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Tuesday, April 15, 2008

आईआईएम अहमदाबाद का नया अर्थशास्त्र

आईआईएम अहमदाबाद ने उसकी फीस में तीन गुना बढा़ तहलका मचा दिया। अब आपको आईआईएम अहमदाबाद का एमबीए होने के लिये रु. १२ लाख की फीस देनी होगी।
मानवसंसाधन मंत्री अर्जुनसिंह जो आईआईएम के पीछे हाथ धोकर पड़ गये थे, उन्होने शुरुआत में तो थोडी सी नाक भौं चढा़ई। पर, फिर वो भी चुप हो गये और फीस मंजूर हो गई। कईयो का मानना है कि अर्जुनसिंह की समस्या आईआईएम नहीं पर आईआईएम के पूर्व अध्यक्ष बकुल धोलकिया का अंदाजे बयां था। अपने समीर बरुआ ने उन्हे एक नया अर्थशास्त्र पढा दिया।

बरुआ जी ने कहा कि एक लाख वार्षिक आय वालों की सम्पूर्ण मुफ्त पढा़ई। अन्यो को भी थोडी बहुत छूट । बरुआजी के अनुसार रु. छ्ह लाख की वार्षिक आय वालों को छूट छाट मिलेगी। उनका दावा है कि इससे ६५ प्रतिशत को लाभ मिलेगा। यह अर्जुनसिंह की ३३ प्रतिशत की मानसिक सोच से दो गुना निकला !!
बरुआ जी का कहना है कि बढती महंगाई और सरकार द्वारा वेतन वृद्धि के कारण यह बढोतरी की गई। अब अन्य आईआईएम और आईआईटी भी इस शानदार सोच पर विमर्श कर रहे है।
शुक्र है बरुआ जी ने यह नहीं कहा कि मासिक महंगाई के दर पर हर महिने फीस में परिवर्तन होगा। आशा है कि मुद्रास्फिति में कमी पर अपने बरुआजी फ़ीस कम भी करेंगे!!

भाजपा विद्यायक मधु श्रीवास्तव के कारनामे

वडोदरा जिला के चम्बल स्टाईल दाढी मूछ वाले विद्यायक मधु श्रीवास्तव को बेस्ट बेकरी कांड ने मीडिया में पहचान दी। हट्टे कट्टे लम्बे चौडे़ मधु श्रीवास्तव इस कांड के कारण सुर्खियो में आते रहते हैं।
पर होली पर तो उन्होने कमाल कर डाला। उनकी हुड्दंग सुर्खियों में छा गई। जलूस निकला। बेफिक्राना अंदाज से हवा में पिस्तोल से हवा में गोलिया दाग दी। बुरा हो टीवी वालों का, उन्होने मधु श्रीवास्तव की हवाई फायर की कैसेट चला डाली। उन पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। मधुजी भी इस खेल के शातिर खिलाडी ठहरे। बोले भैय्ये ये तो नकली चाईना मेड बन्दूक थी। चढ़ बैठे पुलिस पर! तुम यह बताओ कि मेरे खिलाफ केस किस आधार पर दर्ज किया आपने।
पुलिस कह रही है बन्दूक असली थी और अपने श्रीवास्तव जी अडें हुए हैं कि नहीं वो नकली थी।राम जाने सच क्या है?
पर श्रीवास्तव जी का सुर्खी योग बरकरार है। मुम्बई एयर पोर्ट पहुंचे, लंदन जाने के लिये। अधिकारियों ने उनके कागजों की पडताल की तो मालूम चला कि अपने श्रीवास्तव जी तो विदेश जा ही नही सकते। कोर्ट ने उन पर यह बंदिश लगा रखी है। उन्हे हवाई जहाज में चढ़ने ही नही दिया, टिकट होने के बावजूद भी। एक और सुर्खी के साथ चमक गये श्रीवास्तव जी मीडिया में।

