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Wednesday, December 5, 2007

बुरे फ़ंसे विहिप नेता

विश्व हिन्दु परिषद के अंतरराष्ट्रिय अध्यक्ष अशोक सिंहल की हालत खस्ता है । तेजाबी निवेदन करने वाले सिंहल्जी को मालूम नही था कि संतो के बारे मे किया गया उनका बयान उनको कितना भारी पडेगा। उन्होने मोदी का विरोध करने वाले संतो के मान्सिण्घ और जयचंद कहा। इस समाचार का छपना क्या था कि गुजरात मे भूचाल आ गया। संतो ने सिंहल को सबक सिखा देने का एलान कर दिया।

मोदी की पैरवी का यह अंदाज इतनाभारी पडा कि आर एस एस ने उन्हे तत्काल संतो की माफ़ी मांगने का फ़रमान दे डाला। साफ़ है कि गुजरात के साधु संत वैसे ही मोदी के खिलाफ़ मोर्चा खोले बैठे हैं। उधर उमा भारती के चेले भी ५१ बैठको पर मोदीजी के सामने बंदूक ताने बैठे हैं । एसे मे संतो को नारज करना मतलब आग मे घी डालना हैं।

नतीजन अपने अशोकजी को आज गुजराती अखबारों मे बडे बडे विज्ञापन दे माफ़ी मांगनी पडी। उन्होने जयचंद और मानसिंह जैसे शब्दो का प्रयोग किया था। समाचार दो कालम के थे, खुलासा चार कालम का। मूल समाचार की लंबाई १० से.मी और खुलासा ३० से.मी लम्बा। साफ़ है जिन्होने समाचार नही पढा था उन्होने खुलासे से अशोकजी के खतरनाक भाषा प्रयोग के बारे मे जाना!!

उनके इस माफ़ी विज्ञापन का शीर्षक है-संतो के अपमान के बजाय मै मरना अधिक पसंद करूंगा। उन्होने यह भी बताया कि वे संत सेवक परिवार से हैं । मैं संतो के अपमान की बात स्वप्न भी नही सोच सकता।

अशोकजी ये तो बताईये की आपको इतना बडा विज्ञापन देने की जरूरत क्यो पडी। अगर आप की बात मे इतना ही दम था तो संत आपके मौखिक खुलासे से ही क्यो नही मान गये। और मजेदार तो यह है कि उन्होने खुद को संतो का रजकण कहा है।

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