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Wednesday, September 20, 2017

बापू बन गए CM

बापू। हालांकि पूरी दुनिया में महात्मा गांधी बापू के नाम से प्रख्यात हुएः आज अपने गुजरात में बापू यानि कि अपने शंकरसिंह वाघेला। वैसे तो गांव गांव में बापू मिल जाएंगे, पर राज्य स्तर पर तो बापू शब्द के साथ एक ही छवि झलकती है।
पिछले काफी समय से गुजरात में चर्चा चल रही है कि बापू मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं। हालांकि बापू हर बार यह कहते हैं कि वे इस रेस में नहीं हैं। आजतक किसी ने यह कहा है क्या? तो फिर बापू क्यों कहेंगे? यह बात अलग है कि वे अपने स्टाईल में यह जाहिर कर देंगे कि केवल वही है इस कुर्सी के लायक।

जुलाई महिने में जब अपने बापू ने खुद को कांग्रेस मुक्त किया तब भी यही कहा कि लोग झूठी अफवाह फैलाते हैं कि मैं मुख्यमंत्री की दौड़ में हूं। बोले मैं तो सरकार और प्रशासन में से खो गए आम आदमी के लिए हूं। उसी कार्यक्रम में एक छोटा अखबार बांटा गया जिसमें उस समय की बातें थी जब अपने बापू भाजपा में खजुराहो कांड कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आम आदमी की सेवा में असीन हो गए थे।
यह तो राजनीति का सनातन सत्य है। अपने आप आप कह दिल्ली में मुख्यमंत्री बनने वाले अरविंद केजरीवाल हों या फिर देश के लिए सब कुछ कुर्बान करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। सत्ता से पहले और सत्ता पर आने के द्वैतवाद के मानवीय स्वभाव के अलावा क्य कहें? खैर बात अपन बापू की कर रहे थे। अब बापू बन गए मुख्यमंत्री।
बापू का कहना है कि कुछ युवक जिनका राजनीति से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है उन्होंने गुजरात के कुछ नेताओं के बारे में लोगों का सर्वे किया था। इस सर्वे में पाया गया कि बापू सबसे लोकप्रिय नेता हैं और सबका मानना है कि वे ही गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के लिए योग्य है।
उन्होंने यह तो बताया कि यह सर्वे जनविकल्प नामक हाल ही में पैदा हुई संस्था ने करवाया है। अभी तक सड़कों पर छाये पोस्टरों से यह संस्था आज बापू की कांफ्रेंस के द्वारा मीडिया में प्रकट हुई। हालांकि इसमें कौन क्या है इसका कोई अता पता अभी भी नहीं है। जनविकल्प के बारे में बापू ने कुछ नहीं बताया पर अपने राजनीति और मीडिया के मित्रों का कहना है कि यह संस्था बापू का ही दिमागी बालक (ब्रेन चाइल्ड) है।
कुछ पत्रकार जानना चाहते थे कि वे कौन लोग थे जो सर्वे में बापू के साथ कुर्सी की दौड़ में खड़े थे? किस-किस का क्या रेटिंग था? बापू ने ये प्रश्न सुने ही नहीं। बापू ने एक बार फिर दावा किया कि वे स्वयं चुनाव नहीं लड़ेंगे। हाँ, जनविकल्प के द्वारा सम्भव हुआ तो 182 को जरूर चुनाव लड़वा देंगे।
आजकल बापू बार-बार यह कहते हैं कि मैं पचास साल सै राजनीति में हूं। बार बार यह कहते हैं कि मैं भाजपा और कांग्रेस से मुक्त हुआ हूं राजनीति से नहीं। वे सगर्व स्वीकार करते हैं कि वे आरएसएस में काफी समय रहे हैं।
जुलाई में जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी नहीं थी तब एक बार कहा था कि भाजपा वालों की बात का भरोसा नहीं। ऐसे में उन्होंने आरएसएस के संदर्भ में कही एक उक्ति के अनुसार जब उन्हें कथनी और करनी में भेद रखना होता है तो उसके लिए उनकी सीक्रेट भाषा में यह कहा जाता है। हमें वह उक्ति याद नहीं। पर इससे आप हमे यह कहने से रोक नहीं सकते कि बापू मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं है।
आज बच्चा भी जानता है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले विधायक बनना जरूरी नहीं है। आप पैराशूट से मुख्यमंत्री कार्यालय में लैंड करिये फिर छह महिने में एमएलए बन सामने के द्वार से आ मुख्यमंत्री पद का रीटेक करिए।
अब मोदीजी को ही लीजिए। पहले मुख्यमंत्री और फिर राजकोट-2 के द्वार से वोट की राजनीति मे एन्ट्री ली। हाल ही में अपने पारीकर भाई रक्षा मंत्रालय से सीधे गोआ के मुख्यमंत्री कार्यालय में आए।
अपने बापू को एक दुख है कि जब राजपा बना वे मुख्यमंत्री बने तो सहयोगी कांग्रेसियों की वजह से उनहोंने राज खोया नहीं तो भाजपा की री एन्ट्री नहीं होती और वे मुख्यमत्री बने रहते। और अपने मोदीजी किसी संगठन कार्य में जुड़े होते।
खैर दोस्तो कुछ भी हो अपने बापू एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए उनके जनविकल्प के सर्वे में!!!