Thursday, April 10, 2008

मोदी, मिल्ट्री, मीडिया और माकटेल

मिल्ट्री वालों की प्रेस कान्फेंस का अपना ही आकर्षण है। मुफ्त में दारु। गुजरात जैसे राज्य में तो यह विशेष आकर्षण है। दारुबंदी जो है यहां। आप फौजियों की प्रेस कांफ्रेंस में बेफिक्री से मदहोश हो सकते हैं।

पर पिछले कुछ समय से फ़ौजियों की प्रेस कांफ़्रेंस सूखी ही रहती है। दारू तो छोडो बीयर भी नही मिलती है। काकटेल की जगह मॊकटेल परोस देते है, अपने फ़ौजी भाई। बोलो कोई चीयर्स कैसे करे। साफ़ है कई लोग तो आते ही नही हैं । कुछ आते हैं तो फ़ौजियो की शुष्कता को कोसते रहते हैं।

अपने मित्रो के हित में हमने अपनी खोजी पत्रकारिता की सारी तरकीबे लगा दी। हमारे पास फौज में पत्रकारों की दारुबंदी का विश्‍वसनिय जवाब है। आप इसे हमारा 'स्कूप' कहें तो हमें काफी आनन्द होगा!हुआ यूं कि २००४ में वायुसेना के तत्कालिन एयर मार्शल पी. के. मेहरा, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने गये। इस औपचारिक मुलाकात में बातों बातों में मेहरा ने वेट के कारण महंगी हुई शराब की तर्ज पर फौजी की समस्या बयां की।

आपको बता दें कि मेहराजी उस समय दक्षिण पश्चिम एयर कमांड के कमान्डर थे। कई राज्यों के सीमक्षेत्र वाली इस एयर कमान्ड का मुख्यालय गांधीनगर है।अपने मोदीजी को भी शायद इस मुद्दे की आशंका थी। तपाक से बोले, मेहराजी आपके फौजी सस्ती दारु को बाहर ब्लैक में बेचते हैं। आपकों यह तो मालूम होगा कि गुजरात में दारुबंदी है। मेहराजी बोले ऎसी बात है। और एक फौजी कमान्डर से गुजरात के कमान्डर ने वादा किया कि वे देखेगें कि इस प्रकार की घटना न हो। इस समझौते ( हां जी एमओयू ) के तहत फौजियों की शराब सस्ती हो गई।

मेहरा ने मुख्यमंत्री के चैम्बर से बाहर निकल विंग कमान्डर टी के सिंगा को कहा कि देखो किसी सिवीलियन को दारु नहीं। बेचारे सिंगा क्या करते ? आदेश जारी हो गये। सबसे बडी समस्या सिंगा के लिये हुई ! उन्हे जनसम्पर्क अधिकारी के रुप में आये दिन पत्रकारों से पाला पडता था। पर फौज तो फौज है और सिंगा पहले फौजी फिर पीआरओ !

यह प्रथा नौ सेना में भी आ गई। उसका करण था उसके कमान्डर उत्पल वोरा का गुजराती होना। पहला गुजराती कमान्डर जैसी दर्जनों सुर्खिया बटोरने वाले वोरा ठहरे गुजरात के व्यापारी ब्रेन। उन्होने मध्यम मार्ग ढूंढ निकाला। नौ सेना के जहाज पर पत्रकारों को दारु पिलाओ। गुजरात की दारु बन्दी समुन्द्र में तो नहीं लगती।पर अपने भाई लोगों को दारु पीने वोराजी के जहाज पर पोरबन्दर जाना पडे़ ! बार बार यह थोडे ही सम्भव है।

फ्लैट अर्थ न्यूज : मीडिया का नग्न सत्य

ब्रिटेन के खोजी पत्रकार निक डेवीस की नई पुस्तक फ्लैट अर्थ न्यूज ने मीडिया में तहलका मचा दिया है। फरवरी में प्रकाशित इस पुस्तक पर सेमीनारों में और रेडियो टीवी पर चर्चा हो रही है।
पुस्तक का शीर्षक स्पाट पृथ्वी समाचार है। जिस तरह पृथ्वी गोल है और कभी भी सपाट नहीं हो सकती है उसी प्रकार सही समाचार एक गलत कल्पना है।

