आजकल गुजरात की राजनीति
में एक नया दौर आया है। नमो दौर। विपक्षी नेता इसमे बहते बहते कमल के सागर में आ रहे
हैं । जो मोदी को राजनीति का भाई कह अलग चौका लगा बैठे थे वे अब “अपने हृदय” की बात
सुन नमो के पास आ रहे हैं।
गोरधनभाई की कृष्ण लीला
हर सांस में मोदी को
कोसने वाले अपने गोरधनभाई ने आज अपनी कृष्ण लीला दिखलाई। वे अपने पूरे दल गुजरात परिवर्तन
पार्टी के साथ भाजपा में आ गये। हकीकत में तो गोररधनभाई और उनके साथी भाई वापिस उनकी
मातृ संस्था भाजपा में वापिस आ गए ।
गोरधन भाई काफी चतुर
और वाक पुट वाले व्यक्ति हैं। हर सवाल का जवाब तैयार है। बोले अपने गुजरात के मोदीजी
देश के प्रधानमंत्री बन रहे है यह बड़ी बात है। बाकी सब कुछ गौण और फिर उन्होने मीडिया
को बताया कि यह किस प्रकार राष्ट्र हित की बात है।
मोदीजी के सामने भ्रष्टाचार
के उनके आरोपों को जब पत्रकार मित्रों ने याद दिलाया तब तपाक से जवाब आया मोदीजी ने
इस मुद्दे पर जांच बैठा दी है और जो भी बाहर आएगा वह सत्य होगा। बोले परिवर्तन पार्टी
के विलीनीकरण के लिए सब तैयार हैं।
इस पार्टी के संस्थापक
केशुभाई जिन्होने हाल ही में नादुरूस्त तबियत को आगे रख इस्तीफा आगे रख दिया था वो
भी तैयार हैं। देखा जाए तो यह तो उनके इस्तीफे से ही साफ था कि वे विलीनीकरण को हरी
झंडी दे रहे थे खुद को अलग रख कर। सब कुछ गोरधनभाई सम्भालें।
केशुभाई के साथ यही
सबसे बड़ी समस्या है। कभी आगे से वार करने या लीडरी करने में वे मानते ही नहीं है।
इसका यह परिणाम रहा कि उनके भाजपा में रहते हुए ही उनके अधिकतर साथी मोदीजी के चौके
में दावत का मजा लेने में लग गए। और जब उन्होने भाजपा छोड़ी तो वे अकेले ही थे।
एक रु के भी नहीं हैं सुरेश महेताजी
रही बात अपने पूर्व
मुख्यमंत्री सुरेश महेताजी की। उन्होने इस विलीनीकरण का जम कर विरोध किया है। गोरधनभाई
से जब इस मुद्दे पर प्रश्न किया तो बड़ी बेबाकी से बोले, सुरेशभाई बड़े अच्छे व्यक्ति
हैं। पर उन्होनें इस परिवर्तन पार्टी में एक रु का चंदा भी नहीं दिया है। लो सुरेशभाई
देखो आपकी क्या हैसियत है। एक रु के भी नहीं हैं आप।
आज अपने दो कांग्रेसी
भाई भी मोदीजी के कमल मैदान में उतरने के लिए तैयार हो गए। इन दोनो विधायकों ने आज
विधान सभा अध्यक्ष वजुभाई वाला को इस्तीफा दे दिया। पहले तो विधायक प्रदेश अध्यक्ष
या फिर विधायक दल के नेता को इस्तीफा दे थोड़ा बहुत रूठने मनाने की जगह भी रखते थे।
अब तो उनके इस्तीफे से ही प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता को मालूम पड़ता है कि
बंदा गायब।
इनमे एक थे अपने छबील
पटेल। पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश महेता को उनकी पिच कच्छ की मांडवी में हरा विधान सभा
में एन्ट्री मारी थी उन्होने। और इस बार कच्छ के ही अबडासा से विधान सभा में आए। कच्छ
के मशहूर हरे खजूर को देश में लोकप्रिय बनाने वाले अपने छबीलभाई को मालूम नहीं कि कमल
में कैसे खजूर दिखे कि वो दौड़े दौड़े नमो प्रवाह में कूद गए।
भाजपा में हजूरिया-
खजूरिया युद्ध कराने वाले उनके गुरू शंकरसिंहजी ,जो अब कांग्रेस विधायक दल के नेता
हैं , उन्हे सोनियाजी के राजनीतिक सलाहकार को जवाब देना भारी पड़ा कि छबील कैसे कांग्रेस
की आबरू लील कर चला गया!
प्रभु वसावा, कांग्रेस
का सूरत जिला के मांडवी का विधायक, दोपहर को दौड़ कर अध्यक्ष के पास गया और इस्तीफा
दे आया। पश्चिम में छबील और दक्षिण में प्रभुजी, सब नमो नमो।
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