मीडिया से बातचीत में बापू ने साफ साफ कह दिया वो किसी से वोट मांगनेवाले नहीं है। अगर लोग उनकी आज की खराब हालत से मुक्त होना चाहते हैं, तो वे जनविकल्प को वोट दें। बापू तो बापू है, कुछ भी कह सकते हैं, कुछ भी कर सकते हैं।

Saturday, May 21, 2016

कांग्रेस को केतकर बूस्टर डोज

कुमार केतकर 
कुमारआजकल अपने कांग्रेसी मित्रों की हालत खस्ता है। एक ओर निराशाजनक चुनावी परिणाम तो दूसरी ओर भाजपाईयों का आक्रमक प्रचार प्रहार। किस तरह से इस शाब्दिक दंगल में खुद को बचाते हुए भाजपाईयों को परास्त करें? आज सबसे बड़ी जरुरत है कांग्रेसियों का मनोबल बढाने की। पर किसी को भी समझ में नहीं आता कि यह कैसे करें।
अपने मुम्बई स्थित वरिष्ठ पत्रकार कुमार केतकर ने अपने लेक्चर से यह काम किया। राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर अहमदाबाद में आयोजित कार्यक्रम में उनका लेक्चर था। विषय था राजीव गांधी 25 वर्ष बाद। हालांकि विषय राजीव गांधी था, वे पूरी कांग्रेसी विचारधारा और आज की परिस्थिति पर बोले। जम कर बोले, तथ्यों के साथ बोले व्यंग्यता शैली की छटा में बोले। सभास्थल तालियों से गूंजता रहा।
केतकरजी ने बताया कि किस प्रकार 1985 में टेलीफोन विभाग को डाक विभाग से अलग कर राजीवजी ने संचार क्रांति की नींव डाली और उसे आगे बढ़ाया। इसकी वजह से अमरीका में भारतीयों का बाजार बढ़ा। भारतीय आईटी प्रोफेशनलों की अमरीकी बाजार में जो आज बोलबाला है उसका श्रेय राजीव गांधी को ही जाता है।
यह बात अलग है कि आज यही अप्रवासी भारतीय कांग्रेस और गांधी के दुश्मन बने हुए है। वे गांधी से अधिक गोडसे की प्रशंसा करते हैं।
केतकरजी ने बताया कि जो कोकोकोला के विरोध में प्रदर्शन करते थे वही आज विदेशी निवेश लाने के लिए जुटे हुए हैं। उसे वे अब गर्व की बात कहते हैं।
उन्होने खचाखच भरे सभागृह में कांग्रेसियों को भाजपाईयों का सामना करने के लिये काफी मसाला भी दिया।
डिजीटल इन्डिया के लिए केतकरजी के पास एक अच्छा उदाहरण है। आज जिस तरह से छोटे बच्चे मोबाइल और कम्प्यूटर का उपयोग करते हैं वह बतलाता है कि यह डिजीटल इन्डिया है। भाजपा और मोदी के डिजीटल इन्डिया के नारे में केवल खोखलापन है।
मोदीजी की मन की बात के बारे में उन्होंने गांधीजी के मौन की बात आगे रख दी। बोले उस जमाने में न तो इन्टरनेट था न ही वॉट्सएप। गांधीजी केवल हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी ही जानते थे। फिर भी हर भाषा के लोग उसके साथ जुड़े हुए थे। वे मौन रख उनके मन की बात लोगों तक पहुंचाते थे।
आसाम में बांग्लादेशियों के विरोध के मुद्दे पर उनका कहना है कि आरएसएस अखंड भारत चाहता है। अर्थात पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही भारत में वापिस। फिर भाजपा बांग्लादेश का मुद्दा क्यों उठाती है।
आपात स्थिति का उल्लेख कर इन्दिरा गांधी को तानाशाह कहा जाता है, और बदनाम किया जाता है। उन्होंने उस समय की परिस्थिति को देखते हुए संविधान के प्रावधान का उपयोग कर आपातस्थिति की घोषणा की थी। वह लोकतांत्रिक कदम था।
बोफोर्स के नाम पर राजीव गांधी को बदनाम करने वाले आज यह कह रहे हैं कि बोफोर्स एक अच्छी गन है।उन्होने कुछ दिन पूर्व के मनोहर पारीकर के बयान का उल्लेख किया।
मोदीजी की डिग्री के बारे में उन्होने एक नया सुर्रा छोड़ा। उनकी डिग्री में कम्प्युटर का उपयोग उस जमाने में जब कम्प्युटर बाजार में आया ही नहीं था।
आज जिस तरह से नेहरू के विचार और उनके नाम से जुड़ी संस्थाओं पर आक्रमण किया जा रहा है, उसका उल्लेख करते हुए केतकरजी का कहना है कि इस सबको नेहरू या गांधी परिवार की दृष्टि से मत देखो। यह सब हमारे स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को खत्म करने के लिए किया जा रहा है।

