गुजरात के खम्भात क्षेत्र का अकीक पत्थर का व्यव्साय काफ़ी पुराना है। उतनी ही पुरानी है उनकी सिलीकोसिस की जान लेवा बिमारी की समस्या। पहले किसी को इस बिमारी के बारे मे मालूम नही था, और आज जब सभी को मालूम है कि यह क्या है, तब भी किसी को इस काम मे जुटे गरी कारिगरों की कोई चिंता नही है।
२० वर्ष की उम्र मे इस काम मे लगे व्यक्ति की ४० की उम्र तक तो हालत खस्ता हो जाती है। पिछले २० से अधिक वर्षो से यह मामला मीडिया मे भी चमक रहा है, पर इसका कोई असर ही नही। हाल ही मे PUCL की एक टुकडी यहा सर्वेक्षण करके आयी। उसके अनुसार इस वर्ष अभी तक १३ व्यक्ति मर चुके हैं, पिछले वर्ष १२ मरे थे।
मरने वालों से अधिक चिंता का विषय है सड सड कर मौत की तरफ़ जाना। खम्भात मे ३०,००० से अधिक लोग इस व्यवसाय मे हैं। इसमे अधिकांश पिछडी जाती के हैं। इनका काम पत्थरों को घिस कर, पोलिश कर चमकाना है।
यदि फ़ेक्टरी कानून को देखे तो वह यहा इन मजदूरे के लिये है ही नही। अगर उसे लागू भी किया जाये तो केवल इन मजदूरो को ही नुकसान होगा। फ़ेक्टरी के बंद हो जाने से जो दो पैसे आज मिलते हैं वो भी बन्द हो जायेंगे । इस समस्या का निदान केवल मात्र इन कारीगरों को बेह्तर काम करने की सुविधा उपलब्ध कराना है।
पर वो कराये कौन?
1 comment:
आप ने सही निदान दिया है...लेकिन जब पैसा ही सब कुछ हो तो कौन सुनेगा?
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