कांग्रेसी नेता शंकरसिंह वाघेला के निवास पर मोदी सरकार की सीबीआई के छापे है। पर जब यह समाचार बुद्धु बक्से पर छाए हुए थे तब बुधवार को कैबीनेट की ब्रीफिंग कवर करने वाले पत्रकार राज्य सरकार के एक प्रवक्ता मंत्री नितिन पटेल में एक स्माइलिंग बुद्धा देख रहे थे।
नितिन पटेल
मीडिया से दूर रहने वाले, जरुरी प्रश्नों को भी टालने वाले और विधान सभा में बात बात पर भड़क जाने वाले नितिन भाई का हंस हंस कर बात करने वाला यह स्वरूप सभी के लिए ब्रेकिंग न्यूज से कम नहीं था।
कुछ को तो उनमें राहुल गांधी के विपसन्ना ध्यान के बाद परिवर्तन जैसी झलक दिखलाई दी। पर पिछले कई महिनों से गांधीनगर के सत्ता के गलियारों में हमेशा दिखलाई देने वाले अपने नितिन भाई कहीं ऐसे किसी ध्यान या योग कार्यक्रम में जाकर आए हो ऐसे समाचार तो क्या अफवाह भी किसी ने नहीं सुनी थी।
कारण शारण जाने दो। हकीकत यह है कि सरकार बदले-बदले नजर ही नहीं आते थे पर बदले हुए थे! पत्रकारों का टोला जब उनके चैम्बर में मधुमक्खी के छत्ते की तरह बैठ गया तो बात निकली उनके पुराने साथी शंकरसिंह वाघेला जिन्होंने उनका सामाजिक जीवन एक आरएसएस प्रचारक के रूप में शुरू किया था।
देश में भाजपा के कई दिग्गज नेता हैं। उनके गुरु शिरोमणि हैं अपने नरेन्द्र मोदीजी। वाघेलाजी आरएसएस और भाजपा की नींव की ईंट से ले उसकी गुजरात शाखा की ईंट से ईंट बजा भाजपा के दो टुकड़े करने वाले भाजपा के एकमात्र नेता हैं शंकरसिंहजी।
आजकल एकमात्र, सबसे पहले जैसे शब्दों के बिना कोई स्टोरी ही नहीं बनती। हमारे पत्रकार मित्र होमवर्क कर संज्ञा ढूंढने की जगह सीधे विशेषणों का ही उपयोग कर डालते हैं।
ना ना करते हुए भी हल्के मुस्कराते और नजरे घुमाते अपने नितिन भाई वाघेलाजी के बारे मे बात बढ़ाते रहे। मालूम नहीं है कह कर भी उन्होंने बता दिया कि वाघेलाजी के घर सीबीआई की रेड पड़ी है, आदि आदि।
साथ ही उन्होंन पत्रकारों को अनिवार्य मतदान प्रक्रिया में प्रगति के बारे में हर सवाल का जवाब दिया भले ही वह पहले पूछा जा चुका हो या फिर किसी को भी गुस्सा दिला सके। एक पत्रकार ने पूछा अनिवार्य मतदान कानून क्यों लाया गया? दूसरे ने प्रश्न दागा कि क्या यह स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन नहीं है? तो तीसरे का सवाल था कि इसे लागू करने के लिए कितने स्टाफ की जरूरत होगी।
यदि अपने पहले वाले नितिनभाई होते तो कभी के थैंक्यू कह अपनी बिरादरी को चैम्बर का दरवाजा दिखला देते। वो यह भी कहते कि जब कानून बना था तभी उसका उद्देश्य बताया गया था। इसमें कुछ प्रश्न पहले भी पूछे जा चुके थे।
पर अपने मंत्रीजी तो कूल मंत्री बन गए थे। अगर योग की भाषा में बात करें तो वे प्रसन्न मुद्रा में प्रसन्नवतार बन चुके थे। सच कहें तो हमने किसी योग की पुस्तक में न तो प्रसन्न मुद्रा के बारे में पढ़ा है और न ही प्रसन्नवतार के बारे में। बीच बीच में वाघेला जी का जिक्र भी उसी सहजता से कर रहे थे।
और उन्होंने मतदान कानून की कॉपी मंगा पत्रकारों के सवाल के जवाब दिए और अपने भाई लगे प्रश्न पर प्रश्न पूछने पर।
यह घटना इतनी विलक्षण थी कि ब्रीफिंग के खत्म होने के बाद काफी समय पत्रकारों की सतही चर्चा का मुद्दा कूल मंत्री की प्रसन्न मुद्रा था। यह बात अलग है कि पेज थ्री आईटम की तरह कोई इस गहराई तक नहीं पहुंच पाया कि इसका राज क्या है!!