केतकरजी का संकेत स्पष्ट था। जिस प्रकार मोदी विरोध को देश विरोध बताया जाता है उसी प्रकार से कांग्रेस विरोध, नेहरू गांधी विरोध को देश की स्वतंत्रता का विरोध चित्रित करो।

Friday, April 15, 2016

भाजपाइयों का मीडिया प्रेम

मीडिया और भाजपा। एक अलग ही रिश्ता है भाजपा का मीडिया के साथ। एक विपक्ष के स्तर से सत्ता पर आई भाजपा से बेहतर मीडिया पावर को कौन जानता हैबेचारे कांग्रेसी वर्षों की सत्ता को भाजपा की मीडिया पावर की धुलाई में खो बैठे।

अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने मीडिया उपयोग की नई प्रणाली शुरू की। मीडिया से मिलो मत, मीडिया का उपयोग करो। अपने भाषणों का प्रहार लोगों पर करो मीडिया के जरिये। पर मीडिया से सीधा मिलना टालो।
पर अब शायद स्थिति भाजपा के हाथ से सरकती जा रही है। राज्यों के चुनावों में खराब स्थिति इसका प्रबल संकेत है। दूसरी ओर भाजपा की टीका वाले समाचार सुर्खियों में छाये जा रहे हैं। साफ है मीडिया के साथ दोस्ती के अलावा कोई चारा नहीं। मीडिया से मिलना जरूरी है।
अगले वर्ष के चुनावों को ध्यान में रख अपनी मुख्यमंत्री आनन्दीबहन पटेल ने गुजरात में मीडिया प्रेम का नया अध्याय शुरू कर दिया है। नये प्रदेशाध्यक्ष विजय रूपाणी के माध्यम से। इसकी शुरूआत आज रामनवमी के दिन पत्रकार स्नेह मिलन से की।
भाजपा हो और हिन्दुत्व की बात न हो यह कैसे सम्भव है। साफ है रामनवमी का दिन इसी विचार को लोगों के दिमाग में बैठाता है। आनन्दीबहन और रूपाणीजी के साथ हाजिर थे चेहरे पर कॉलगेट मुस्कराहट चिपकाए नए प्रवक्ता पर राजनीति के पुराने खिलाड़ी भरत पंड्या।
साथ ही थी भाजपा की पूरी मीडिया टीम, दिग्गज यमल व्यास से लेकर नवोदित विक्रम जैन और किशन सोलंकी ।क्राउन होटल के मालिक संघवी और नरहरी के अमीन खास हितेश पोची और अपने SMS वाले जयंतिलाल भी हाजिर थे इस विस्तृत मीडिया स्नेह मिलन टीम में।
भाजपा नेताओं ने जाहिर किया कि भाजपा और पत्रकार सभी के दिल में गुजरात का हित है इसलिए हाथ मिलायें। आज की प्रचलित भाषा में कहें तो अपने भाजपाई मित्रों ने MOU की घोषणा कर दी। यह बात अलग है कि इकतरफा प्रेम की इकतरफा घोषणा।
जो भी बोले वो अपने भरतभाई ही बोले। प्रवक्ता जो ठहरे। कल को कुछ उल्टा हो जाये तो आनन्दीबहन और रूपाणीजी आसानी से बच सकें।  पत्रकारों की एक दुखती रग पर हाथ रख उन्होंने भाजपाई संवेदना के सुर छेड़े। पत्रकारों के लिए हेल्थ कैम्प के विचार की घोषणा के साथ। वैसे हर साल विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एक हैल्थ कैम्प का आयोजन होता ही है।
भरत भाई ने कुछ पत्रकारों का नाम ले कहा कि हाल ही में कैसे उन बेचारों को हार्ट अटैक, कैंसर आदि जैसे भयानक  रोगोंका सामना करना पड़ा। तो MOU के तहत हो गई भाजपा स्वास्थ्य सुरक्षा कवच घोषणा।
भई MOU की घोषणा भले इकतरफा हो, अमल में तो दोनों का साथ जरूरी है। नहीं तो गुजरात सरकार के MOU जैसा हाल हो!
पार्टी के मीडिया सेल में हेमन्त भट्ट और पराग शेठ जैसे पत्रकार फ्रेंडली डॉक्टर हों और सरकार के पास स्वास्थ्य सेवाएं हो तो स्वास्थ्य सुरक्षा कवच की बात पर सभी को विश्वास करना ही पड़ेगा। वैसे भी महंगाई के जमाने में इस प्रकार की सेवा हर कोई चाहेगा।छोटी मोटी बीमारी में ही हजारों घुस जाते हैं, हार्ट अटैक, कैंसर आदि जैसे भयानक  रोगों में तो लाखों।  
एक बात निश्चित है। गुजरात की आज की परिस्थिति देखते हुए यह मीडिया प्रेम 2017 के चुनावों तक तो चलेगा ही। वैसे भाजपा अहमदाबाद नगर निगम चुनावों में चुनाव से पहले वार्ड आधारित स्वास्थ्य कैम्प कर लोक स्वास्थ्य सुरक्षा कवच का प्रयोग सफलता पूर्वक कर चुकी है।
भारत माता की जय।
हां इसके बिना तो भाजपा संबन्धित कोई भी कार्य पूरा ही नहीं हो सकता।

