tag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post2183460376854005761..comments2023-05-10T00:50:25.408-07:00Comments on zero column: रथयात्रा का चिठ्ठा, संजय भैय्या के नामAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/07183084459399181101noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post-37894169003890412292007-06-29T11:20:00.000-07:002007-06-29T11:20:00.000-07:00मित्रों की टिप्पणियां पढी । श्रीश जी की टिप्पणी पढ...मित्रों की टिप्पणियां पढी । श्रीश जी की टिप्पणी पढ कर बहुत दुख हुआ। भदौरिया जी तो हमारे पुराने मित्र है। हमारे चौपाल के मंच से उन्होने अहमदाबाद मे काफ़ी उठा पटक की है ।<BR/>श्रीश जी आपको याद होगा १५ दिन पहले हमने हमारे कम्प्यूटर पर ज्ञ लिखना आपकी मदद से ही सीखा था।हमें आपकी मदद करने की भावना बहुत अच्छी लगी थी।<BR/>सबसे पहले तो मै यह स्पष्ट कर दूं कि संजय भैया से हमे कोइ शिकायत नही है । मै स्पष्ट वक्ता हूं । उन्हे टिप्पणी करने से कोइ रोक नही है । किसी को भी नहीं।<BR/>मुझे किसी के भाषा के ज्ञान के बारे मे कोई संदेह नही है । मुझे अभी तक यह नही समझ मे आ रहा है कि नारद के कर्णधार, एक विशेशण, नारद संज्ञा कैसे बन गया। मन मे प्रश्न उठता है कि क्या इस प्रकार का भाषा प्रयोग वर्जित है? क्या नारद के विभिन्न भाषा प्रयोगो को केवल नारद नामक समूह के रूप मे ही देखा जाये।<BR/>श्रीश जी मै आपको बता नही सकता कि आपकी इस टिप्पणी ने मेरे भाषा ज्ञान की नींव को किस प्रकार झंझोड कर रख दिया है। सभी टिप्पणियों को पढ कर लगता है जैसे कि हमने संजय भैया के बारे मे लिख कर नारद समूह को शामिल किया है।<BR/>खैर मै एक बार फ़िर स्पष्ट कर दूं कि हम दोनो अहमदाबाद मे रहते है, पर हम कभी मिले नही है और न ही हम मे किसी प्रकार का झगडा है । और आज भी मुझे किसी प्रकार की कोइ उनके बारे मे कडवाहट है।<BR/>मैने दोनो चिठ्ठे आप लोगो के अवलोकन के लिये एक साथ रखे थे। मुझे यह भी था कि प्रतिक्रिया "आप दोनो जाने" जैसी गोलमोल अभिव्यक्ती मे ही आयेगी। वही हुआ। समरथ को दोष नाही ।<BR/>मै इस संस्था के साथ अच्छे मधुर संबन्ध रखना चाहता हू, क्योकि यह वास्तव मे हिन्दी का एक अच्छा मंच है । यह मेरी दिली भावना है, नारद की बैसाखी की जरूरत नही।<BR/>आशा है कि मै आपको मेरे विचार और भावनाये समझा पाया हूं<BR/>मेरे लेख के करण आप सभी को जो दुख हुआ उसके लिये क्षमा चाहता हू। शुध्ध क्षमा । कोइ किन्तु , परन्तू नही। संजय भैया आपको सप्रेम चाय पर निमंत्रण। आपके पास मेरा मोबाईल नम्बर है।<BR/>मै अगले दो दिन जामनगर हू, आप सोमवार और उसके बाद कभी भी आ सकते है। भदौरिया जी माना कि आपके समाचार नही छापे, आप तो चौपाल का रास्ता ही भूल गये !!!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07183084459399181101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post-56326004215468088012007-06-29T10:18:00.000-07:002007-06-29T10:18:00.000-07:00भैया लेख के पहले संजय की इतना तारीफ़ से बहुत जलन हु...भैया लेख के पहले संजय की इतना तारीफ़ से बहुत जलन हुयी। बाकी लेख के बारे में हम न आपके लिखे पर कुछ टिप्पणी कर रहे हैं न संजय के। वैसे अगर संरक्षा अनुभाग वाले किसी को जिंदा बम ले जाते देख लें, बिना समुचित बचाव के , तो कठोर कार्यवाही कर सकते हैं।