अगर हमें मालूम पड़ा तो हम जरूर इस कॉलम में लिखेंगे।

Tuesday, June 16, 2015

भूपेन्द्रसिंह आसन

भारत योगामयहो रहा है। जहां देखे वहां 21 जून के बड़े-बड़े पोस्टर तरह-तरह के आसन करते दिखलाई देते हैं।
अपने शिक्षामंत्री भूपेन्द्रसिंह चूड़ासमा ने कहा कि योग के अंतरराष्ट्रीय अवतार योगा के जन्मदिन पर वे भी कुछ मीडिया संवाद कर लोगों की जानकारी बढ़ाने का गौरव प्राप्त कर लें। आखिरकार अपने मोदीजी ने विवेकानंद की तरह पूरे विश्व को हिन्दू धर्म और योग की तरफ आकर्षित कर भाजपाईयों को योगा गाजर थमा दिया है।
जब भी कोई महंगाई या किसी अन्य समस्या की बात करे तो शुरू करवा दो योगासन। सब बातों पर लम्बवत् यू टर्न यानि कि शीर्षासन कर दिखा दो योगा पावर!!
खैर बात हो रही थी शिक्षा मंत्री भूपेन्द्रसिंह चूड़ास्मा बापू की। उन्होंने उनका योगाभ्यास आसन शुरू किया आंकड़ा सन से। तरह तरह के आंकड़े बताए। कहां कहां योगा दिवस कार्यक्रम होगा। कितने हजार लोगों को मुख्यमंत्री आनंदी बहन पटेल के नेतृत्व में उन्होंने मास्टर ट्रेनर बना दिया। केवल सात दिन में!
बेचारे बी के एस अयंगर की आत्मा यह सुन रही होगी तो वह इस बात के बाण रूपी प्रभाव में विरह वेदना के कैसे कैसे आसन कर रही होगी? सात दिन में तो सांस सही लेना भी पूरी तरह से नहीं सीख पाते हैं। यहां तो अपने मंत्रीजी की टीम ने 39,000 मास्टर ट्रेनर तैय्यार कर दिये योगा क्रान्ति लाने के लिए। सरकार है। जादू की छड़ी से कुछ भी दिखला सकती है।
मंत्रीजी और उनके साथी इसमें कितने प्रशिक्षित हुए यह न तो मंत्रीजी ने बताया और ना ही हमारे समेत किसी विद्वान पत्रकार ने पूछा। वैसे इस बार उनका शरीर थोड़ा पतला लग रहा था।मालूम नही योगासन का प्रभाव था या फिर इस कार्यक्रम की भागदौड़ का नतीजा।
मंत्रीजी ने कहा कि नर्मदा मैय्या में पानी में बोट के अंदर योगासन का कार्यक्रम इस दिन के कार्यक्रम की विशेषता होगा। यह भरूच के गोल्डन ब्रिज के निकट होगा। जब यह पूछा कि कौन कौन से आसन होंगे तब बोले आयुष मंत्रालय की सीडी में जो सब हैं वे होंगे।
अरे मंत्रीजी बगल में बैठे श्री श्री रविशंकर के IAS चेले पी डी वाघेला को ही माइक दे देते। खैर मंत्रीजी ने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में मीडिया को एक हेडलाईन तो दे ही दी। इस कार्यक्रम में सूर्यनमस्कार नहीं होगा।
आप तो जानते है कि अपने कुछ भाईयों ने धर्म के आधार पर सूर्यनमस्कार का विरोध किया था।
हमें आश्चर्य है कि आज जब योगा डे के अवसर पर योगा शिक्षक कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो रहे हैं तब किसी ने मोदीजी को इसका राजनीतिक हल क्यों नहीं सुझाया। चन्द्रमा वाले चन्द्रनमस्कार करें!!! खैर इस प्रकार के विकट योगा प्रश्न राजनीति के अखाड़े में शायद ही आते हैं।
खैर जोरदार तो एक पत्रकार का प्रश्न रहा। उसने कहा कि हम सब योगा की बात कर रहे हैं पर पतंजलि का कोई नाम ही ले रहा है।
मंत्रीजी तपाक से बोले यह तो मैंने पहले ही कहा था। आर्ट आफ लिविंग, पतंजलि आदि इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं।
धन्य मंत्रीजी। आखिरकार आजकल तो योग अर्थात् अपने बाबा रामदेव और उनका पतंजलि योगपीठ। बेचारा ऋषि पतंजलि उसे तो कौन जानता है!!