Thursday, April 14, 2016

अम्बेडकरी अमित ज्योतिकर

अम्बेडकरी रंग में अमित 
आज अम्बेडकर जयंति है। पिछले कुछ महिनों से अम्बेडकर धुन जोर शोर से बज रही है। अम्बेडकर पर किताबें प्रकाशित हो रही हैं। हर रोज अम्बेडकर पर भाषणबाजी हो रही है। हर कोई अम्बेडकर को अपना कह दूसरों को अम्बेडकर का दुश्मन बताने में लगा हुआ है। लोग अम्बेडकर को अन्याय हुआ का नारा लगा कांग्रेसियों पर हर तरह का प्रहार कर रहे हैं । दूसरी ओर कांग्रेसी बचाव की मुद्रा में आ जय भीम के नारे जोर शोर से लगा रहे हैं। 
मजेदार बात यह है कि इस शोरगुल में अम्बेडकर की सोच तो खो ही गई है। यदि कहीं कोई अम्बेडकर की बात कर रहा है तो वह आवाज शोर गुल में दब गई है। इन्हीं आवाजों में एक आवाज है अपने युवा अमित भाई की। अमित ज्योतिकर के पिता प्रियदर्शी ज्योतिकर अम्बेडकर के विषय में जाने माने विद्वान है। अम्बेडकरी सोच अमितभाई को विरासत में मिली है।
आज जब सब अम्बेडकर को अन्याय की बात कर रहे हैं, अपने अमितभाई का कहना है कि अम्बेडकर की सोच को समाज में लाने की बात करो। अम्बेडकर पर राजनीति न करो। अम्बेडकर विद्वान थे, रहेंगे। उन्हें हमारे सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। आज जरूरत है अम्बेडकर की सामजिक समरसता की बात को जीवन में उतारने की।
हाल ही में अपने अमितभाई की एक पुस्तक का विमोचन हुआ। पुस्तक है सौराष्ट्र में अम्बेडकरी अभियान का इतिहास। किसी भी शोधग्रन्थ की तरह यह किताब भी सीमित वर्ग के रस की ही है। पर अमितभाई की सोच इससे विशाल है। विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने सबसे हट कर आज अम्बेडकर के नाम पर हो रहे शोरगुल की टीका की।
कार्यक्रम में उनके पिता की वाणी में भी तल्खियत थी, पर युवा अमित की आवाज में एक अनुभवी ज्ञानी की शांति और गहराई थी। यही उनकी विशेषता है। वे भाजपाई हैं। कार्यक्रम में सभी भाजपाई थे। सभी का सुर भाजपाई था। अपने अमितभाई की आवाज अम्बेडकरी थी।
उनकी किताब का नीले रंग का कवर पेज उनकी पार्टी सोच से उठ अम्बेडकरी सोच को ही दर्शाता है। उनके पिता ने अम्बेडकर की 100वीं जयंति पर गुजरात में अम्बेडकरी अभियान पर पुस्तक लिखी तो उनकी पुस्तक 125वें वर्ष पर प्रकाशित हुई है। उनका मानना है कि उनका पुत्र 150वें वर्ष पर पुस्तक लिखेगा।
उनका साफ कहना है कि अम्बेडकर किसी जाति के विरोधी नहीं थे। वे अस्पृश्यता के विरोधी थे। उन्हें किसी जाति के विरोधी के रूप में रंगना या दलीय राजनीति के घेरे में बांधना गलत है। उन्होंने अम्बेडकर और ब्राह्मणों के सम्बन्ध में दर्जनों किस्से बता यह सिद्ध कर दिया कि भीमराव जातिवाद से ऊपर उठकर मानवतावाद की बुलन्द आवाज थे।
उनके जीवन निर्माण में ब्राह्मणों के योगदान की कुछ विशेष घटनाएं इस प्रकार हैः
बरसात में भीगे हुए भीम को अपने घर ले जाकर उनके ब्राह्मण शिक्षक ने अपने पुत्र के साथ गर्म पानी से स्नान करवाया। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने 50वें जन्मदिवस इस घटना को स्मरण करते हुए कहा था कि छात्र जीवन का यह उनका पहला सुख था।