डेवीस ने पुस्तक में कई ऎसे किस्से दर्ज किये हैं। मिलेनियम बग द्वारा दुनिया के कम्प्यूटरों पर वायरस के आक्रमण का समाचार दुनिया भर में १९९९ के अंत में छा गया। एंटी वायरस उद्योग के लिये यह अरबो खरबों कमाने का धंधा बन गया। फिर क्या ?
निक डेवीस खोजी पत्रकार के रुप में प्रतिष्ठित हैं। उनका कहना है कि समाचारों को दुनिया जासूसी संस्थाओं और पी आर कम्पनियों की कारस्तानियों का अड्डा बन गया है। खर्चा कम करने के नाम पर खबरों की सच्चाई जानने के प्रयत्‍नों पर जोर नही दिया जाता है। पत्रकार दो तीन फोन कर जानकारी इकट्ठा कर लेते हैं। अधिकतर समाचार प्रेसनोट को रिराईट कर बनाये जाते है। अधिकारिक जानकारी के नाम पर सरकारी अधिकारी का बयान ले छुट्टी पा ली जाती है।
इस पुस्तक की लोकप्रियता का कारण यह है कि पत्रकार जानते है डेवीस की बात में काफी दम है। अपने २७ वर्षों के पत्रकारिता के अनुभव के आधार पर मैं यह कहता हूं कि डेवीस की किताब एक नग्न सत्य है। मीडिया के बारे में !
डेवीस ने इस पुस्तक की वेबसाइट भी बनाई है। मजेदार बात यह है कि इस वेबसाइट पर प्रतिक्रिया देने वाले पत्रकार बडा नाम है। पर इन सभी के नाम के साथ जुडा़ शब्द भूतपूर्व मीडिया की ताकत दर्शाता है। साफ है कि कामकाजी पत्रकार मीडिया की टीका कर अपने साथियों और मालिकों से दुश्मनी मोल नही लेना चाहता। प्रेस की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी लिखने वालों की विडम्बना यह है कि वे खुद इस माफिया की गुलामी स्वीकर कर स्वतंत्रता-स्वतंत्रता के खेल से लोगों को गुमराह कर रहे हैं।

पुलित्जर पुरुस्कार

इस सप्ताह पत्रकारिता में प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरुस्कार की धोषणा हुई। १४ में से छह पुरुस्कार प्राप्त कर वाशिंगटन पोस्ट छाया रहा। १९१७ में शुरु हुए इस पुरुस्कार ने विश्‍व स्तर पर अपना स्थान बना लिया है।
इस पुरुस्कार की शुरुआत इसके प्रणेता जोसेफ पुलित्जर के निधन के बाद हुई। पुलित्जर ने उनकी वसियत में इस पुरस्कार के लिये राशि निश्चित की थी। साथ कोलम्बिया युनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ जर्नलिज्म का प्रावधान किया था।
पुलित्जर की कहानी एक संधर्षशील पत्रकार प्रकाशक की कहानी है। उसने उसके जीवन काल में भ्रष्टाचार के विरुध अभियान चलाया । पुलित्जर प्राईज के द्वारा उन्होने उनके अभियान को एक सतत अभियान बना दिया। इस प्राईज की विशेषता यह है कि इसकी जूरी को नियमो में परिवर्तन की छुट दी गई है। इससे इसमे नई श्रेणियों का समावेश भी हुआ है। हंगरी के सम्पन्न परिवार में जन्में जोसेफ पुलित्जर का जन्म १० अप्रैल १८४७ में हुआ। प्रतिवर्ष अप्रैल में ही पुलित्जर प्राईज दिये जाते हैं। उनकी इच्छा फौज में जाने की थी। पर कमजोर स्वास्थ्य और दृष्टि के कारण वे इसमे सफल नहीं हुए। कलम के सिपाही के रुप में वे एक अन्तराष्ट्रीय व्यक्तित्व बन गये।
सामान उठा और होटल में वेटरगिरी करने वाले पुलित्जर का भाग्य भी एक आकस्मिक घटना से खुल गया। एक दिन एक लाईब्रेरी में उन्होने दो शतरंज के खिलाडियों को कुछ चाले समझाई। ये खिलाडी काफी प्रभावित हुए। उन्होने पुलित्जर से काफी चर्चा की। ये दोनों जर्मनी के मशहूर अखबार के सम्पादक थे। उन्होने पुलित्जर को नौकरी दी। और वह पत्रकार बन गया।
२५ वर्ष की उम्र में वह प्रकाशक बन गया। सुबह से रात तक काम करने वाले पुलित्जर ने खोजी पत्रकारिता पर जोर दिया। जल्द ही वह और उसका अखबार मशहूर हो गये। उन्होने आर्थिक संकट में फंसे न्यूयोर्क वर्ल्ड को खरीद उसकी भी कायापलट दी।
पर खराब स्वास्थ्य के कारण ४३ वर्ष की उम्र के बाद वे कभी अखबार के कार्यालय में नहीं गये। इसी दौरान उन्हे आवाज से एलर्जी हो गई और दो दशक तक अपनी नौका में एक साउन्ड प्रूफ़ कमरे में ही रहे। इसे लोग टावर ऑफ साइलेन्स के नाम से पुकारते थे।
इसी समय के दौरान व्यवसायिक स्पर्धा में उन्हें कई अखबारों का सामना भी करना पडा़। १९११ में उनका निधन हो गया। १९१२ में कोलम्बिया स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की शुरुआत हुई और १९१७ में पुलित्जर पुरुस्कार की।

Wednesday, April 2, 2008

गुजरात पर रिसर्च के लिये विधानसभा लाइब्रेरी!

अपने गुजरात विधान सभा के नये अध्य्क्ष आजकल विधान सभा के पुस्तकालय का उपयोग बढाने मे लगे हुए है । ७७००० से अधिक पुस्तकों वाले इस पुस्तकालय की विडम्बना यह है कि किताबे पढने वाला कोई नही है। इसके सदस्य केवल १८२ विधायक और विधानसभा के सदस्य ही है। मुश्किल से एक दर्जन विधायक इसका उपयोग करते हैं।
जनवरी मे विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद अपने भट्ट्जी ने लाइब्रेरी का जब दौरा किया तब यह बात बाहर आई। उन्होने सभी विधायकों को इस पुस्तकालय का उपयोग करने को कहा। विधान सभा के बजट सत्र के बाद पत्रकारों के साथ बातचीत मे उन्होने कहा कि यदि कोई व्यक्ति गुजरात पर रिसर्च करना चाहता है तो वे उसे लाइब्रेरी की पूरी सुविधा देंगे। विधानसभा की कार्ववाही का रिकार्ड राज्य के ईतिहास का एक अनोखा रूप है।
अपने भट्ट्जी ठहरे मीडिया गुरू। उनका कहना है कि नर्मदा पर हुई बहस नर्मदा के कार्य का एक अधिकारिक दस्तावेज है। इसी प्रकार राज्यपाल का विधानसभा को सम्बोधन राज्य की प्राथमिकताऒ के बदलते स्वरूप को प्रतिबिम्बित करता है। किसी भी पी एच डी छात्र के एक अच्छे गाईड बन सकते हैं अपने भट्टजी! अखबारवालो को अच्छी कापी देने मे तो माहिर हैं ही अपने भट्टजी । यह समाचार इसका एक अच्छा उदाहरण है।
आज भट्ट्जी से मिलना हुआ। उन्होने एक डिजाईनर को बुलाया हुआ था। एक अच्छे रिसर्च हाल की रूपरेखा दे रहे थे। बोले ब्रिटिश लाइब्रेरी के मैनेजर सतीश देशपांडे जैसे एक्सपर्ट की सलाह ले इसे एक ऎसी लाइब्रेरी बनाना है जिसमे लोग शांति से पढ सके और चाहे तो उन मुद्दों पर चर्चा कर सकें !! भट्ट्जी का आफ़र सभी के लिये है, कोई भी उनका सम्पर्क कर सकता है.

