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Friday, June 29, 2007

रथयात्रा का चिठ्ठा, संजय भैय्या के नाम

प्रिय संजय बेंगाणी भैय्या,

आपकी हमारे लेख पर लेख रुपी टिप्पणी "अहमदाबाद की यात्रा का माहौल" पढी। एकदम ज्ञानदत्त पाण्डॆय़ का वह लेख याद आ गया कि नोन कन्ट्रोवर्सियल लेख लिखने के दस नुस्खे। हमारी आंखो के समक्ष कुछ शब्द तैर गये जिन्हे लिखने से पाण्डॆय़जी ने सभी को ना कहा है।

मित्रवर हमारे लेख में हमने लिखा है कि यात्रा शांतिपूर्वक होती है। पर, आप कह रहे है कि हम इस बात का अनुमोदन करें। मित्र हम शुध्ध वैदिक संस्कृति वाले ब्राह्मण है। नदी, पेड, पानी सभी से सीखने के लिये तत्पर।

लगता है कि हम हमारे विचार सही ढंग से प्रस्तुत नही कर पाये। आप ठहरे इस नारद के कर्णधार। मैं आपको गलत समझने की धृष्टता कैसे कर सकता हूं। वैसे भी अपना मानना है कि यदि कोई कुछ कहे तो उसे पोजीटिव लो। पहले खुद को खोजो। हमने यही किया । हे नारद के कर्णधार तू ही तो महाभारत में संजय दृष्टि बन धृतराष्ट्र की दृष्टि बना था। अब तू मेरी दृष्टि बन। इस चिठ्ठासंसार का दर्शन करा हे संजय।

हे संजय मैने और मेरे पुत्र मधुर ने ज़िंदा बम का समाचार देखा उसी का ब्यौरा लिखा है। २००७ के मोदी के गुजरात के संजय तुम हमें वो जगह बताओ ज़हां कोई पुलिसवाला बिना सुरक्षा कवच के ज़िन्दा बम पकड सकता हो। हे संजय भगवान ने तुम्हे वह दृष्टि दी है जो मेरे जैसे आम आदमी के पास नहीं है।

हे संजय आज सारा अहमदाबाद इस किस्से की चर्चा कर रहा है, तब आप भी सुन ही रहे होगे। महाभारत वाले संजय तुम तो दृष्य श्राव्य (audio-visual) कामेंटरी दे रहे थे। साफ है कि सुन भी रहे होगे।

हे महान आत्मा तुम तो हमेशा ही दिव्य पुरुषों के सानिध्य में ही रह्ते हो। दिव्य शक्तियां है तुम्हारे पास। तुम व्यापार काज से अगर मुम्बई हो तो भी दिव्यकृपा से तुम अहमदाबाद की इस चर्चा को देख सुन रहे होंगे।

हे धृतराष्ट्र (अरविंद कुमार ने उनके समांतर कोश के खंड १ में संजय के जो पर्याय दिये है उसमें धृतराष्ट्र भी है, 777.93 की प्रविष्टि है) तुझे तो गांधारी मिली थी। इस जन्म में तुम ऎसा शिष्य वर्ग पाने की चाह में हो जो गांधारी बन दुनिया में आंख मींच बैठ जाए। मत भूलो धृतराष्ट्र तुम संजय भी हो। तुम्हे वही बोलना है जो देख रहे हो। जो दिखलाई दे रहा है। रथयात्रा १६ जुलाई को है। पर लोगों के दिलों में दहशत अभी से है। हम मानते है कि कुछ नहीं होगा। पुलिस प्रशासन सब ठीक होने देगा। पर क्या करें? मानव मन तो उसके भयों, आकांक्षाओ और आशाओं और अपेक्षाओं से ही उसकी जिन्दगी का ताना बाना बुनता है।

हे संजय तुम तो दिव्य ज्ञान वाले हो। हमने जो लिखा है वह मजाक या खींचाई कैसे हो गये? जबसे आपका लेख पढा हमारी लाइब्रेरी के सारे शब्द कोश- पर्यायवाची कोश ढूंढ मारे। संजय का पर्याय धृतराष्ट्र मिल गया पर इन दो शब्दों की हमारे लेख पर फिट बैठने वाली परिभाषा नहीं मिली। अपनी दिव्यदृष्टि से वह पुस्तक ढूंढो संजय। पता बता दो, मैं पहुंच जाउंगा।

