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Wednesday, June 27, 2007

गुजरात विद्यापीठ को एक अदद गांधी की तलाश

पिछले कई महिनो से गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ को तलाश है एक गांधीवादी की जो इसका कुलपति बन सके । यह सुन आपको आश्चर्य होगा पर यह एक हकीकत है। रविन्द्र वर्मा के निधन के बाद से यह पद रिक्त है। वर्मा जी की खोज मे भी अच्छा खासा समय लग गया था और उनका कार्यकाल उनकी बीमारी का भोग बन गया था।
इस बार की खोज मे विद्यापीठ ने एक गांधीवादी ढूंढ भी लिया था । इस गांधीवादी की सबसे बडी विशेषता यह थी कि वह केवल गांधीवादी ही नही था, पर असली गांधी वंश का भी था। वह था गोपाल कृष्ण गांधी , असली गांधी का पौत्र और फ़िलहाल बंगाल का राज्यपाल । हम असली गांधी की स्पष्टता इसलिये कर रहे हैं क्योकि आजकल कमजोर सामान्य ज्ञान के दौर मे बहुत से लोगो के लिये गांधी परिवार मतलब इंदिरा-सोनिया परिवार !
उनके नाम की घोषणा भी हो गयी, गुजरात के अखबारों मे उनके फ़ोटो के साथ उनका जीवन परीचय भी छप गया । इतने मे ही समाचार आया कि वो यह पद स्वीकार नही कर सकते । कारण मे काम का बोझ या फ़िर कोल्कोत्ता और अहमदाबाद के बीच का अन्तर नही था। हुआ यह कि पद स्वीकार करने के बाद उन्होने गुजरात विद्यापीठ के नियम पढे।
हमेशा खादी पहरने के साथ साथ हर रोज चरखा कातने का नियम भी था । कहा जाता है कि ये नियम पढ उन्हे अहसास हुआ कि वो जिन्दगी मे कभी इतने चुस्त गांधीवादी तो थे ही नही । उन्होने साफ़ कह दिया कि भई मै इस पद को ग्रहण नही कर सकता क्योकि मै कभी चुस्त गांधी रहा ही नही हूं। हालांकि गुजरात विद्यापीठ की आला कमान ने तो कोल्कोत्ता जा उन्हे मनाने का भी सोचा, पर पत्र दोबारा पढ उन्हे लगा कि भले ही वो गांधीवादी नही है पर गांधी जैसे सत्य के आग्रही है और वो इस पद को नही स्वीकारेंगे ।
खैर गुजरात विद्यापीठ ने एक बार फ़िर से गांधीवादी की तलाश शुरु कर दी है । १९२० मे जब मकोले की शिक्षा पद्धति के जवाब मे गांधी ने उनकी शिक्षा पद्धति वाली गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की थी तब उन्होने ऎसी स्थिति के बारे मे शायद ही सोचा हो। गुजरात विद्यापीठ की स्थापना का हेतु एक ऎसी शिक्षा प्रणाली लाना था जो तीन R के जवाब मे तीन H यानी कि हेड, हार्ट और हेंड के विकास पर केंद्रित हो ।

और अगर हम मुन्नाभाई प्रभाव को देखें तो अभी एक पीढी की खेप के बाद ही थोडा पका हुआ गांधीवादी मिल सकेगा। क्या इसका कोई हल है या नही, या फ़िर गुजरात विद्यापीठ हेड्लैस रहेगी ?
भैये मुद्दा गांधीवादी का नही है। गुजरात विद्यापीठ मे आधा दर्जन सही लोग है । बस समस्या एक ही है, वो एक दूसरे की टांग खिचाई मे इस कदर लगे हुए हैं कि सब नाम रद्द कर दुनिया मे खोज मे लगे रहते हैं।
बहुत कम को यह मालूम है कि यह अप्ने प्रकार की एक ही विध्यापीठ है और गांधीजी के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल, राजेन्द्र प्रसाद और मोरारजी देसाई इसके कुल्पति रह चुके हैं ।

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

चलिए देखते हैं कि गांधी के इस देश में इतना चुस्त गांधी कब मिलता है!

वैसे अगर शैक्षणिक या राजनैतिक पैमाना कुछ खास न हो, सिर्फ़ खादी पहनना और रोज चर्खा कातनाया फ़िर इसी तरह के अन्य गांधीवादी क्रियाकलाप ही पैमाना हों तो फ़िर तो जो स्वतंत्रता सेनानी जीवित हों उन्हें बनाया जा सकता है!

मै स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार से हूं पिता को जब तक जीवित देखा खादी ही पहने देखा, पिता के रिश्ते के भाई अर्थात हमारे एक चाचा जो कि सांसद भी रह चुके हैं उन्हे आज भी हम खादी पहनते और सायकल पर चलते देखा ही करते हैं। आजकल वह भी अस्वस्थ चल रहे हैं।

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