अपने अहमदाबाद से अपन को बहुत प्यार है । बडा अच्छा शहर है। नेता लोग कहते हैं कि अब यह मेट्रो है। शहर मे हमेशा कुछ न कुछ काम होता ही रहता है । यह देख कई बार जैन देरासर का ख्याल आता है । अहमदाबाद मे जैन बहुत हैं । देरासर भी बहुत हैं । हमेशा कुछ न कुछ काम होता ही रहता है । इधर भी ऎसे ही काम चलता रहता है।
हमारा नगर निगम कुछ न कुछ नया करता ही रहता है । पहले रात को अहमदाबाद को साफ़ करते थे। आजकल ये बन्दे रात को दिखलाई नही देते । शायद जल्दी सवेरे यह काम करते होंगे । बीच बीच मे आवारा पशुऒ को पकडने के अभियान भी चलते है । कभी कभी तो स्पेशल कुत्ता पकडो ड्राइव भी चलती है । अभियानो की एक विशेषता होती है । शुरू तो धूम धडाके होते है और चुपचाप बंद हो जाते है।
बहुत हो गया अहमदाबाद गान । अब मुद्दे की बात पर आते हैं । अपना अहमदाबाद कितना मेट्रो हुअ है यह तो नही मालूम पर यह हकीकत है कि शहर चौडा हो गया है । बहुत से नये गांव इसमे जुड गये हैं । गांव के आदमी जुड गये है। उनके साथ उनकी गाय भैस भी जुड गयी है । वैसे ही गाय भैस समस्या एक चुनौती थी, अब और गाय भैस शामिल होने से यह चुनौती महाकाय हो गई । हर समस्या का हल होता है। भले वह सफ़ल हो या न हो !
काफ़ी कुछ अधिकारी पर भी आधार रखता है ।अपने नये अहमदाबाद के डिप्टी म्यु कमिश्नर ब्रह्म्भट्ट काफ़ी उत्साही है। उनका कहना है कि उन्होने ७० सांड और २५० गाय भैस पकड लिये है। खुद ही पकडे होंगे, क्योकि उन्होने शाम को प्रेस नोट जारी कर घोषणा की कि वे वैभवी पश्चिमी क्षेत्र के सभी " सांड पकड इस क्षेत्र को सांड मुक्त कर देंगे " ।अब सांड पर ही फ़ोकस क्यो ? गाय- भैस पर क्यों नही ? ये तो अपने ब्रह्म्भट्टजी जाने । विश्वास है की वो लाल कपडे पहन कर नही खडे होंगे !
हमारा नगर निगम कुछ न कुछ नया करता ही रहता है । पहले रात को अहमदाबाद को साफ़ करते थे। आजकल ये बन्दे रात को दिखलाई नही देते । शायद जल्दी सवेरे यह काम करते होंगे । बीच बीच मे आवारा पशुऒ को पकडने के अभियान भी चलते है । कभी कभी तो स्पेशल कुत्ता पकडो ड्राइव भी चलती है । अभियानो की एक विशेषता होती है । शुरू तो धूम धडाके होते है और चुपचाप बंद हो जाते है।
बहुत हो गया अहमदाबाद गान । अब मुद्दे की बात पर आते हैं । अपना अहमदाबाद कितना मेट्रो हुअ है यह तो नही मालूम पर यह हकीकत है कि शहर चौडा हो गया है । बहुत से नये गांव इसमे जुड गये हैं । गांव के आदमी जुड गये है। उनके साथ उनकी गाय भैस भी जुड गयी है । वैसे ही गाय भैस समस्या एक चुनौती थी, अब और गाय भैस शामिल होने से यह चुनौती महाकाय हो गई । हर समस्या का हल होता है। भले वह सफ़ल हो या न हो !
काफ़ी कुछ अधिकारी पर भी आधार रखता है ।अपने नये अहमदाबाद के डिप्टी म्यु कमिश्नर ब्रह्म्भट्ट काफ़ी उत्साही है। उनका कहना है कि उन्होने ७० सांड और २५० गाय भैस पकड लिये है। खुद ही पकडे होंगे, क्योकि उन्होने शाम को प्रेस नोट जारी कर घोषणा की कि वे वैभवी पश्चिमी क्षेत्र के सभी " सांड पकड इस क्षेत्र को सांड मुक्त कर देंगे " ।अब सांड पर ही फ़ोकस क्यो ? गाय- भैस पर क्यों नही ? ये तो अपने ब्रह्म्भट्टजी जाने । विश्वास है की वो लाल कपडे पहन कर नही खडे होंगे !
7 comments:
कम से कम आप तो कुछ दिन घर से बाहर ना निकले हमे आपकी चिन्ता है :)
अरूण भैया आप कितने अच्छे है, आप इसी तरह अपने अनुभव बांट्ते रहें य्ही भगवान से प्रार्थना है। अब हमे भी आपकी काफ़ी चिंता हो रही है ।
ये तो लोचा हो गया, अपने ईस्वामी को अगर बेंगाणी बंधुओं से मिलने आना हो तो?
ईस्वामी सावधान. अहमदाबाद की तरफ बिल्कुल ना आएँ. :)
ईस्वामी जी ये आपके मानवाधिकारो(?) के खिलाफ है, मेनका गाँधी के साथ मिलकर इसके खिलाफ आवाज उठाये !
आप आगे बढेँ हम आपके साथ है !
मुझे अहमदाबाद की गायों और भैसों के भविष्य की चिन्ता हो रही है...
अरे! अब गोवंश-वृद्धि कैसे होगी? पशु-डॉक्टरों की शरण में जाकर इन्जेक्शन दिलाकर? टेस्ट-ट्यूब से जन्मे बछड़े बछड़ियाँ? सभी जर्सी पैदा होंगे? महापाप... महा-अनर्थ...
जर्सी गायें सिर्फ दूध ज्यादा (पर पतला) देती हैं, चारा कम, इंजेक्शन ज्यादा खाती हैं। जर्सी बैल किसी काम के नहीं होते, न बैलगाड़ी खीँच पाते हैं, न हल ही जोत पाते हैं, अत्यन्त कमजोर होते हैं, ऊपर से ज़रा सी धूप लगी कि नहीं,बीमार पड़े। कई ग्वालों के यहाँ देखा गया है कि जब कोई बछड़ा जन्म लेता है तो वे अपने भाग्य को कोसते हैं और उसे न माँ(गाय) का दूध पीने देते है और कुछ खाने को भी नहीं देते। कुछ ही दिनों में वह मर जाता है। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों की संख्या में गोहत्या के पाप के भागी अधिकांशतः हिन्दू ही होते हैं।
कुछ वैज्ञानिकों ने यह भी प्रमाणित किया है कि जर्सी गाय का दूध पीनेवाले पुरुष भी उसी बछड़े की तरह कमजोर तथा नालायक होते हैं। अतः जर्सी गाय का दूध पुरुषों को कदापि नहीं पीना चाहिए।
भैया! बहादुरों! असली मर्दों! ऐसे शहर में अब ना रहो, जहाँ देशी साँड ही न हों, मुक्त घूम गोवंश-वृद्धि न कर सकें। भाग लो वहाँ से।
शनि-कोप निवारण के लिए लोग साँड को फल, अन्न खिलाते हैं, अब किन्हें खिलाएँगे? शनि-का प्रकोप छानेवाला है वहाँ अब...
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