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Sunday, March 2, 2014

गु युनि चुनाव परिणाम-कांग्रेस का दिल बहलाने के लिए ख्याल अच्छा है

आखिरकार गुजरात युनिवर्सिटी के चुनाव परिणामों की घोषणा हो ही गई।पिछले दो दिनों से जिस तरह से मार पीट का माहोल बन गया था लगता था कि यह समस्या आसानी से हल नहीं होगी। खैर मतगणना हुई और परिणाम भी घोषित हो गए। अपने कांग्रेसी नेताओं को इन परिणामों में लोकसभा चुनावों की गर्दिश में चमकते तारे दिखलाई दे रहे हैं। क्यों न दिखें?
सीनेट में १० में से छह बैठक कांग्रेस की एनएसयूआई ने जीत ली हैं। स्टूडेंट वेलफेयर में तो कांग्रेस और भी बुलंद है। १४ में से बारह बैठक जीती हैं उसके बंदों ने। आज जब सभी लोग कांग्रेस को लोकसभा चुनावों काफी पीछे देख रही है, ये परिणाम काफी उत्साह वर्धक हैं।
 एक कांग्रेसी नेता ने इन चुनाव परिणामों का गणित हमें समझाया। बोले आज जब युवा मत चुनावों में निर्णायक है, ये परिणाम कांग्रेस की बेहतर स्थिति को दर्शाते हैं। भले गुजरात में आजकल कई युनिवर्सिटीयां बन गई हैं, गुजरात युनिवर्सिटी सबसे बड़ी और सबसे पुरानी युनिवर्सिटी है। साफ है कि यह आने वाले लोकसभा चुनाव पर कांग्रेस के प्रभाव का संकेत है।
हमें हमारे ये कांग्रेसी मित्र किसी टीवी चैनल पर चुनावी सर्वे की बात करते हुए लगे। मित्र बोले कि इस गुजरात युनिवर्सिटी के छात्रों का प्रभाव सात लोक सभा चुनाव क्षेत्रों पर होगा। उन्होने गिटपिट ये संसदीय क्षेत्र गिना दिए- अहमदाबाद पूर्व और पश्चिम, खेड़ा, आणंद, छोटा उदयपुर, गोदरा और दाहोद। मतलब २६ में से सात पर तो कांग्रेस आबाद!
इन परिणामों ने नरहरी अमीन का गुजरात युनिवर्सिटी की राजनीति में बौनापन भी सिद्ध कर दिया, नेताजी बोले। विधानसभा चुनाव के दौरान वर्षों का कांग्रेस का साथ छोड़ मोदीजी का साथ पकड़ने वाले नरहरीभाई काफी दिग्गज नेता रहे हैं गुजरात युनिवर्सिटी की राजनीति में।
खैर अब तो अपने नरहरीजी योजना आयोग के उपाध्यक्ष के रूप में लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमते हैं, कांग्रेस के लिए तो वे पुराने छात्र नेता ही हैं।और इस दृष्टि से तो यह नरहरीजी की हार ही है। यह बात अलग है कि नरहरीजी की दृष्टि अब काफी विशाल हो गई है। वे बड़े पैमाने पर कांग्रेस में तोड़ फोड़ के मिशन पर लगे हुए हैं। गुजरात युनिवर्सिटी की राजनीति अब उनके लिए गौण हो गई है।
पर हमें अपने कांग्रेसी मित्र की यह बात गले नहीं उतरी। भैये जहां तक गुजरात युनिवर्सिटी का सवाल है, यह तो कांग्रेसियों का गढ है। पिछले दस वर्षों में भी कांग्रेस का ही बोलबाला है। इसके बावजूद अहमदाबाद शहर को लें तो यहां मोदीजी की भाजपा का ही बोलबाला है, नगर निगम से ले लोकसभा तक।
साफ है कि ये युवा छात्र राजनीति में भले ही कांग्रेस के साथ हों, राज राजनीति में तो वे अपने पंजे पर कमल ही लगाएंगे।

खैर आज के जमाने में सकारात्मक सोच (पॉवर ऑफ पोजीटिव थिंकिंग)का बहुत बड़ा बाजार है। कांग्रेस के लिए बने निराशावादी माहौल में उनके नेताओं के लिए उनकी छात्र शक्ति का ख्याल अच्छा है!!!

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