उनके ब्राह्मण शिक्षक कृष्णाजी केशव आंबेडकर को बालक भीमा का उपनाम आंबवडेकर का उच्चारण करने में कठिनाई होती थी। उन्होंने भीमा को अपना उपनाम आंबेडकर देते हुए कहा कि तुम्हारी अटपटी और कठिन उच्चारणों वाले उपनाम के बदले अब इसे लिखना। साथ ही उन्होंने रजिस्टर में आंबेडकर कर दिया। आज यह करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा रूप है।
इसी शिक्षक की एक और घटना का वर्णन डॉ. आंबेडकर किया करते थे। यह सतारा सेना के स्कूल (साल्वेशन आर्मी स्कूल) की घटना है। वहां छूआछूत बहुत ही कम थी। कृष्णाजी केशव आंबेडकर शिक्षक थे। वे सभी शिष्यों से समान व्यवहार करते थे। दोपहर को भीमा भोजन के लिए घर जाता था। वह देर से वापस आता। यह गुरुजी को अच्छा नहीं लगता। इसलिए गुरुजी अपने टिफिन में रोटी और सब्जी कुछ ज्यादा ही लाने लगे। वे भोजनावकाश के समय भोजन प्रेम भाव के साथ देते थे। डॉ. भीमराव ने इस स्वाद को जीवन भर याद रखा। अपने जन्मदिन हीरक महोत्सव के अवसर पर उन्होंने गौरव के साथ इसका उल्लेख कर कहा कि पाठशाला के जीवन काल का यह उनका दूसरा सुखद संस्मरण है।
यह घटना 1902 से 1906 के बीच की है। नारायण मल्हावराज जोषी एल्फीस्टन हाईस्कूल में अंबेडकर के शिक्षक थे। उन्होंने छात्र अंबेडकर को आखिरी बैंच से उठा कर पहली बैंच पर बैठाया। ब्लैक बोर्ड पर लिखने को कहा, नतीजा यह आया कि सभी सवर्ण छात्रों को ब्लैकबोर्ड के पीछे रखा अपना टिफिन हटाना पड़ा।
गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे ब्राह्मण थे। इनके नेतृत्व में 25-12-1927 मनुस्मृति की होली कर दी गयी। वे बाद में जनता के संपादक रहे। सार्वजनिक स्थलों पर दलितों के प्रवेश का प्रस्ताव पेश करने वाले सीताराम केशव बोले भी भंडारी जाति के थे।
दलितों को यज्ञोपवित देने, समूह भोजन आयोजित करने और अंतर्जातीय विवाह के लिए स्थापित समता संघ के आगेवान लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सुपुत्र श्रीधरवंत तिलक भी ब्राह्मण थे। इन्होंने गायकवाड के तिलक के दीवान खाना में डॉ. अंबेडकर तथा दलित नेताओं के साथ बैठकर चाय-पानी पिया।
समाज के समता संघ के मुखपत्र समता के संपादक देवराम विष्णुनाईक गोवर्धन भी ब्राह्मण थे। वे बाद में जनता साप्ताहिक के संपादन का कार्य भी किया।
रामगोपालाचार्य जिन्हें राजाजी के नाम से जाना जाता था, ब्राह्मण थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में डॉ. भीमराव अंबेडकर को शामिल करने का सुझाव दिया।
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने डॉ. शारदाकृष्ण राव कबीर नामक सारस्वत ब्राह्मण महिला के साथ 1948 में पुनर्विवाह किया। महाराष्ट्रियन परम्परा के अनुसार विवाह के बाद डॉ. अम्बेडकर ने उन्हें सविता नाम दिया। डॉ. अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने भी ब्राह्मण युवती के साथ विवाह किया।
हिन्दू कोड बिल के साथ लोकसभा में डॉ. अंबेडकर का पंडित हृदयनाथ कुजरा, एनवी गाडगिल जैसे ब्राह्मणों ने समर्थन किया। गुजरात की हंसा मेहता भी ब्राह्मण थी। वे भी भीमराव के साथ थी।

