हमारी मासी हमारी मासी है। हमारा कहने का मतलब है कि वो अपने अमिताभजी की शोले वाली मौसी नहीं हैं । आजकल इस प्रकार की स्पष्टता बहुत जरूरी हैं ।
हमारी मासी पढने लिखने की बहुत शौकीन । प्रोफ़ेसर जो ठहरी। आजकल रिटायर्ड हैं । घूमती फ़िरती अहमदाबाद चक्कर लगा लेती हैं । आजकल यही है । गुजराती अखबार पढने का उनका शौक हमारे लिये कैसी कैसी समस्याऎ खडी कर देता है यह तो आप अनुभव करके ही जान सकते हैं ।
अपनी हिन्दी ठहरी सीधी सादी भाषा, जैसी बोली वैसी लिखी। अरे भैये वही जिसे फ़ोनेटिक कहते हैं अंग्रेजी मे। गुजराती मे मात्रा के नियम ही अलग है । उन्हें सब कुछ गडबड लगता है । खैर इसके लिए तो हमारे पास हाजिर जवाब है- गुजराती मे तो ऎसा ही होता है । वो भी मान लेती हैं । अगर उनकी जान पहचान का कोइ प्रोफ़ेसर होता तो शायद इस मुद्दे पर बहस कर लेती। समय भी कट जाता और पुराने प्रोफ़ेसरी के दिन भी ताजा हो जाते। खैर, वो सुबह सुबह एक दर्जन अखबार पढ कर चला लेती हैं ।
पर उनकी दूसरी समस्या ऎसी है, जो आपको भी कभी आयी हो। इस प्रकार की समस्या उन्हे आये दिन आती है। आज सुबह ही पूछ बैठी । भाजपा के बेचर भादाणी को पार्टी का नोटिस मिला या नही ? हम चक्कर मे पडे। देवीलाल और भजनलाल की बात करने वाली हमारी दिल्ली मासी को गुजरात की राजनीति मे यह कैसा रस ? खैर भैये राजनीति का भूत तो ऎसा है कब कैसे किसी पर चढ जाये कोई कुछ नही कह सकता। चुनाव के समय देखो कैसे कैसे लोग चुनाव मे खडे होने को तैयार होते हैं । पार्टी की टिकट न मिले तो निर्दलीय खडे हो जाते है ।
हमने पूछा कि बेचारे भादाणी से उन्हे क्या समस्या है। वो बोली एक अखबार मे लिखा है कि उसे नोटिस मिल गया है, दूसरे का कहना है कि अभी नही मिला। पर दोनो अखबार यह कहते हैं कि उसके तेवर अभी भी नरेन्द्र मोदी के खिलाफ़ हैं । हमने कहा की हमे तो मूल हकीकत पर जाना चाहिये की भादाणी की चाल बदली या वैसी ही है। रही बात नोटिस की वो आज नही तो कल मिल जायेगा। रूपालाजी ने जब भेजा है तब भादाणी को जरूर मिलेगा ।
अभी चैन की सांस ली ही थी की उनका दूसरा सवाल आया । फर्जी मुठभेड़ के किस्से मे पोलिस अधिकारी अमीन का क्या हुआ ? उसने तो जमानत ले ली थी । हम अवाक , ये मासी को क्या हो गया ? पहले पोलिटिक्स और अब पोलिस ।पूछा क्या बात है बोली कुछ नही , वो तो एक अखबार मे लिखा है कि वो गिरफ्तार हो गया और दूसरे मे लिखा है कि पूछताछ के बाद उसे जाने दिया । हकीकत क्या है?
अब क्या कहते ? कहा कि मालूम करना पडेगा । एक मास्टर की तरह उन्होने पूछा कि तुम पत्रकार करते क्या हो ? अरे भई यह सब तो तथ्य और आंकडो की बात है । इसमे अंतर कैसा ?
अब उन्हें कैसे समझाते की पत्रकार आलम का माजरा क्या है !! अपने मुख्य्मन्त्री नरेन्द्र मोदी भी चक्कर मे पड गये थे । हाल ही मे जामनगर गये थे । उस दिन उस क्षेत्र मे बाजार बंद का ऎलान था । एक अखबार ने लिखा था बाजार बन्द सफ़ल तो दूसरे ने लिखा था फ़्लोप शो । सच्चाई तो राम जाने।
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