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Sunday, September 9, 2012

राज ठाकरे गुर्राए- अरनब मिमियाए !

टाइम्स नाउ पर राज ठाकरे का इंटरव्यू देखा. जोर जोर से गिट पिट अंग्रेजी बोल चर्चा मे भाग लेने वालों को घबरा देने वाले अपने अरनब गोस्वामीजी की तो कुछ ही क्षणों मे सिट्टी पिट्टी गुम हो गई.देख कर लगता था बेचारे अरनब भैया अब रो पड़ेंगें. वैसे रूमाल ठकरे के हाथ मे था और बार बार वो अपनी नाक पोंछ रहे थे.

खैर आगे कुछ लिखें उससे पहले यह स्पष्ट कर दे कि हम राज ठकरे के पक्ष मे नहीं लिख रहे हैं. हम तो अरनबजी ने इतने बडे चैनल के प्लट्फोर्म से मीडिया की जो किरकिरी करवाई उसे बयां कर रहे हैं. और इससे उन्होंने जिस तरह से ठाकरे गुट की ताकत को एक बार फिर ताजा किया वो बतला रहे हैं.

एक बात साफ थी. अरनब बार बार घबरा रहा था और हकला रहा था. यह उसके आत्मविश्वास की कमी थी या फिर ठाकरे की बार बार गुर्राहट और अंगुली उठाने का परिणाम था ये तो राम जाने या फिर अरनब जाने. पर यह तो साफ था कि अरनब ठीक तरह से होम वर्क किये बिना आये थे. कई बार तो ऐसा लगा कि राज ठाकरे अरनब का इंटरव्यू ले रहा है.

मजेदार बात तो यह है कि राज ठाकरे बार बार यह कह रहा था कि उसकी नाराजगी हिन्दी चैनलों से है, पर अरनब ऐसे मुंडी लतका के बैठे थे कि मानो ठाकरे ने उन्हे अपने दरबार मे सजा के लिये बुलाया हो. अभी बोनी कपूर ठाकरे के दर्बार मे जा एक टेलीवीजन प्रोग्राम की मंजूरी ले कर आये हैं . शायद इसी का परीणाम हो!

ठाकरे ने तीन चार बार खुली धमकी दे डाली की चैनल अपनी तरह से समाचार दिखाये और वो चैनलों को देख लेंगे. मिमियाते अरनब पूछते हैं कि आप क्या कर लेंगे और गरजते ठाकरे कहते हैं देख लेना. देख कर लगता हे नहीं था कि ये वही अरनब हैं जो रोज शाम इतना चीखते हैं कि कमजोर दिल वाला आदमी तो घबरा जाये.

अरनब आशा ताई और अन्य का मुद्दा उठाते हैं जिसमे ठाकरे गुट ने फतवे जारी किये. ठाकरे ने उन्हे सही बताते हुए कहा कि आप कौन होते है हमे सिखलाने वाले कि हम क्या बोले क्या नहीं. अपने अरनब चुपचाप अगला सवाल पकड लेते हैं.

और आखिर मे अपने अरनब भैय्या राज भैय्या की हिन्दी की तारीफ करते हुए शरद यादव के मशहूर डब्बे से विदा लेते हैं. हमरे जिन पाठकों को डब्बे की कहानी नही मालूम उन्हें बतादे कि अन्ना हजारे के पहले आंदोलन के समय लोक सभा मे शरद यादव ने उनकी लाक्षणिक शैली मे चैनल वालों के लिये डब्बे वाले शब्द का प्रयोग किया था.

ठाकरे के सामने तो यह डब्बा डब्बा ही हो गया. खैर उस कार्यक्रम को रविवार को भी दिखलाय गया. आखिरकार ठाकरे से TRP बढती है फिर वो राज ठाकरे हों या अल ठाकरे, और इसके लिये भले ही अरनब की छवी मिट्टी मे मिले.

2 comments:

समीर शाह said...

शर्माजी आपने बिलकुल ठीक लिखा है. वास्तव मे अरनब को तैय्यारी कर ठाकरे का इंटरव्यु लेना चाहिये था. मैने भी शनिवार रात यह कार्यक्रम देखा था. वास्तव मे लग ही नही रहा था कि यह वही अरनब गोस्वमी है जो टाइम्स नाउ के डब्बे पर हर शाम जोर जोर से चीखता है.
आज जरूरत है कि प्रादेशिक मुद्दों पर अलगाववाद जगाने वाले ठाकरे जैसे लोगों के सामने कडी कार्रवाइ की जाये. अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब हमें भारत के ही राज्यों में जाने के लिये वीजा की जरूरत होगी.
इस बेबाक लेख के लिये आपको बधाई. लिखते रहिये हम जैसे तो पढेंगे ही.

Mihir Bholey said...

इस बात में कोई शक नहीं कि जिस तरह की नफरत भरी राजनीति ठाकरे परिवार करता आ रहा है हैं उससे समय-समय पर देश की एकता और अखंडता के लिए भीषण खतरा पैदा हुआ है। भारत का कोई भी हिस्सा किसी एक परिवार, जाति या समुदाय के की विरासत नहीं कि उसकी मर्ज़ी के बिना वहाँ एक पत्ता भी न खड़के। किन्तु बिहार और उत्तर भारत ही क्यों, इस मुद्दे पर तो पूरे देश से विरोध के स्वर उभरने चाहिए। लेकिन क्या ऐसा हुआ, क्या केरल, तमिलनाडु, पंजाब, बंगाल, ओड़ीशा या किसी भी अन्य राज्य ने इस पर अपना विरोध जताया? ऐसा नहीं लगता क्या कि विविधता में एकता का राग अलापने वाले इस देश की सच्चाई सिर्फ इसकी भौगोलिक एकता ही है भावनात्मक एकता नहीं?

प्रश्न कई सारे हैं किन्तु बहुचर्चित ‘राज-अरनब इंटरव्यू’ के दौरान हमारे चहेते वाक-योद्धा अरनबजी शायद अपना ‘होमवर्क’ सही ढंग से कर के नहीं गए थे। राज उनके मुकाबिले ज्यादा आक्रामक और चतुर थे सो उन्होने पूरी लड़ाई का मुख बिहार बनाम महाराष्ट्र से मोड़ कर मीडिया बनाम राज पर केन्द्रित कर दिया और साथ ही मीडिया की सबसे कमजोर नस टीआरपी तमाशा और “सेनशेसनलिज़्म” पर निशाना साधते हुये सिद्ध कर दिया ऊंट जब पहाड़ के नीचे आता है तो उसे भी अपनी ताकत का सही अंदाज़ा लग जाता है। राज निश्चित रूप से राजनीति का राजधर्म नहीं निभा रहे हैं और उसका जुर्म उनपर आज-न-कल आयद तो जरूर होगा पर राज के मुद्दे से अलग जहां तक मीडिया की तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रश्न है तो उसपर भी गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई राज किसी अरनब को दबोच न सके।

मिहिर भोले
सीनियर फ़ैकल्टी
एन आइ डी, अहमदाबाद

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