गुजरात की यह घटना एक अपराध कथा से काफ़ी कुछ ज्यादा है. हिन्दी फ़िल्म की तर्ज पर है इसकी कथा. कुछ दिन पहले ही राजधानी गांधीनगर से लगभग १२५ किलोमीटर दूर एक गांव मे तीन भाईयों ने पुलिस स्टेशन के निकट ही बहन के प्रेमी को मार डाला. हिंदी फ़िल्म के एक सीन की तरह पूरे गांव के लोग यह सब कुछ देखते रहे. कोइ कुछ नही बोला. कोइ बचाने नही आया.
ट्रेक्टर से बांध इस युवक को घसीटा गया. जब वो बेहोश हो गया तब उसे छोड ये सब भाग गये. उसने पानी मांगा, किसी ने पानी भी नही दिया. अखिरकार कीचड के पानी को चुल्लु मे भरता हुआ यह युवक मर गया.हिंदी फ़िल्मों की तरह पुलिस कई घंटो के बाद आयी. पुलिस अफ़सर फ़ोन बंद कर बैठ गये.
उसका कसूर केवल इतना था कि उसने इनकी बहन से प्यार किया था. दोनो कुछ दिन के लिये लुप्त हो गये थे. एक दिन पहले ही वापिस आये थे. दोनो पटेल जाति के ही थे.ना जाति का फ़र्क ना ही कोइ और अंतर. बस पैसे की खाई.
इन भाईयों के लिये बहन उनकी जायजाद थी। गांव के लोगो के लिये बुरे लोगों के मूंह नही लगने वाली बात थी। सब देखते रहे कोइ कुछ नही बोला. अपने पुलिस वालों के लिये तो क्या कहिये.अखबारों मे बात उछलने से तीन दिन बाद पुलिस ने कुछ लोगो को पकडा है. पर क्या गांव के लोग गवाही देंगे? जो नामर्द बन पूरी घटना देखते रहे और उस युवक को प्यास से तडफ़ते देखते रहे, उनसे आप क्या आशा रखते है ? और पुलिस जो घटना के समय गायब हो गई उससे आप क्या आशा रखते हैं ? क्या वो इन भाई लोगों के विरुद्ध पक्का केस बनायेगी ?
और आप लोगों का हमारी संवेदनहीनता के बारे मे क्या मानना है ?
ट्रेक्टर से बांध इस युवक को घसीटा गया. जब वो बेहोश हो गया तब उसे छोड ये सब भाग गये. उसने पानी मांगा, किसी ने पानी भी नही दिया. अखिरकार कीचड के पानी को चुल्लु मे भरता हुआ यह युवक मर गया.हिंदी फ़िल्मों की तरह पुलिस कई घंटो के बाद आयी. पुलिस अफ़सर फ़ोन बंद कर बैठ गये.
उसका कसूर केवल इतना था कि उसने इनकी बहन से प्यार किया था. दोनो कुछ दिन के लिये लुप्त हो गये थे. एक दिन पहले ही वापिस आये थे. दोनो पटेल जाति के ही थे.ना जाति का फ़र्क ना ही कोइ और अंतर. बस पैसे की खाई.
इन भाईयों के लिये बहन उनकी जायजाद थी। गांव के लोगो के लिये बुरे लोगों के मूंह नही लगने वाली बात थी। सब देखते रहे कोइ कुछ नही बोला. अपने पुलिस वालों के लिये तो क्या कहिये.अखबारों मे बात उछलने से तीन दिन बाद पुलिस ने कुछ लोगो को पकडा है. पर क्या गांव के लोग गवाही देंगे? जो नामर्द बन पूरी घटना देखते रहे और उस युवक को प्यास से तडफ़ते देखते रहे, उनसे आप क्या आशा रखते है ? और पुलिस जो घटना के समय गायब हो गई उससे आप क्या आशा रखते हैं ? क्या वो इन भाई लोगों के विरुद्ध पक्का केस बनायेगी ?
और आप लोगों का हमारी संवेदनहीनता के बारे मे क्या मानना है ?
2 comments:
ऐसे में अखबार वालो की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, आम आदमी भयग्रस्त होता है तब अखबार उसकी आवाज बनते है. क्या सचमुच ऐसा होगा की अखबार वाले पूलिस पर दबाव बनाएंगे.
इससे तो अच्छा था रावण, जिसने अपनी 'बहन' सूपर्णखा की जरा सी इच्छा ठुकराने वाले से पंगा लेकर अपनी जान तक दे दी।
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