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Saturday, July 25, 2015

मोदीजी की कविताएं हिन्दी में, एक नया परिचय

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन की उथल पुथल में यदि कुछ होता है तो वह है उनके व्यक्तित्व का मानवीय स्वरूप, उनके कवि हृदय की पहचान। यह बात उनकी कविताओं को पढ़ कर बहुत ही स्पष्ट रूप से उभर कर आती है।
हाल ही में कवियत्री डा. अंजना संधीर से मिलना हुआ। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री आनन्दीबेन पटेल ने उनके द्वारा मोदीजी की कविताओं के हिन्दी अनुवाद का विमोचन किया। उच्च कोटि के इस अनुवाद को पढ़ कर लगता है कि मानो मोदीजी ने हिन्दी में ही कविताओं को लिखा है।
थोड़े समय में ही यह पुस्तक लेखकों और कवियों में देश में काफी लोकप्रिय हो गई है। इसका मुख्य कारण है कि इस पुस्तक ने मोदीजी के भीतर के कवि को एक राष्ट्रीय पहचान दी है। हिन्दी पढ़ने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग है। उस वर्ग के माध्यम से देश के कई राज्यों में लोगों को प्रधानमंत्री के कवि हृदय का परिचय हुआ है।
आज अंजना संधीर ने इन कविताओं के उडिया अनुवाद की पुस्तक दिखलाई। यह इस पुस्तकआंखें ये धन्य है” के लगभग 8 भाषाओं में हो रहे अनुवाद में से एक है। हालांकि मोदीजी की कविताओं के संकलन में 67 कविताएं गुजराती में हैं, अनुवाद के लिए आधार बन रही हैं हिन्दी में अनुवादित अंजना संधीर की पुस्तक। किसी भी लेखक के लिए यह एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उसकी पुस्तक कई अन्य पुस्तकों के लिए आधार बने। अंजना संधीर के लिए यह पुस्तक एक ऐसा ही आधार बनी है।
अंजना संधीर अहमदाबाद की है और नरेन्द्र मोदीजी से उनका व्यक्तिगत परिचय है। गुजराती पुस्तक उन्हें मोदीजी की ओर से 2008 में मिली थी। इसका अनुवाद उन्होंने पिछले वर्ष किया। अंजनानी इन कविताओं में एक मानवतावादी, राष्ट्रवादी और संवेदनशील कवि मोदी को देखती है।
उनकी हम तो कविता इसी मानवत्व की आत्माभिव्यक्ति है-
कोई पन्थ नहीं, नहीं सम्प्रदाय,
मानव तो बस है-मानव;
उझाले में क्या फर्क पड़ता है,
दीपक हो या लालटेन........!”
जीवन में प्रेम की उष्मा आवश्यक है। कर्तव्य और त्याग की उष्मा आवश्यक है। प्रेम की उष्मा के बिना मानव उत्कृष्टता की ओर बढ़ ही नहीं सकता।
बिना प्रेम पंगु बन मानव लाचार, पराधीन सा जीता है।
अभाव की एक डोरी ले, पल को पल से जीता है।
तस्वीर के उस पार कविता में भी उनकी ओजस्विता, स्वाभिमान, श्रम-साधना परिलक्षित है।
मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूं
अपने आत्मविश्वास में
अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में,
तुम मुझे मेरे काम से ही जानो.......
...... मेरी आवाज की गूंज से पहचानो,
मेरी आंख में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है।
अन्त में उनकी यह कविता जाना नहीं
यह सूर्य मुझे पसन्द है
अपने सात घोड़ों की लगाम
हाथ में रखता है
लेकिन उससे कभी भी घोड़ों को
चाबुक मारा हो
ऐसा जानने में आया नहीं
इसके बावजूद
सूर्य को मति
सूर्य को गति
सूर्य को दिशा
सब एक दम बरकरार
केवल प्रेम

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