पिछले कई वर्षों से सरकार का बजट बस आंकडों का मायाजाल बन कर रह गया है। सरकार करों मे वृद्धी और कटौती के खेल से आम आदमी को छलती रहती है। अब गुजरात सरकार के इस बार के बजट को ही ले लो।
वित्त मंत्री नितिन पटेल का यह पहला बजट था। वैसे इसका कोई खास फर्क नही पड़ता। बजट तो बाबू ही बनाते हैं। पर बाबू लोग भी क्या करें। कुछ रहा ही नहीं कर लादने के लिये। तो हर साल होता है संगीत कुर्सी जैसा खेल।
सिगरेट और तम्बाकू की लगभग हर दूसरे बजट मे शामत आ जाती है। हानिकारक बता इन चीजों पर कर का दर बढा दिया जाता है। इस बजट में सिगरेट पर कर २५ से ३० प्रतिशत कर दिया गया। सरकार को भी मालूम है कि स्वास्थय के लिये हानिकारक की चेतावनी के बावजूद लोग इन्हें नहीं छोड़ेंगे। लत जो लगी हुई है।
सरकार कर लगाने के नये नये रास्ते ढूंढती रहती है। अब कार्बन क्रेडिट का मुद्दा ही लो। यह सारा खेल दुनिया में प्रदूषण कम करने के लिये हो रहा है। कार्बन की खपत कम करने के लिये प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं। इससे कार्बन क्रेडिट का अलग सट्टा बाज़ार शुरू हो गया है। लोग कमाने का कोई रास्ता ही नही छोड़ते।
उधर सरकार भी टैक्स लगाने की ताक लगाये रहती है। इस बार वित्त मंत्री नितिन पटेल ने साफ कर दिया कि अब कार्बन क्रेडिट के धंधे में सरकार भी अपना हिस्सा लेगी बतौर टैक्स के। ठोक दिया ५ प्रतिशत टैक्स। अब शुरू हो गया टैक्स का खेल। शायद अगले वर्ष यह बढ़ कर दस हो जाये फिर बारह …।
पिछले साल सरकार ने सेकन्ड हैन्ड कारों की खरीद फरोक्त पर टैक्स लगाया था। इस बार दुपहिया वाहनों पर ठोक दिया । अगली बार दोनो पर टैक्स बढ़ जायेगा अगर कोई नया मुद्दा नही मिला तो।
वर्षों हो गये यह सुने हुए कि सराकार ने मंत्रियों और बाबुओं के खर्च मे कटौती की है या फिर अब बाबू नजदीक की जगहों पर गाड़ी मे जायेंगे या फिर चार बाबू मिल कर एक ही गाड़ी का उपयोग करेंगे।
कैसे हो यह। बजट बनाने वाला बाबू और बजट मंजूर करने वाला मंत्री! इन दोनों के बीच मे फंसे हम और तुम।
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