चुनावी मौसम है। अपने
भाजपाई मित्र खुल कर धन संग्रह योजना की बात कर रहे हैं। मोदीजी के भाषण मैदान या हॉल
में बैठकर देखने के लिए भी अब पैसे देने पड़ रहे हैं।
भाजपा ने अधिकृत रूप
से वन वोट, वन नोट का नारा लगाना शुरू कर दिया है। वन वोट तो समझ में आता है, वन नोट
काफी रहस्यमय है। आजकल तो अगर कोई छोटा नोट बाजार में दिखलाई देता है तो वह है१० का
और १००० का नोट भी काफी आम है।
अपने भाजपाईयों ने
स्पष्ट नहीं किया है कि एक वोट के साथ कितने का नोट मिलना चाहिए। और यह भी नहीं बतलाते
हैं कि कहां और कैसे यह नोट दें। हां यदि आप ऑन लाइन नोट देना चाहते हैं तो भाजपा की
वेबसाईट पर आपको एक बटन जरूर मिल जाएगा जिससे खुलेगा एक फार्म।
खैर यह सब तो खुली
किताब की तरह लोग पढ़ रहे हैं।पर इस रविवार को गुजरात पुलिस को भाजपा की छाप वाली एक
अन्य धन संग्रह योजना के बारे में मालूम पड़ा है। इस योजना के अंतर्गत इकठ्ठा किया
हुआ १.४३ करोड़ पुलिस को मिला और जब पुलिस इस मामले की तफतीश कर रही थी तब उसे युवक
मिला जो रु १० लाख लेकर आया था।
फंडा बहुत ही सीधा
है। सरकारी नौकरी चाहिए, पैसा दो पार्टी के लिए। कम से कम रु १० लाख तो देने ही पड़ेंगे।
आगे तो जैसा मुर्गा वैसा दाम। जब यह सब हुआ तब अपने कल्याणसिंह चम्पावतजी गुजरात सरकार
की तलाटी कम मंत्री की नौकरियां बेच रहे थे।
जिस प्रकार रेल्वे
के तत्काल कोटे में आधी गाड़ी की सीटें रिजर्व रहती हैं, अपने कल्याणसिंह भाई ने भी
पार्टी के लिए धनसंग्रह के लिए आधी नौकरियां यानि कि १२०० में से ६०० नौकरियां रिजर्व
कर रखी हैं।
अपने कल्याणभैया कोई
छोटे मोटे आदमी नहीं हैं। भाजपा के बड़े बड़े नेताओं के साथ उनके फोटो हैं। हां जी
मोदीजी के साथ भी। सरकारी योजनाओं को वो चलाते भी हैं। लोग सोच रहे हैं कि इन सब के
बावजूद वो पुलिस के शिकंजे में कैसे आ गए? पुलिस से कोई गलती हुई या फिर चाय पानी के
पैसे को ले कल्याणसिंहजी और पुलिस में ठन गई?
खैर मामला कुछ भी हो
अब कल्याणसिंहजी पुलिस हिरासत में चींख चींख कह रहे हैं कि मालूम है कि हमारे हाथ कितने
लम्बे हैं, हमारी पहुंच कहां तक है। हम इस पैसे में से नियमित रूप से पार्टी को दान
देते थे।
अरे कल्याणसिंहजी आपको
मालूम नहीं कि आधा दर्जन से अधिक उच्च पुलिस अधिकारी जेल में बैठ अपनी पहुंच को ही
कोस रहे हैं।
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