मै पिछले कुछ दिन से सोच रहा था कि पूजा के प्रतिरोध मे मीडिया की नग्नता के बारे मे लिखू । कुछ देर पहले मसिजीवी का चिठ्ठा पढा। सो अब वो लिख रहा हूं जो आपको किसी अखबार मे पढने को नही मिलेगा । इससे पहले यह स्पष्ट कर दू कि मै पूरी तरह से यह मानता हू कि पूजा चौहान हमारे समाज की पुरूष केंद्रित सोच का शिकार है। गुजरात मे सौराष्ट्र ऎसा क्षेत्र है जो पूरे गुजरात मे धार्मिक क्षेत्र के रूप मे जाना जाता है, पर आर्थिक और क्षैक्षिक रूप से अन्य क्षेत्रो से बहुत ही पिछडा हुआ है ।
वास्तव मे यह सारा नग्नता का खेल कुछ पत्रकारों का है जिसमे एक प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है । हाल मे एक राष्ट्रीय परिसंवाद मे इस अखबार के वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह बहुत ही शर्मजनक घटना है और यह सब एक चैनल पत्रकार ने अपनी स्टोरी बनाने के लिये पूजा को उकसा कर किया । उन्होने कहा कि पूजा को दो साल के संघर्ष के बाद न्याय मिल रहा था, पर चैनल पत्रकार की स्टोरी नही बन रही थी। इसलिये उस पत्रकार ने उसे इस नग्न दौड के लिये उकसाया । संघर्ष से थकी पूजा हर तरीका आजमाना चाहती थी और इसलिये उसने नग्न दौड का दांव भी आजमा देखा ।
हमारे इस पत्रकार मित्र ने परिसंवाद मे पत्रकारिता के इस रूप के लिये माफ़ी मांगते हुए कहा कि एसी पत्रकारिता बहुत खराब है। हाल मे काफ़ी तालिया बजी। मंच संचालन मे लगे एक प्रमुख चैनल पत्रकार ने स्पष्ट्ता की कि वो हमारी चैनल नही थी । कुछ देर मे कार्यक्रम समाप्त हो गया ।
इस वरिष्ठ पत्रकार मित्र के पास कुछ चैनल पत्रकार मित्र गये। उसमे से एक ने कहा कि मित्र सुना है कि पूजा को उकसाने वाला पत्रकार आपके अखबार का ही था। अपने इन मित्र ने तुरंत जवाब दिया, तभी तो मै इतना अधिक जानता हूं ! चैनल पत्रकार भी एक दिग्गज चैनल से थे। क्या करते ? श्रोता तो भोजन के लिये जा रहे थे। फ़िर बोले तभी पहले दिनो मे आपका अखबार ही इसे चमका रहा था । वो यह हक़ीक़त किसे बताते कि वाह वाह लूटने के तरीके हजार है, सच जाये भाड मे !!!
6 comments:
यदि ये सच है तो बहुत गलत है.सिर्फ अपनी टी आर पी के चक्कर में किसी की जिन्दगी से खेलना कहां तक सही है.. मीडिया को इन हरकतों से बाज आना चाहिए... इसे भी पढ़ें
http://kakesh.blogspot.com/2007/07/blog-post_08.html
किसी चैनेल ने ऐसा किया तो ये तो और शर्मनाक है।
हर हाल में यह घटना शर्मनाक है.
बडी ही शर्मनाक घटना है ये...मीडिया को ऐसा नही करना चाहिये..
यह दर्शाता है कि अब पत्रकारिता का सच भी घिनौना है.
व्याव्सायिकता ने हमें कही का नही छोड़ा है.
नैतिक मूल्यों का पतन सबसे अधिक उन वर्गों में हुआ है जिन पर इनके रख रखाव का दायित्व सबसे अधिक है.
अरविन्द चतुर्वेदी
भारतीयम्
आजकल मीडिया का केवल यही काम रह गया है।
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