हे संजय नारद रूप में विचरन करते हुए कुछ दिन पहले आप हमारे एक चिट्ठे "मोदी जी के वायदो का व्यापार" पर पहुंच कर नारायण नारायण की जगह एक अलग टिप्पणी कर आये थे। "शून्य भी तो मोदीजी के सहारे आगे बढना चाह्ता है"। हे दिव्यगणों के साथ विचरण करने वाली श्रेष्ठ आत्मा मुझे बतलाओं क्योंकि मेरे बारे में मैं यह सत्य नहीं जानता। इस विप्र के ज्ञान की पिपासा का शमन करो। हे ज्ञानियों के ज्ञानी नारद के कर्णधार। मैं इस राज के बोझ से जी नहीं पा रहा हूं। हे मुनिवर बताओ जीरो कालम लिखने का मोदीजी मुझे क्या देते हैं? या कांग्रेस क्या देती है? इस व्याकुल मन की प्यास बुझाओ संजय।

प्रभु मोदीजी अपने गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। हम उनका आदर करते है भगवन। पर प्रभु, आपको मालूम है कि सेना की जीत का तमगा अगर सेनापति की छाती पर कमीज पर लगता है तो हार की कालिख मुंह पर लिपती है। तमगे की तरह वर्दी पर नहीं, शुध्ध चमडी वाले मुंह पर।

इसलिये हे प्रभु कृष्ण की बात भी सुनो। संजय हो। सजाल की महाभारत के हर शब्द को सुनो। हे अर्जुन यह सब लीला है इसलिये विचलित मत हो। सब अपना रोल कर हैं। सुना कृष्ण उवाच। संजय का पर्याय धृतराष्ट्र जानने के लिये समांतर कोष देखना पडा। पर योगेश ही साक्षात कृष्ण है उसी यादवास्थली में जहां संजय तो कामेंटरी दे रहा है योगेश युध्ध को दिशा दे रहा है।

गीता में यह अध्याय नहीं है प्रियवर ! खैर इस सजाल की यादवास्थली पर हम हमारा लेख और संजय भैया की लेख रूपी टिप्पणी रख रहे हैं आप सभी के अवलोकन और मन्थन के लिये । तथास्तु ।

हमारा चिठ्ठा :
सावधान अहमदाबाद में आतंक यात्रा आ रही है

हालांकि पिछले कई वर्षों से रथ यात्रा के दौरान किसी प्रकार की अप्रिय घटना नही हुई है, जगन्नाथजी की यात्रा अहमदाबाद मे अभी तक दंगा यात्रा का उसका लेबल नही हटा पाई है । रथयात्रा के कुछ दिन पहले ही बम और पिस्तौल मिलने के समाचार आने शुरू हो जाते हैं । पिछले कुछ वर्षों से पुलिस का दावा है कि उसकी सतर्कता के कारण हिंसा फ़ैलाने वाले तत्व सफ़ल नही हो पाते।
कल ही पुलिस ने एक मुसलमान युवक को लालदरवाजा मेन बस टर्मिनस पर से पकडा। पुलिस का कहना है कि उसे जानकारी मिली थी कि वह युवक वहां बम बेचने आया था । बंगाल से अहमदाबाद देसी बम बेचने आया था ! मजे की बात यह है की लालदरवाजा पर ज्यादातर लोग जीरो नंबर के प्लेट्फ़ोर्म पर ही पकडे जाते है। अरे भैये अगर देसी पिस्तोल का कट्ता बेचते हुए कोई पकडा जाये तो हम समझ सकते है कि वह उत्तर प्रदेश से आया होगा । गुजरात मे लोग यूं ही करोडों का गोटाला कर पैसे बना लेते है, बिना किसी कट्टे के । इसलिये जब जरूरत होती है तब उत्तर प्रदेश से मंगवा लेते हैं ।
हमने कल पुलिस वालो को बम पकड्ते देखा । पुलिस की हिम्मत को दाद देनी पडे । जिंदा बम खुले हाथ पकड कर ले गये अपने पुलिस वाले । बस सिर पर एक हेल्मेट पहन रखी थी। इसे कहते है जाबांज पुलिस । स्काट्लेंड और अमरीका की एफबीआई को गुजरात पुलिस से यह गुर सीखना चाहिये । हमे हमारे बचपन के वो दिन याद आ गये जब हम मदारी का जहरीले सांप का खेल देखते थे । आजकल के बच्चो के ऎसे भाग्य कहां । मेनका गांधी ने सपेरो, बन्दर- भालू वालों के धंधे की वाट लगवा दी है ।
खैर हमारे साथ टी वी पर यह द्रश्य देख रहे हमारे पुत्र ने हमारे साथ बहस शुरू कर दी । डिस्कवरी चैनल का रसिया हमारा मधुर अड गया कि बिना किसी सुरक्षा के पुलिस बम इस तरह से कैसे ले जाती । हमने उसे कह दिया कि कालेज मे पढने का यह मतलब नही कि उसे सब कुछ आता है। हमारे अहमदाबाद की पुलिस तो रोकेट लोंचर तक पकड लेती है ये तो सादा बम है । उसने पूछा कि बंगाल से बम बेचने आया, वहां कुछ खास बात है क्या ? जैसेकि रामपुरी चाकू । हमने कहा कि आतंकवादी ऎसे रास्ते अपनाते है जो अच्छे अच्छे करमचंद और डिटेक्टिव ऒकारनाथ (डॉन) भी नही समझ पाते हैं ।
खैर अपने मित्रो ने भविष्यवाणी कर दी है की अभी कुछ और पकडे जायेंगे क्योकि हर साल यह होता है। यात्रा के शांतिपूर्वक निकल जाने पर पुलिस के अफ़सरान पुलिसवालो को यात्रा को शांतिपूर्वक निकलवाने के लिये धन्यवाद देते हैं । अपने भाजपाई मित्र मोदी जी का हिन्दुऒ की यात्रा की सफ़लता के लिये आभार मानेंगे । हर साल यही हो रहा है ।


