खैर, हम यहां एक ऐसे सम्पादक के बारे में लिख रहे हैं जिसके बारे में यह मशहूर है कि वह कभी भी किसी रचना को वापिस नहीं लौटाता था। वह उसके कार्यालय में आई प्रत्येक रचना का उपयोग करता था।
यह था "वीसमी सदी" मासिक का सम्पादक हाजी मोहम्मद अल्लारखा शिवजी। १९१६ में शुरु हुआ यह प्रकाशन पांच वर्ष तक निकला। इसका हर अंक लाजवाब था। जैसा कि हम अपनी पिछली पोस्ट में लिख चुके हैं कि इसके रद्दी के अंकों ने कुछ मित्रों को इतना प्रेरित किया कि इस रविवार को उन्होंने इसका डिजीटल अवतार लांच किया।
मासिक में प्रत्येक रचना उसके हाथों से लिखी होती थी। आज के जमाने मे टाइम और न्यूजवीक कोपी राइटर रखते है , हाजी उस जमाने मे यह विचार लाया था उस जमाने में भी वह लेखकों को अच्छे पैसे देने में मानता था। दीपोत्सव अंक में उन्होंने गोवालणी नामक लघु कथा छापी। वह गुजराती की पहली लघु कथा थी। लोगों ने उसकी बहुत तारीफ़ की। हाजी ने अपने कुछ मित्रों को कहा को यदि मेरे पास पैसे होते तो मैं इसके लेखक रा।मलयानिल को सौ रुपये देता।
किसी सम्पादक को यह लगे कि उसने लेखक को कम पैसे दिये हैं यह एक बहुत ही बिरली घटना है। एक बार उन्होंने अपने एक लेखक मित्र के समक्ष इसका राज खोला। वो बोले मैं पैसे उडाता नहीं हूं। मैं मेरे प्रकाशन को लाभ के लिये भी नहीं करता हूं।
पर, उन्होंने कहा, मेरी इच्छा है कि मेरे गुजरात में कोई बर्नाड शो बने, कोई जी चेस्टटर्न बने, कोई एच जी वेल्स बने। ये नामक प्रखर विचारकों के हैं। आम आदमी उन्हें नहीं पढता। पर वीसमी सदी में हाजी का उद्देश्य था लोगों को मनोरंजक शैली में चित्रात्मक स्वरुप में ओतप्रोत जानकारी देना।
एक बार हाजी अपने मित्रों को नाचने गाने वाली महिलाओं के क्षेत्र में ले गये। एक लटके झटके वाली महिला आई। इनके मित्र काफ़ी अचम्भित। हाजी यहां क्यों लाएं। हाजी ने अपने इस मित्र, एक बहुत बडे चित्रकार, रविशंकर रावल को कहा कि घबराओ मत। मैं तुम्हें यह बताने लाया हूं कि, यहां की महिलाएं भी वीसमी सदी पढती हैं।
उस महिला ने तुरंत कहा कि हाजी इस बार का अंक नहीं मिला। हाजी ने कहा कि वो इस बार का अंक खुद लाये है। क्योंकि उनकी प्रति डाक में वापिस आई है !! ऐसे थे हाजी।
उनके ४,००० से अधिक सशुल्क ग्राहक थे। ए एच व्हीलर जो भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों को महत्व नहीं देता था वह भी वीसमी सदी रखता था। रु १५-१६ मासिक तन्ख्वाह वाले उनके चाहक मिल कर अठन्नी खर्च कर वीसमी सदी खरीदा करते थे।
यह सब हमने वीसमी सदी के डिजीटल स्वरुप के कार्यक्रम में दी गई जानकारी के आधार पर लिखा है। आप भी http://www.gujarativisamisadi.com/ क्लिक कर इस पत्रिका की भव्यता का नजारा देखिये।
5 comments:
वाह!!
शुक्रिया!!
वाह ...बड़ी अच्छी सूचना दी है आप ने..
एक बढिया जानकारी के लिए आपका धन्यवाद।
जानकारी देने के लिये धन्यवाद
Link ab kaam nahi kar rahi
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