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Sunday, December 2, 2007

सुरिन्दर भाई टिकट उडा लाये

अपने सुरिन्दर भाई तो भाई ही हैं । हर दो तीन साल में कुछ कमाल दिखला ही देते हैं । बडी दाडी और गुस्सैल तेवर। सुरिन्दर भाई तो राजपुताना अंदाज बता ही देते हैं। तीन बार हार चुके है। लगा कि शायद पत्नि को खडा कर उसके भाग्य से खुद को चमकाये, पर समय ने साथ नही दिया। फ़िर भी अपने सुरिन्दर भाई राजपुत तो सुरिन्दर भाई हैं। हिम्मत नही हारी। पहुच गये दिल्ली, विधान सभा की टिकट के लिये। डेरा डाल दिया गुजरात भवन में । और टिकट वांछुऒ की तरह सुबह शाम सभी के दरबार मे चक्कर लगाते और कहते की कुछ भी हो जाये, टिकट ले कर ही जायेंगे।

बरसों दिल्ली मे ऎ आई सी सी मे चप्पल घिसटने के बाद अपने सी ऎम राजपुत ने भी इस बार ठान ली कि वो भी टिकट ले कर ही रहेंगे। आकाऒ को कह दिया कि अब और काम काज नहीं। अब तो हम एम एल ऎ बन कर ही रहेंगे। हालत यह कि, कोइ भी पूछे कि सी एम कहां हो आजकल, तपाक से जवाब देते, ६९ दरियापुर-काजीपुर।

ये दो कम नही थे तो अपने कब्बडी उस्ताद हेमंत झाला भी मैदान मे कूद पडे, जै राजस्थान का नारा लगा कर। राजस्थनियो के शाहिबाग मे रहने वाले हेमन्त भाई का कहना था कि उनकी जैन बीबी जिस पर वो पहली नजर मे ही फ़िदा हो गये थे वो उनका एक बहुत बडा वोट बैन्क हैं। इस इलाके मे जैन काफ़ी अधिक संख्या मे हैं।

मजेदार बात तो ये कि दिल्ली मे ये आराम से एक साथ मिलते और चाय पिते हुए बतियाते और अपने एक सूत्री मिशन पर निकल जाते। खैर आखिर मे यह साफ़ हो गया कि ६९ दरियापुर-काजीपुर तो लोजप को मिलेगी।

पर अपने सुरिन्दर भाई तो दिल्ली से नेताजी के अंदाज मे आये। समर्थकों को हवाई अड्डे पर स्वागत के लिये बुलवा लिया। घोषणा कर दी कि टिकट तो उन्हे ही मिलेगी। सब दंग। खैर दबंग सुरिन्दर भाई अपने प्रदेश अध्यक्ष भरतसिंह के खास ठहरे ।

बाद मे मालूम चला कि आखिरी दिन सचमुच मे ही सुरिन्दर भाई ने नामांकन पत्र भर डाला। कुछ का कहना था कि भरतभाई के गिरेबान थाम सुरिन्दर भाई टिकट ले आये। अपने भाई को सब जानते हैं। वो यह सब कुछ कर सकते है। उधर भरत भाई फ़ोन उठावे तो कोई उनसे हकीकत पूछे। वैसे वो उठाते या उनसे मिलते तब भी किसी की हिम्मत नही कि वो कुछ पूछ सके। वो कब क्लास लेना शुरू कर दें कोई कह नहि सकता। एक बार उनका पीरियड शुरू हुआ नही कि खत्म कब होग कोई नही जानता।

बाद मे मालूम पडा कि उन्हे भरतभाई ने लोजपा को फ़िट करने के लिये सशर्त इजाजत दी थी। पर अपने सुरिन्दर भाई तो अडे ही रहे कि टिकट तो उन्हें ही मिली है। आखिरी दिन तो अपने सुरिन्दर भाई गायब ही हो गये। कांग्रेस के नेता जब चुनाव आयोग मे पहुचे तब मालूम पडा कि सुरिन्दर भाई के बिना तो कुछ भी नही। समय पूरा हो गया। सुरिन्दर भाई का नाम मतदान पत्र मे आ गया। भाड मे गई कांग्रेस और कांग्रेस के नेता। नेता तो बस अपने सुरिन्दर भाई !!!!!

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