बापू। हालांकि पूरी दुनिया में महात्मा गांधी बापू के नाम से प्रख्यात हुएः आज
अपने गुजरात में बापू यानि कि अपने शंकरसिंह वाघेला। वैसे तो गांव गांव में बापू
मिल जाएंगे, पर राज्य स्तर पर तो बापू शब्द के साथ एक ही छवि झलकती है।
पिछले काफी समय से गुजरात में चर्चा चल रही है कि बापू मुख्यमंत्री बनना चाहते
हैं। हालांकि बापू हर बार यह कहते हैं कि वे इस रेस में नहीं हैं। आजतक किसी ने यह
कहा है क्या? तो फिर बापू क्यों
कहेंगे? यह बात अलग है कि वे
अपने स्टाईल में यह जाहिर कर देंगे कि केवल वही है इस कुर्सी के लायक।
जुलाई महिने में जब अपने बापू ने खुद को कांग्रेस मुक्त किया तब भी यही कहा कि
लोग झूठी अफवाह फैलाते हैं कि मैं मुख्यमंत्री की दौड़ में हूं। बोले मैं तो सरकार
और प्रशासन में से खो गए आम आदमी के लिए हूं। उसी कार्यक्रम में एक छोटा अखबार बांटा
गया जिसमें उस समय की बातें थी जब अपने बापू भाजपा में खजुराहो कांड कर
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आम आदमी की सेवा में असीन हो गए थे।
यह तो राजनीति का सनातन सत्य है। अपने आप आप कह दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने
वाले अरविंद केजरीवाल हों या फिर देश के लिए सब कुछ कुर्बान करने वाले
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। सत्ता से पहले और सत्ता पर आने के द्वैतवाद के मानवीय
स्वभाव के अलावा क्य कहें? खैर बात अपन बापू की कर रहे थे। अब बापू बन गए मुख्यमंत्री।
बापू का कहना है कि कुछ युवक जिनका राजनीति से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है
उन्होंने गुजरात के कुछ नेताओं के बारे में लोगों का सर्वे किया था। इस सर्वे में
पाया गया कि बापू सबसे लोकप्रिय नेता हैं और सबका मानना है कि वे ही गुजरात के
मुख्यमंत्री बनने के लिए योग्य है।
उन्होंने यह तो बताया कि यह सर्वे जनविकल्प नामक हाल ही में पैदा हुई संस्था
ने करवाया है। अभी तक सड़कों पर छाये पोस्टरों से यह संस्था आज बापू की कांफ्रेंस
के द्वारा मीडिया में प्रकट हुई। हालांकि इसमें कौन क्या है इसका कोई अता पता अभी
भी नहीं है। जनविकल्प के बारे में बापू ने कुछ नहीं बताया पर अपने राजनीति और
मीडिया के मित्रों का कहना है कि यह संस्था बापू का ही दिमागी बालक (ब्रेन चाइल्ड)
है।
कुछ पत्रकार जानना चाहते थे कि वे कौन लोग थे जो सर्वे में बापू के साथ कुर्सी
की दौड़ में खड़े थे? किस-किस का क्या रेटिंग था? बापू ने ये प्रश्न सुने ही नहीं। बापू ने एक बार फिर दावा
किया कि वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ेंगे। हाँ, जनविकल्प के द्वारा सम्भव हुआ तो 182
को जरूर चुनाव लड़वा देंगे।
आजकल बापू बार-बार यह
कहते हैं कि मैं पचास साल सै राजनीति में हूं। बार बार यह कहते हैं कि मैं भाजपा
और कांग्रेस से मुक्त हुआ हूं राजनीति से नहीं। वे सगर्व स्वीकार करते हैं कि वे
आरएसएस में काफी समय रहे हैं।
जुलाई में जब उन्होंने
कांग्रेस छोड़ी नहीं थी तब एक बार कहा था कि भाजपा वालों की बात का भरोसा नहीं।
ऐसे में उन्होंने आरएसएस के संदर्भ में कही एक उक्ति के अनुसार जब उन्हें कथनी और
करनी में भेद रखना होता है तो उसके लिए उनकी सीक्रेट भाषा में यह कहा जाता है।
हमें वह उक्ति याद नहीं। पर इससे आप हमे यह कहने से रोक नहीं सकते कि बापू
मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं है।
आज बच्चा भी जानता है कि
मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले विधायक बनना जरूरी नहीं है। आप पैराशूट से
मुख्यमंत्री कार्यालय में लैंड करिये फिर छह महिने में एमएलए बन सामने के द्वार से
आ मुख्यमंत्री पद का रीटेक करिए।
अब मोदीजी को ही लीजिए।
पहले मुख्यमंत्री और फिर राजकोट-2 के द्वार से वोट की राजनीति मे एन्ट्री ली। हाल
ही में अपने पारीकर भाई रक्षा मंत्रालय से सीधे गोआ के मुख्यमंत्री कार्यालय में
आए।
अपने बापू को एक दुख है
कि जब राजपा बना वे मुख्यमंत्री बने तो सहयोगी कांग्रेसियों की वजह से उनहोंने राज
खोया नहीं तो भाजपा की री एन्ट्री नहीं होती और वे मुख्यमत्री बने रहते। और अपने
मोदीजी किसी संगठन कार्य में जुड़े होते।
खैर दोस्तो कुछ भी हो
अपने बापू एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए उनके जनविकल्प के सर्वे में!!!
मीडिया से बातचीत में
बापू ने साफ साफ कह दिया वो किसी से वोट मांगनेवाले नहीं है। अगर लोग उनकी आज की खराब
हालत से मुक्त होना चाहते हैं, तो वे जनविकल्प को वोट दें। बापू तो बापू है, कुछ
भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं।