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Tuesday, May 29, 2007

भाई का इस्तीफा

आजकल भाई के इस्तीफे की चर्चा जोर शोर से है। पुरूषोत्तम सोलंकी ने आज इसको इस्तीफ़ा दिया , आज उसको इस्तीफ़ा दिया। आखिरकार अपने पुरूषोत्तम भाई करना क्या चाहते हैं। अरे भाई इस्तीफ़ा देना है तो दे दो , नही तो ये नाटक बंद करो।पर भाई को कौन समझाए . किसी की हिम्मत है। भाई तो भाई है ।
अरे भाई यहाँ तो मामला चुनाव का है। भाई के लोगो को लगना चाहिए की भाई को उनकी पडी हैं। भाई के समाज की लडकी से बलात्कार हो गया और कसूरवार अभी तक पकडा नही गया। यार लोग बोलते हैं की भाई को नरेन्द्र भाई को इस्तीफ़ा दे देना चाहिए। उसे इतना भी नही मालूम की इस्तीफ़ा तो मुख्यमंत्री को देना चाहिए । क्यों नहीं मालूम? सचमुच का भाई है। मुम्बई पुलिस के पास भाई का पूरा रेकॉर्ड है ।
अच्छों अच्छों के छक्के छुडाये हैं भाई ने । पर यहाँ तो मामला ही कुछ और है। इस्तीफ़ा दे दे और नारेंद्रभाई उसे आगे भेज दे तो भाई क्या करेगा । सरकारी पुलिस वाला कहाँ आगे पीछे फिरेगा । भाई का नाम अखबार में कैसे आएगा। आखिकार इलेक्शन का साल है । चर्चा में तो रहना ही पड़ेगा। लोगो की सेवा का मौका फिर कैसे मिलेगा?
पर हमें भाई के एक दोस्त ने भाई के ग़ुस्से का राज बताया । पिछले महीने भाई के दामाद को किसीने मार डाला। वो भी भाई के इलाक़े सोराष्ट्र में। आज तक कोई पकडा नहीं गया है। भाई क्या करे। अपने ही इलाके में सब कुछ हो गया और भाई कुछ नही कर पाया। इससे बड़ी जलालत क्या हो सकती है ।
अब भाई रोज इस्तीफे का खेल खेलते हैं। कभी किसी को इस्तीफ़ा देते हैं कभी किसी कोई और अफवाहों के बाजार के साथ नरेंद्रभाई के विरोधियों को प्रचार का मसाला दे देतें हैं।
समझे भैये भाई के इस्तीफे इस्तीफे खेल का राज।

