Followers

Wednesday, June 17, 2015

कूल मंत्री नितिन पटेल

आपको लग रहा होगा कि गुजरात की आज की ब्रेकिंग न्यूज कांग्रेसी नेता शंकरसिंह वाघेला के निवास पर मोदी सरकार की सीबीआई के छापे है। पर जब यह समाचार बुद्धु बक्से पर छाए हुए थे तब बुधवार को कैबीनेट की ब्रीफिंग कवर करने वाले पत्रकार राज्य सरकार के एक प्रवक्ता मंत्री नितिन पटेल में एक स्माइलिंग बुद्धा देख रहे थे।
नितिन पटेल
मीडिया से दूर रहने वाले, जरुरी प्रश्नों को भी टालने वाले और विधान सभा में बात बात पर भड़क जाने वाले नितिन भाई का हंस हंस कर बात करने वाला यह स्वरूप सभी के लिए ब्रेकिंग न्यूज से कम नहीं था।
कुछ को तो उनमें राहुल गांधी के विपसन्ना ध्यान के बाद परिवर्तन जैसी झलक दिखलाई दी। पर पिछले कई महिनों से गांधीनगर के सत्ता के गलियारों में हमेशा दिखलाई देने वाले अपने नितिन भाई कहीं ऐसे किसी ध्यान या योग कार्यक्रम में जाकर आए हो ऐसे समाचार तो क्या अफवाह भी किसी ने नहीं सुनी थी।
कारण शारण जाने दो। हकीकत यह है कि सरकार बदले-बदले नजर ही नहीं आते थे पर बदले हुए थे! पत्रकारों का टोला जब उनके चैम्बर में मधुमक्खी के छत्ते की तरह बैठ गया तो बात निकली उनके पुराने साथी शंकरसिंह वाघेला जिन्होंने उनका सामाजिक जीवन एक आरएसएस प्रचारक के रूप में शुरू किया था।
देश में भाजपा के कई दिग्गज नेता हैं। उनके गुरु शिरोमणि हैं अपने नरेन्द्र मोदीजी। वाघेलाजी आरएसएस और भाजपा की नींव की ईंट से ले उसकी गुजरात शाखा की ईंट से ईंट बजा भाजपा के दो टुकड़े करने वाले भाजपा के एकमात्र नेता हैं शंकरसिंहजी।
आजकल एकमात्र, सबसे पहले जैसे शब्दों के बिना कोई स्टोरी ही नहीं बनती। हमारे पत्रकार मित्र होमवर्क कर संज्ञा ढूंढने की जगह सीधे विशेषणों का ही उपयोग कर डालते हैं।
ना ना करते हुए भी हल्के मुस्कराते और नजरे घुमाते अपने नितिन भाई वाघेलाजी के बारे मे बात बढ़ाते रहे। मालूम नहीं है कह कर भी उन्होंने बता दिया कि वाघेलाजी के घर सीबीआई की रेड पड़ी है, आदि आदि।
साथ ही उन्होंन पत्रकारों को अनिवार्य मतदान प्रक्रिया में प्रगति के बारे में हर सवाल का जवाब दिया भले ही वह पहले पूछा जा चुका हो या फिर किसी को भी गुस्सा दिला सके। एक पत्रकार ने पूछा अनिवार्य मतदान कानून क्यों लाया गया? दूसरे ने प्रश्न दागा कि क्या यह स्वतंत्रता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन नहीं है? तो तीसरे का सवाल था कि इसे लागू करने के लिए कितने स्टाफ की जरूरत होगी।
यदि अपने पहले वाले नितिनभाई होते तो कभी के थैंक्यू कह अपनी बिरादरी को चैम्बर का दरवाजा दिखला देते। वो यह भी कहते कि जब कानून बना था तभी उसका उद्देश्य बताया गया था। इसमें कुछ प्रश्न पहले भी पूछे जा चुके थे।
पर अपने मंत्रीजी तो कूल मंत्री बन गए थे। अगर योग की भाषा में बात करें तो वे प्रसन्न मुद्रा में प्रसन्नवतार बन चुके थे। सच कहें तो हमने किसी योग की पुस्तक में न तो प्रसन्न मुद्रा के बारे में पढ़ा है और न ही प्रसन्नवतार के बारे में। बीच बीच में वाघेला जी का जिक्र भी उसी सहजता से कर रहे थे।
और उन्होंने मतदान कानून की कॉपी मंगा पत्रकारों के सवाल के जवाब दिए और अपने भाई लगे प्रश्न पर प्रश्न पूछने पर।
यह घटना इतनी विलक्षण थी कि ब्रीफिंग के खत्म होने के बाद काफी समय पत्रकारों की सतही चर्चा का मुद्दा कूल मंत्री की प्रसन्न मुद्रा था। यह बात अलग है कि पेज थ्री आईटम की तरह कोई इस गहराई तक नहीं पहुंच पाया कि इसका राज क्या है!!

अगर हमें मालूम पड़ा तो हम जरूर इस कॉलम में लिखेंगे।

No comments:

Post this story to: Del.icio.us | Digg | Reddit | Stumbleupon