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Tuesday, July 10, 2007

पूजा के प्रतिरोध का फ़िल्‍मी प्रतिरोध

अभी जहां पूजा के प्रतिरोध का चर्चास्‍पद विवाद पराकाष्‍ठा पर है, राजकोट की एक और महिला विरोध में पूजा के रास्‍ते पर दौडी। हम नक्‍शे कदम तो नहीं कहेंगे क्‍योंकि ये बहनजी पूरे कपडे पहने हुए थी।
इनका नाम है काजल जोशी। सुना है फ़िल्‍मों में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही है।
जैसा कि फ़िल्‍म वाली बहनजियों के किस्‍से में होता है, इनके विचार भी इनकी अम्‍मा ने मीडिया को बताए।उनका कहना है कि काजल काफ़ी संवेदनशील है। अम्‍मा का कहना है कि पूजा की अर्धनग्‍न दौड से हुए भारतीय संस्‍कृति के नुकसान से काजल इतनी दुखी हुई कि वह उसका प्रतिरोध करने के लिए मशाल ले उसी रास्‍ते पर दौडी। साफ़ है कि काजल को सुर्खिया तो मिली पर उतनी नहीं जितनी पूजा को मिली थी।

उधर पूजा के ससुराल वाले भी मीडिया कांफ़्रेस कर रहे है कि पूजा बदचलन है। चौहान के साथ शादी के पूर्व उसकी दो शादी हुई थी। उसका तथ्‍य उसने चौहान परिवार से छुपाया था।

पूजा के ससुराल वालों के विरुध्ध पुलिस ने सुबह कार्रवाई की थी, इसके बावजूद वह शाम को दौडी थी। इस मुद्दे पर काफ़ी विवाद है। यह तथ्‍य एक हकीकत है। यह भी हकीकत है कि उसे नंगी दौड लगाने का आईडिया देने वाले मीडिया के लोग ही थे। सुना है कि मुख्यमंत्री ने राजकोट के कमिश्नर नित्यानंद को इस मुद्दे की जांच करने को कहा है।

पर मुद्दा यह है कि इस मूर्खता के लिये उस पर किसी प्रकार की कोई जोर जबरदस्‍ती नहीं थी। और अगर उसने किसी लालच के लिये ऎसा किया था तब वह इसके लिये और अधिक जवाबदार थी।
अपने २६ वर्षों के पत्रकारिता के कैरियर में मैंने यह देखा है कि लोग सुर्खी में आने की कला में उत्तरोतर दक्ष होते जा रहे हैं। वे मीडिया की समाचार की व्‍याख्‍या को उनकी जरुरत के अनुसार बडे प्रेम से भुना लेते हैं। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है काजल जोशी।
राजकोट में वह उसी रास्‍ते पर दौडी जिस पर पूजा दौडी थी। क्‍यों? एक विवाद में कूदी। क्‍यों? साफ़ है कि फ़िल्‍मी क्षेत्र में संघर्ष करने वाली युवती को इस विवाद में लोगों में नाम कमाने का रास्‍ता, सुलभ और प्रभावशाली तरीका दिखा।
अपने पहले चिट्‍ठे में मैंने यह बतलाय था कि किस तरह एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने चैनल को गाली बक खुद वाह वाह बटोरी थी। इससे भी गंभीर बात यह थी कि इस कांड का "ब्रेन" उन्‍हीं के अखबार का पत्रकार था। सभामंडप में कह देते कि दुख की बात है कि उनका अपना पत्रकार ही पूजा चौहान दौड का भेजेबाज था।
मित्रों, मीडिया को जिम्‍मेदाराना ढंग से काम करना चाहिए। इसके बावजूद ऎसी घटनाएं होंगी। क्‍योंकि छ्पात रोग का कोई ईलाज नहीं है !!!

2 comments:

अनूप शुक्ल said...

बड़ी आफ़त है। :)

संजय बेंगाणी said...

बाकि जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
इससे पहले हमने पूजा काण्ड का दुसरा पक्ष लिखा था और तब किसीने हमारे मनुष्य होने पर सवाल उठाये थे.:)

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