यह कोई स्कैंडल नहीं है। यह है कहानी गुजरात विद्यापीठ के नये कुलपति नारायण देसाई की। महात्मा गांधी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई ने गुजरात विद्यापीठ के कुलपति का कार्यभार संभाल लिया है।
८३ वर्षीय नारायण देसाई आज अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में आये। नारायण देसाई आजकल उनकी गांधी कथा के लिये मशहूर हो रहे हैं। उनका कहना है कि गांधी संदेश फ़ैलाने का यह अभियान ही उनका मुख्य कार्य है।
गुजरात विद्यापीठ का उनका कार्य उसी सीमा तक होगा जहां तक वह उनके इस मिशन में बाधा नहीं बनता। वे विद्यापीठ के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी भूमिका वर्ष में सात दिन की हाजरी के नियम तक सीमित नहीं रहेगी।
नारायण देसाई गांधीवादी है यह तो सभी को मालूम है। पर, उनकी सबसे बडी खासियत यह है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं पाई है। स्कूल में एकाध वर्ष ही उनकी औपचारिक शिक्षा है।महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के खुले विद्यापीठ में उन्होंने निरंतर शिक्षा प्राप्त की है। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। अभी तक उन्होंने लगभग ५० पुस्तकें लिखी हैं। उनकी मशहूर पुस्तकों में "संत सेवता सुकृत वाद्ये" "रवि छबि" "टु वार्डस ए नान-वायलेंट रिवोल्यूशन" "मने केम बिसरे रे" "अग्नि कुंड में उगा गुलाब" और मारु जीवन एज मारी वाणी भाग-१ से ४ शामिल है।
नारायण देसाई ने जीवन के अधिकांश वर्ष खादी, नई तालीम, भूदान, ग्रामदान, शांति सेना एवं अहिंसक आंदोलन में बिताए हैं। उन्होंने सर्वोदय कार्यकर्ता, पत्रकार, एवं शिक्षाविद के रुप में भी यशस्वी कार्य किए हैं। "भूमिपुत्र" के स्थापक संपादक एवं "सर्वोदय जगत" (हिन्दी) एवं विजिल (अंग्रेजी के संपादन-प्रकाशन) में सहयोग दिया है। आपातकाल के दौरान वे भूमिगत रहकर कार्यरत थे। नारायण देसाई ने संपूर्ण क्रांति विद्यालय, वेलघी द्वारा सच्चे अर्थ में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं वैकल्पिक जीवन शैली के निर्माण का कार्य किया है।
उप-कुलपति सुदर्शन अयंगर का कहना है कि देसाई वैकल्पिक शिक्षा के जीवन्त उदाहरण हैं ।
८३ वर्षीय नारायण देसाई आज अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में आये। नारायण देसाई आजकल उनकी गांधी कथा के लिये मशहूर हो रहे हैं। उनका कहना है कि गांधी संदेश फ़ैलाने का यह अभियान ही उनका मुख्य कार्य है।
गुजरात विद्यापीठ का उनका कार्य उसी सीमा तक होगा जहां तक वह उनके इस मिशन में बाधा नहीं बनता। वे विद्यापीठ के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी भूमिका वर्ष में सात दिन की हाजरी के नियम तक सीमित नहीं रहेगी।
नारायण देसाई गांधीवादी है यह तो सभी को मालूम है। पर, उनकी सबसे बडी खासियत यह है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं पाई है। स्कूल में एकाध वर्ष ही उनकी औपचारिक शिक्षा है।महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के खुले विद्यापीठ में उन्होंने निरंतर शिक्षा प्राप्त की है। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। अभी तक उन्होंने लगभग ५० पुस्तकें लिखी हैं। उनकी मशहूर पुस्तकों में "संत सेवता सुकृत वाद्ये" "रवि छबि" "टु वार्डस ए नान-वायलेंट रिवोल्यूशन" "मने केम बिसरे रे" "अग्नि कुंड में उगा गुलाब" और मारु जीवन एज मारी वाणी भाग-१ से ४ शामिल है।
नारायण देसाई ने जीवन के अधिकांश वर्ष खादी, नई तालीम, भूदान, ग्रामदान, शांति सेना एवं अहिंसक आंदोलन में बिताए हैं। उन्होंने सर्वोदय कार्यकर्ता, पत्रकार, एवं शिक्षाविद के रुप में भी यशस्वी कार्य किए हैं। "भूमिपुत्र" के स्थापक संपादक एवं "सर्वोदय जगत" (हिन्दी) एवं विजिल (अंग्रेजी के संपादन-प्रकाशन) में सहयोग दिया है। आपातकाल के दौरान वे भूमिगत रहकर कार्यरत थे। नारायण देसाई ने संपूर्ण क्रांति विद्यालय, वेलघी द्वारा सच्चे अर्थ में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं वैकल्पिक जीवन शैली के निर्माण का कार्य किया है।
उप-कुलपति सुदर्शन अयंगर का कहना है कि देसाई वैकल्पिक शिक्षा के जीवन्त उदाहरण हैं ।
3 comments:
गुजरात विद्यापीठ सौभाग्यशाली है कि उसे नारायण देसाई जी की क्षत्रछाया मिलने जा रही है.
एक खबर आपने दी योगेश जी एक मै देता हू .ये हमारा सौभाग्य है कि हमारे बीच कुलपति नारायण देसाई जी के पुत्र श्री अफ़लातून जी मौजूद है.
अरूणजी
अफ़लातूनजी के बारे मे मुझे एक टिप्पणी के द्वारा ही जानकारी मिली थी। आपने भी यह जानकारी दी उसके लियी बहुत बहुत धन्यवाद।
आपको एक बात और बताये। अफ़लातूनजी के भाई नचिकेता देसाई अखबार्नगर मे मेरे पडौसी रह चुके है। इन्डियन एक्सप्रेस मे वे मेरे सह्कर्मी थे। नचिकेता का पुत्र सुकरात अहमदाबाद मे ही अखबारी आलम मे है।
इस सबके बाव्जूद यह हकीकत है की अफ़लातूनजी के बारे मे हमने हिन्दी चिठ्ठों से ही जाना।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद
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