अहमदाबाद की ऐतिहासिक
ढाल नी पोल में सेवा नी हवेली अब नये रंग रूप में शुरू होने जा रही है। शहर के 604 वें
वर्ष की शुरोआत में। यह हवेली स्वैच्छिक संस्था सेवा का एक डिजाइन केन्द्र है जहां महिला
दस्तकार उनकी विरासत में मिली हस्तकला को आय का एक बेहतर माध्यम बना सकती है।
नये रंग रूप में इसकी
कोलोनियल शैली और दस्तकारी में एक रिश्ता झलकता है। हालांकि पिछले 25 वर्ष से यह डिजाइन
केन्द्र यहां चल रहा है, 2002 के भूकम्प में 100 वर्ष से भी अधिक पुरानी यह हवेली काफी
क्षतिग्रस्त हो गई थी। पिछले दस महिने से चल रहे कामकाज के बाद इसे अब शुरू किया जा
रहा है।
राज्य की 13 सहकारिताओं
की 500 से भी अधिक महिलाएं यहा काम करती हैं। पेच वर्क, ब्लॉक प्रिंटिंग जैसी कलाओं
का अब जीवंत प्रदर्शन भी देखा जा सकेगा। इस हवेली से जुड़ी ललिता क्रिश्नास्वामी का
कहना है कि अब यहा इन कलाकारों के लिए एक नुक्कड़ भी होगा जहां वे न केवल उन्के कार्य
का प्रदर्शन करेंगी अपितु उनकी वस्तुओं को बेच भी सकेंगी।
यहां विभिन्न प्रकार
के डिजाइन की लाइब्रेरी भी है जो इन महिला दस्तकारों को नए डिजाइन सीखने के लिए बहुत
ही उपयोगी होती है। ललिताजी का कहना है कि संसाधन सुविधाओं और अन्य नवीनताओं के कारण
अगले दो वर्ष में इसके 1500 सदस्य हो जाएंगे।
ढाल की पोल अहमदाबाद
की सबसे पुरानी पोल में से एक तो है ही, यह स्थल पहले आशा भील के नाम पर आशापुरा टेकरा
कहलाता था।
No comments:
Post a Comment