Followers

Tuesday, July 17, 2007

गुजरात मे गाईड पहले, किताब बाद मे

अपना गुजारात काफ़ी प्रगतिशील राज्य है। खैर यह किसी को बताने की जरूरत नही है । हर क्षेत्र मे प्रगतिशील। आज कई क्षेत्रो मे अन्य राज्य गुजरात के नक्शे कदम पर चलते है। जगह जगह लोग पाठ्य पुस्तक रामायण से उपर नही आते, अपने यहा तो पुस्तक आये या नही आये गाईड तो पुस्तक छपने से पहले ही आ जाती है।। अरे भैये हिन्दी मे जिसे सुनहरी कुंजी कहते हैं।

दस की किताब तो पचास की कुंजी। और लोग खरीदते है।अरे भैये दुनिया का खेल तो कुंजी का खेल ही तो है । अब सीधी बात है। जब जवाब है तो सवाल तो होगा ही। सभी को मालूम है कि परिक्षा मे नंबर तो जवाब के मिलते है। आप अगर प्रश्न लिखे बिना उत्तर पुस्तिका मे लिखे, जवाब ५, जवाब ३... कोइ कम नंबर देगा क्या?

अब एसे मे यदि नये पाठ्यक्रम की पुस्तके स्कूल खुल्ने के बाद भी बजार मे ना आये तो क्या समस्या ? गाईड जिंदाबाद । मास्तर जी जो पढायेंगे वो आप घर से ही सवाल जवाब के रूप मे गाईड मे पढ कर जाईये और खुश रहिये। आप हीरो तो बन नही सकते क्योकि आपके सभी साथी यही फ़ार्मुला अपना क्लास मे मेघावी छात्र बने हुए है!!

इस साल कक्षा ५ और ६ की नई पुस्तके छ्पी है। एक महिना हो गया, अभी थोडी थोडी बजार मे आ रही है। मा बाप ने बच्चो को गाईडे दिलवा दी हैं। रोज पूछ्ताछ करते हैं कि किताबे आयी है क्या ? जवाब मिलता है, जल्द ही आ जायेंगी। अब जब पुस्तके आयी हैं तब उनके भाव आसमान पर हैं । ५वी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ७।५० से बढ कर रु २८ हो गया है। ६ठी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ९ से बढ कर रु १५ हो गया है। इस तरह सभी के दाम बढा दिये है। आज कांग्रेस ने इस मुद्दे पर आंदोलन की धमकी दे डाली । शक्तिसिंह, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता बोले कि गरीबों का क्या मोदीजी के राज मे?

ये कांग्रेसी गरीबों को गरीब ही बने रहना देने चाहते है। अपने मोदीजी ने देर से पुस्तके छपवा सभी को गाईड का उपयोग करते कर दिया। अब ये बच्चे महंगी किताबे खरीदेंगे। देखा गरीबों की भी खरीद शक्ति बढवा दी अपने मोदीजी और शिक्षा मंत्री आनन्दीबेन ने। कांग्रेसी मोदी राज मे कुछ अच्छा देख ही नही सकते।

3 comments:

Sanjeet Tripathi said...

गुजरात ही नही सब जगह यही हाल है जनाब!!
किताबें बाज़ार में आधा शिक्षण सत्र गुजर जाने के बाद आती है जबकि गाईड पहले आ जाती है

Udan Tashtari said...

अजब बात है यह तो.

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अरे भाई यह बात केवल गुजरात में ही नहीं है. देश भर में है. आप देखिए, एनसीईआरटी इस साल किताबें ही नहीं छाप पाई. छाप लेती तो प्रकाशकों की किताबें कैसे बिकतीं?

Post this story to: Del.icio.us | Digg | Reddit | Stumbleupon