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post-41357286813512368642007-06-29T08:17:00.000-07:002007-06-29T08:17:00.000-07:00योगेश जी बाकी तो आप दोनों जानें पर यहाँ पर नारद को...योगेश जी बाकी तो आप दोनों जानें पर यहाँ पर नारद को बेवजह बीच में घसीटने की आवश्यकता नहीं थी। क्या नारद टीम के लोग चिट्ठा न लिखें, कहीं अपने विचार ही न व्यक्त करें?ePandithttps://www.blogger.com/profile/15264688244278112743noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post-73557438481989367082007-06-29T08:14:00.000-07:002007-06-29T08:14:00.000-07:00योगेशजी अहमदाबाद के दंगे बेमौसम नहीं होते.मौसम के ...योगेशजी अहमदाबाद के दंगे बेमौसम नहीं होते.<BR/>मौसम के आसार नज़र आ रहे हैं.आपकी नज़र को नज़र न लग जाय आप दुरस्त फर्माते हैं.हमारी रूह तो अभी से कांप रही है.आग में जलते लोग.<BR/>मेरी ग़जल का मतला पर अंधे और आँखो वाले गौर फर्मायें -<BR/>तीर उसकी कमान पर अब भी.<BR/>हैं परिन्दे उड़ान पर अब भी.<BR/><BR/>चीखें अब भी सुनाई देती हैं,<BR/>हाथ रक्खे हैं कान पर अब भी,<BR/><BR/>भूल कर आईना तू देख जरा <BR/>दाग़ हैं गिरेबान पर अब भी. डा. सुभाष भदौरिया.<BR/><BR/>सो मित्र मेरे अँधों को आईना क्यों दिखाते हो.उन्हें कसीदे पढ़ने दो.<BR/><BR/>मस्लहत आमेज़ होते हैं सियासत के कदम<BR/>तू न समझेगा सियासत तू अभी इंसान है.<BR/><BR/>आप सियासत के कदम जानते हैं आप किस कोटि के है देवदूत तो नहीं.रहे संजयजी उनकी दिव्य दृष्टि के क्या कहने.पर आप नारदजी को बीच में मत लाओ वे कुपित हुए तो एक ब्रह्मदेव परलोक वासी हो जायेगे फिर नारद पर अहमदाबाद के नाम पर चना जोर गरम रोज कौन बेचेगा.गुरू तुम भी कुछ कम नहीं हो. जरा मिर्च मशाला कम डाला करो<BR/>नारायन नारायन हम तो रोज जाप करते हैं कहीं प्रभू हम से कुपित न हों जायें. <BR/> <BR/>डॉ. सुभाष भदौरियाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7137774255269941272.post-51675213702802734512007-06-29T05:56:00.000-07:002007-06-29T05:56:00.000-07:00बहुत प्रयासो के बाद यह टिप्पणी कर पा रहा हूँ. बहुत...बहुत प्रयासो के बाद यह टिप्पणी कर पा रहा हूँ. बहुत लम्बा ही लिख दिया है आपने.<BR/><BR/><BR/>बात सरल सी थी, आपकी बात काटने के लिए नहीं लिखा था. मैने केवल अपना पक्ष लिखा है, जो मैं देख रहा हूँ. अनुमोदन करवाने के पीछे का उद्देश्य आपसे जबरीया हामी भराना नहीं था, आप पत्रकार है, ज्यादा जानते है, आपकी बात पर विश्वास किया जाता है, बस इसलिए लिखा की मैं गलत तो नहीं लिखा है ना. <BR/><BR/>हर बात में नारद और कर्णधार वगेरे को बिच में लाने की क्या आवश्यक्ता है? मेरा नारद से वही रिश्ता है जो आपका है.<BR/><BR/><BR/>क्या एक साधारण चिट्ठाकार जो की मैं हूँ के तहत कुछ लिख नहीं सकता या टिप्पणी नहीं कर सकता?<BR/><BR/><BR/>मैने बहुत कोशिश की है की टिप्पणी न करूँ, मुझे गलत अर्थो में लिया जाता है. <BR/><BR/>अब और सावधानी रखी जाएगी.<BR/><BR/>आपको ठेस पहूँची हो तो क्षमा करें.संजय बेंगाणीhttps://www.blogger.com/profile/07302297507492945366noreply@blogger.com