Friday, May 1, 2015

गुजरात सरकार की हिन्दी की बिन्दी

अपनी गुजरात सरकार अनोखी है। मोदीजी द्वारा शुरू किए गए और अपनी आनन्दीबहन द्वारा चलाए जा रहे गुजरात मॉडल की धूम मची हुई है मोदीजी के हिन्दुस्तान में। यह बात अलग है कि गुजरात मॉडल पर किताबें लिखी जा रही हैं, पर कोई यह नहीं बता सकता कि यह मॉडल क्या बला है।
अपने राहुल बाबा की कांग्रेस वाले चीख चीख कर कहते हैं कि राज्य को पैसे वाले दोस्तों को बेच देना ही गुजरात मॉडल है। पर उनका विश्वास कौन करे?
एक बात तो है। अपने मोदीजी हिन्दी में भाषण देते देते गांधीनगर से 7 आर सी आर पहुंच गए है। हिन्दी की बदौलत उनकी यह प्रगति देख दिल्ली के कुछ बड़े बाबुओं ने तो सरकारी कामकाज में  हिन्दी का फतवा भी जारी करवा दिया था। पर जैसा कि मोदीजी की सरकार में आम तौर पर हो रहा है, इस मुद्दे पर सरकार गुलाट मार गई। अब तो कोई इस पर कोई चर्चा भी नहीं करता!
दिल्ली और गुजरात में आजकल एक नई तरह की जुगलबंदी शुरू हो गई है। अधिकतर विदेश के दौरे पर रहने वाले अपने प्रधान मंत्रीजी को गुजरात के बिना नहीं चलता। दिल्ली में गुजरात मॉडल के साथ साथ गुजरात के आई ए एस चर्चा में हैं। अपने मोदीजी ने पी एम ओ को विशुद्ध गुजराती बना दिया है। खानसामा से खास अफसरान सभी गुजरात के!!
इधर गुजरात सरकार मोदीजी के गुण गाते नहीं थकती। भले मोदीजी दिल्ली में हैं, गुजरात सरकार के विज्ञापनों में मोदीजी की तस्वीर ध्रुव तारे की तरह अटल स्थान ले रही है। है न जुगलबन्दी।
जब गुजरात सरकार ने देखा कि हिन्दी भाषणों तक ही ठीक है, तो सरकार ने हिन्दी को बिन्दी बनाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया। सूचना विभाग मुख्यमंत्री के कुछ भाषणों की हिन्दी प्रेस विज्ञप्ति जारी करता है। इसका मापदंड हमें आज तक समझ नहीं आया है।
इससे भी बड़ी बात तो यह है कि अब सरकारी विज्ञापन अधिकतर कुछ गुजराती अखबारों तक ही सीमित कर दिए गए हैं । जब हमने एक आला अधिकारी से इस बारे में चर्चा कि तो वे तपाक से बोले सरकार क्या करे, विज्ञापन दाता विभाग केवल गुजराती के कुछ चुने हुए अखबारों में ही विज्ञापन देना चाहते हैं। तो भैय्ये विज्ञप्ति सभी अखबारों को क्यों भेजते हो?
खैर हम बात हिन्दी की बिन्दी की कर रहे थे। सरकार के अधिकतर विज्ञापन गुजराती में होते हैं भले फिर ये विज्ञापन अंग्रेजी या हिन्दी अखबारों में छपने के लिए हों। जय जय गरवी गुजरात।
इस बार गरवी गुजरात के स्थापना दिन का विज्ञापन हिन्दी में आया। पढ़ने के बाद हमे हमारे हिन्दी ज्ञान पर शंका हो गई। विज्ञापन कहता है

विकास में सभी की हिस्सेदारी हैं

गुजरात की आज और कल उज्ज्वल है

सभी गुजरातीयों को राज्यस्तरिय समारोह तापी जिले में

पहेली समझ ऊपर के वाक्यों मे गलतियां खोज अपना हिन्दी ज्ञान जांचे
है न गुजरात सरकार का हिन्दी को बिन्दी बनाओ अभियान
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