संजय भैय्या उवाच:

अहमदाबाद की यात्रा का माहौल

यात्रा का समय नजदीक आ रहा है. अहमदाबाद में वर्षो से पूरी की तर्ज पर यात्रा निकलती रही है. योगेशजी ने इस पर लिखा है. मैं वहाँ टिप्पणी नहीं कर पाया, ब्लॉगर.कोम की कोई तकलीफ थी.
खैर, यात्रा का समय नजदीक है, पुलिस की चौकसी व तैयारियाँ चल रही है. यात्रा जो की बहुत ही लम्म्म्बी होती है और सँकरी गलियों से गुजरती है, यहाँ तक की कई मुस्लिम बहुल इलाको से भी गुजरती है. अब जबकि समानांतर चौड़ी सड़के बन गई है तो यात्रा को इन्ही सड़को से निकलाने का सुझाव दिया जाता रहा है, मगर इसे आयोजको ने मंजूर नहीं किया है.
इधर दोनो समुदायों के सरफिरे तत्वो को मौके की तलाश रहती है, जो प्रशासन के लिए सर दर्द है. यात्रा के पुरे मार्ग में धार्मिक नहीं वरन देशभक्ति के गीत बजते रहते है.
यात्रा के समय जहाँ पहले दहशत का सा माहौल रहता है, अब वैसा नहीं है. पिछली कई यात्राएं बहुत अच्छे वातावरण में निकली है. मुस्लिम समुदाय कई जगह इसका स्वागत करता है. मेरी बात का योगेशजी अनुमोदन करें, क्या मैं गलत कह रहा हूँ, जो माहौल दस साल पहले हुआ करता था, क्या वैसा ही आज भी है? अगर कहीं परिवर्तन आया है तो इसके लिए पुलिस व प्रशासन की प्रशंसा करनी चाहिए. मजाक तो हम किसी का भी उड़ा सकते है, लोकतंत्र है भाई. वैसे भी लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए खिंचाई करना गलत भी नहीं, :)

5 comments:

संजय बेंगाणी said...

बहुत प्रयासो के बाद यह टिप्पणी कर पा रहा हूँ. बहुत लम्बा ही लिख दिया है आपने.


बात सरल सी थी, आपकी बात काटने के लिए नहीं लिखा था. मैने केवल अपना पक्ष लिखा है, जो मैं देख रहा हूँ. अनुमोदन करवाने के पीछे का उद्देश्य आपसे जबरीया हामी भराना नहीं था, आप पत्रकार है, ज्यादा जानते है, आपकी बात पर विश्वास किया जाता है, बस इसलिए लिखा की मैं गलत तो नहीं लिखा है ना.

हर बात में नारद और कर्णधार वगेरे को बिच में लाने की क्या आवश्यक्ता है? मेरा नारद से वही रिश्ता है जो आपका है.


क्या एक साधारण चिट्ठाकार जो की मैं हूँ के तहत कुछ लिख नहीं सकता या टिप्पणी नहीं कर सकता?


मैने बहुत कोशिश की है की टिप्पणी न करूँ, मुझे गलत अर्थो में लिया जाता है.

अब और सावधानी रखी जाएगी.

आपको ठेस पहूँची हो तो क्षमा करें.

Anonymous said...

योगेशजी अहमदाबाद के दंगे बेमौसम नहीं होते.
मौसम के आसार नज़र आ रहे हैं.आपकी नज़र को नज़र न लग जाय आप दुरस्त फर्माते हैं.हमारी रूह तो अभी से कांप रही है.आग में जलते लोग.
मेरी ग़जल का मतला पर अंधे और आँखो वाले गौर फर्मायें -
तीर उसकी कमान पर अब भी.
हैं परिन्दे उड़ान पर अब भी.

चीखें अब भी सुनाई देती हैं,
हाथ रक्खे हैं कान पर अब भी,

भूल कर आईना तू देख जरा
दाग़ हैं गिरेबान पर अब भी. डा. सुभाष भदौरिया.