फ़र्जी मुठभेड हीरो वणजारा को मानवाधिकार याद आया

गुजरात के बाहोश अफ़सर डी जी वणजारा और उनके साथी आला अफ़सर आजकल काफ़ी परेशान है। उनके वकील का कहना है कि पुलिस उनकी तौहीन कर रही है। पुलिस उन्हे हथकडी पहनाने की बात कर रही है। वणजारा और उनके साथी सोहराबुद्दिन की फ़र्जी मुठ्भेड के लिये आजकल साबरमती जेल मे हैं ।
कुछ समय पहले वणजारा ने अस्वस्थता की शिकायत की थी। जेल के डाक्टर का कहना था कि सिविल अस्पताल ले जाओ इन्हे। उन्हे ले जाने के लिये पुलिस बुलाई गई। इन्सपेक्टर ने हथकडी लगाने की बात की। वणजारा आग बबुला हो गये। बोले कि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ़ है।
कुछ दिन बाद यही घटना एक अन्य अफ़सर के साथ हुई। उन्होने भी आग बबुला हो पुलिस के साथ जाने से इंकार कर दिया। सोहराबुद्दिन की फ़र्जी मुठ्भेड और उसकी बीबी को जिंदा जलाने के किस्से मे गुजरात और राजस्थान पुलिस के एक दर्जन पुलिसवाले जेल मे हैं । इनमे तीन आइ पी एस अधिकारी है।
इनके वकील ने अहमदाबाद के एक अदालत मे शिकायत की है और कहा है कि वणजारा और उनके साथी आला अफ़सरो के साथ पुलिस का व्यवहार मानवाधिकार भंग का मामला है। देखा फ़र्जी मुठभेड वालो को भी मानवाधिकार याद आता है, जब खुद का किस्सा होता है।खैर जिस अदालत पर लोग मानवाधिकार का गलत पक्ष लेने की बात करते है, उसने इस किस्से मे पुलिस के आला अफ़सरो को १४ अप्रैल को हाजिर होने को कहा है जहा उनसे पूछा जायेगा कि वो वणजारा और उनके साथी आला अफ़सर को हथकडी लगाने की बात क्यों करते हैं ?

Tuesday, April 1, 2008

अब शेर हाथी दत्तक लो !

अहमदाबाद नगर निगम एक अनोखी योजना लाया है। आप इसके प्राणी संग्राहलय के किसी भी प्राणी या पक्षी को दत्तक ले सकते है। हम यह स्पष्ट कर दे कि आप इन्हें घर नहीं ले जा सकते हैं । पर इनके घर के बाहर आप्के नाम की तख्ती लगी होगि जो आपको और अन्य को यह बतायेगी कि इसके पालक पिता या माता आप हैं।
आप इनसे मिलने जा सकते हैं। आप इनकी खाने पीने और रहने की व्यवस्था के बारे मे संग्राहलय के अधिकारी की कान खिचाई कर सकते हैं। संग्राहलय के अधीक्षक डा आर के साहू का कहना है कि काफ़ी लोग इसमे रस ले रहे हैं। ऎक व्यक्ति अपने पुत्र की सालगिरह पर एक चिडिया दत्तक लेने का विचार कर रहा है। उसका कहना है कि जन्मदिन का खर्चा चिडिया के नाम !
साहू के अनुसार यह प्राणी संग्राहलय को फ़ंड तो दिलवायेगा ही, साथ ही यह अहमदाबाद के लोगो मे प्राणी प्रेम भी बढायेगा।
आप दत्तक लेना चाहते है किसी को । चिडिया का एक साल का रू ३६००, हाथी का रू २.५८ लाख, हिप्पोपोटोमस का १.५१ लाख और चीते का १.२६ लाख
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