Monday, May 28, 2007

भाई का सत्ता मे रहने का रिकार्ड

कोई कुछ भी कहे, एक बात तो माननी पडेगी । अपने नरेंद्रभाई भले ही किसी बात मे नंबर वन हों या ना हों एक बात में तो वो नंबर वन हैं । गुजरात के अभी तक के चौदह मुख्यामंत्रिओं मे वो पहले मुख्यमंत्री हैं जो सत्ता में इतने टिके हैं। उन्होनें सत्ता में टिके रहने का हितेंद्र देसाई और मधाव्सिंह सोलंकी का रिकार्ड तोड़ डाला है।
अपने नरेंद्रभाई की तोड़ डालने की कला कौन नही जानता । पूछो अपने केशुभाई से , अपने सुरेशभाई से पुलिसवाले अपने जसपाल भैया से। वड़ोदरा में एक तरफ वो बैठे हैं तो दूसरी तरफ अपने नयी नयी विद्रोही आत्मा नलिन भट्ट । किसी जमाने में इन सबकी तूती बोलती थी । और अब हाई कमांड को चिट्ठियाँ लिखने के अलावा और क्या कर सकते हैं ये भाजपा के दिग्गज।
खैर अपन बात कर रहे थे अपने गुजरात के पाँच करोड़ के अपने भाई नरेंद्रभाई की। कई बार सोचता हूँ की यह पांच करोड़ पांच करोड़ ही क्यों हैं। नरेंद्रभाई की पिन पाँच करोड़ पर ही क्यों अटकी हुई है। क्या वो गिनती भूल गएँ हैं , या फिर उनकी सरकार नें जनसँख्या नियंत्रण का ऐसा फार्मूला दूंद लिया है जिससे गुजरात की जनसँख्या बस पाँच करोड़ पर अटक कर रह गई है। जितने पैदा होते हैं उतने ही मर जातें हैं ! कुछ भी हों , अपने नरेन्द्र भाई तो नरेन्द्र भाई हैं । वो कुछ भी कर सकते हैं ।
खैर अपन बात कर रहे थे अपने नरेंद्रभाई के मुख्यमंत्री कार्यालय में रिकार्ड दिन । २१ मई की नरेंद्रभाई ने सभी के रिकार्ड तोड़ दिए। २०६२ दिन पूरे कर लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में। १० जून को उनका सम्मान होगा अहमदाबाद में। साफ हैं अपने भाजपाई बताएँगे की अपने नरेंद्रभाई ने क्या क्या झंडे कहां कहां गाडे हैं । उनके राजनीतिक पी आर ओ राजकोट वाले हितेशभाई ने तो सब को ए मेल कर कर के ढोल पीटना शुरू कर दिया है।
खैर अपन वो बता रहे हैं जिसका ढोल अपने यार लोग दबी जुबान से पीटेंगे ।
इन दिनों में मोदीजी ने पार्टी में कितनों का सफाया कर दिया हैं। कितने आई ए एस नौकरी छोड़ गएँ हैं। कितने बिस्तर तैयार कर बैठे हैं। राह देख रहें हैं की अगर मोदीजी नहीं जातें हैं तो वो खुद ही दिल्ली चलें जायेंगे । यह कहना पड़ेगा की अभी तक कोई भी मुख्यमंत्री इतना विवादास्पद नहीं हुआ हुआ है।
अपने मोदी भाई का विवाद खडे करने का अपना ही अंदाज हैं। बडे पर तीर दागो और बडे हों जाओ । कॉंग्रेस में अपने मोदीजी सोनिया गाँधी से नीचे तो बात ही नही करते। गुजरात कॉंग्रेस के नेता तो कहीं हैं ही नही । प्रदेशाध्यक्ष भरत सोलंकी , प्रतीपक्ष के नेता अर्जुन भाई का तो कोई क्लास ही नहीं । सीधे पाकिस्तान के जनरल मुशर्रफ के लेवल पर ही निशाना। वहां से कोई जवाब नहीं और यहाँ वाह वाह। आ सकता है कोई अपने मोदीजी की टक्कर में। यूँ ही नही बनते रिकार्ड। जय नरेन्द्र भाई । जय नरेन्द्र भाई की पाँच करोड़ की जनता .

Friday, May 4, 2007

नेताओं का अम्बेडकर प्रेम

अपने नेताओं का क्या कहना। समय के साथ बदलना तो कोई इनसे सीखे। जीवन परिवर्तनशील है यह तो सभी कहते हैं। पर यह सत्य जीता कौन है ? हमारे नेताजी! मौसम के साथ बदलते हैं वो अपना रंग रुप। ये साल चुनावी साल है। सभी को दलित, आदिवासी याद आ रहे हैं। अपने कांग्रेसियों को मुस्लमान भी याद आ रहे हैं। भाजपियों को मुसलमान अलग रुप में याद आ रहें हैं। खैर ये तो लंबी कहानी है।

अपनी बात तो है कक्काजिओं के अम्बेडकर प्रेम की। हर साल १४ अप्रैल को एक तरफ फायर ब्रिगेड दिन मनाया जाता है तो दूसरी तरफ भीम दिवाली। वैसे भी दिवाली और फायर ब्रिगेड के बीच गहरा नाता है। दिवाली के दिन बेचारे फायर ब्रिगादेवालों की नींद हराम हो जाती है। अपनी बात तो अम्बेडकर प्रेम की है।

इधर अपने पांच करोड़ गुजरातियों के मोदी भाई ने पन्ना भर के अम्बेडकर जीं का विज्ञापन दे दिया । मोदिजी का फोटो ना हो तो विज्ञापन कैसे हो सकता है। बडे अम्बेडकर , उनके बाद भाई नरेन्द्र भाई और फिर अपने रमनलाल वोरा भाई । क़द कुछ भी हो, कमाल तो क्रम का है। अपने मोदी जी अपनी बिनाका मुस्कराहट के साथ बीच में । आपकी नजर सीधे उन्ही पर पड़े।

अखबारों को हमेशा कोसने वाले अपने नरेन्द्र भाई का विज्ञापन प्रेम जोर शोर से उभर रह है। उनके सरकारी सपताहिक गुजरात की लाखों कापियां छपती हैं, भी
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