सो मित्र मेरे अँधों को आईना क्यों दिखाते हो.उन्हें कसीदे पढ़ने दो.

मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के कदम
तू न समझेगा सियासत तू अभी इंसान है.

आप सियासत के कदम जानते हैं आप किस कोटि के है देवदूत तो नहीं.रहे संजयजी उनकी दिव्य दृष्टि के क्या कहने.पर आप नारदजी को बीच में मत लाओ वे कुपित हुए तो एक ब्रह्मदेव परलोक वासी हो जायेगे फिर नारद पर अहमदाबाद के नाम पर चना जोर गरम रोज कौन बेचेगा.गुरू तुम भी कुछ कम नहीं हो. जरा मिर्च मशाला कम डाला करो
नारायन नारायन हम तो रोज जाप करते हैं कहीं प्रभू हम से कुपित न हों जायें.

डॉ. सुभाष भदौरिया

ePandit said...

योगेश जी बाकी तो आप दोनों जानें पर यहाँ पर नारद को बेवजह बीच में घसीटने की आवश्यकता नहीं थी। क्या नारद टीम के लोग चिट्ठा न लिखें, कहीं अपने विचार ही न व्यक्त करें?

अनूप शुक्ल said...

भैया लेख के पहले संजय की इतना तारीफ़ से बहुत जलन हुयी। बाकी लेख के बारे में हम न आपके लिखे पर कुछ टिप्पणी कर रहे हैं न संजय के। वैसे अगर संरक्षा अनुभाग वाले किसी को जिंदा बम ले जाते देख लें, बिना समुचित बचाव के , तो कठोर कार्यवाही कर सकते हैं।

Unknown said...

मित्रों की टिप्पणियां पढी । श्रीश जी की टिप्पणी पढ कर बहुत दुख हुआ। भदौरिया जी तो हमारे पुराने मित्र है। हमारे चौपाल के मंच से उन्होने अहमदाबाद मे काफ़ी उठा पटक की है ।
श्रीश जी आपको याद होगा १५ दिन पहले हमने हमारे कम्प्यूटर पर ज्ञ लिखना आपकी मदद से ही सीखा था।हमें आपकी मदद करने की भावना बहुत अच्छी लगी थी।
सबसे पहले तो मै यह स्पष्ट कर दूं कि संजय भैया से हमे कोइ शिकायत नही है । मै स्पष्ट वक्ता हूं । उन्हे टिप्पणी करने से कोइ रोक नही है । किसी को भी नहीं।
मुझे किसी के भाषा के ज्ञान के बारे मे कोई संदेह नही है । मुझे अभी तक यह नही समझ मे आ रहा है कि नारद के कर्णधार, एक विशेशण, नारद संज्ञा कैसे बन गया। मन मे प्रश्न उठता है कि क्या इस प्रकार का भाषा प्रयोग वर्जित है? क्या नारद के विभिन्न भाषा प्रयोगो को केवल नारद नामक समूह के रूप मे ही देखा जाये।
श्रीश जी मै आपको बता नही सकता कि आपकी इस टिप्पणी ने मेरे भाषा ज्ञान की नींव को किस प्रकार झंझोड कर रख दिया है। सभी टिप्पणियों को पढ कर लगता है जैसे कि हमने संजय भैया के बारे मे लिख कर नारद समूह को शामिल किया है।
खैर मै एक बार फ़िर स्पष्ट कर दूं कि हम दोनो अहमदाबाद मे रहते है, पर हम कभी मिले नही है और न ही हम मे किसी प्रकार का झगडा है । और आज भी मुझे किसी प्रकार की कोइ उनके बारे मे कडवाहट है।
मैने दोनो चिठ्ठे आप लोगो के अवलोकन के लिये एक साथ रखे थे। मुझे यह भी था कि प्रतिक्रिया "आप दोनो जाने" जैसी गोलमोल अभिव्यक्ती मे ही आयेगी। वही हुआ। समरथ को दोष नाही ।
मै इस संस्था के साथ अच्छे मधुर संबन्ध रखना चाहता हू, क्योकि यह वास्तव मे हिन्दी का एक अच्छा मंच है । यह मेरी दिली भावना है, नारद की बैसाखी की जरूरत नही।
आशा है कि मै आपको मेरे विचार और भावनाये समझा पाया हूं
मेरे लेख के करण आप सभी को जो दुख हुआ उसके लिये क्षमा चाहता हू। शुध्ध क्षमा । कोइ किन्तु , परन्तू नही। संजय भैया आपको सप्रेम चाय पर निमंत्रण। आपके पास मेरा मोबाईल नम्बर है।
मै अगले दो दिन जामनगर हू, आप सोमवार और उसके बाद कभी भी आ सकते है। भदौरिया जी माना कि आपके समाचार नही छापे, आप तो चौपाल का रास्ता ही भूल गये !!!!

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