Tuesday, March 22, 2016

सदाबहार शांतिभाई आडेसरा

शांति आडेसरा
लगभग 18 वर्ष के बाद शांतिभाई से मिलना हुआ, एक ज्योतिष पर सेमिनार की प्रेस कांफ्रेंस में। वही अंदाज और उम्र तो लगभग थम ही गई है उनके चेहरे पर। उनका गठा शरीर और सीधी चाल भी उनकी उम्र का राज नहीं खोलते हैं ।अगर शांतिभाई आपको अपनी उम्र न बताएं तो आप कह ही नहीं सकते कि वो 80 साल के हैं। इसीलिए हमारा कहना है कि सदाबहार शांतिभाई आडेसरा।
हस्तरेखा देखना उनका शौक है और हाल में पेशा भी। अहमदाबाद के सीजी रोड पर स्थित उनका आफिस तो मानो उनकी हस्तरेखा शास्त्र की फोटो गैलरी है। फिल्मी सितारों, राजनीतिक नेताओं और अन्य हस्तियों के साथ के फोटो इस बात का तस्वीरी सबूत है कि उन्होंने उनके हस्तरेखा ज्ञान से किन किन को प्रभावित किया है। 1970 से अभी तक में उन्होंने 80,000 से अधिक लोगों के हाथों की लकीरों को पढ़ा है। इन सभी के हाथों के प्रिटं उनके पास सुरक्षित हैं।
आफिस में जगह न होने के कारण यह खजाना उन्होने अपने घर पर रख रखा है।
वे स्पष्ट वक्ता हैं। साफ कहते हैं मैं कोई मास्टर नहीं हूं, पर इस विषय के बारे में मुझे अच्छा ज्ञान है। उनका कहना है कि उनका कथन लगभग 80 प्रतिशत सही होता है।
वे कहते हैं कि हस्तरेखा विज्ञान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि हाथों में ही सब कुछ है और वह सब आपकी आंखों के सामने हैं। जन्म तारीख और समय में जरा भी चूक कुंडली पढ़ने में समस्या लाती है पर हस्तरेखा तो आपके सामने होती है, आपकी जिन्दगी के रास्तों का एक स्पष्ट नक्शा।
60 के दशक में एक बैंक की परीक्षा में असफल होने पर उनका हस्तरेखा विज्ञान में रस जागा और तब से वह निरंतर चल रहा है। जितने हाथ देखते हैं उतना उनका ज्ञान बढ़ता है।गुजरात के लगभग सभी बड़े अखबारों में उन्होंने हस्तरेखा के बारे में कॉलम लिखे हैं, दिग्गजों के बारे में भी भविष्यवाणियां की हैं।
सबसे जोरदार भविष्यवाणी उन्होंने 1984 में इन्दिरा गांधी की हत्या के बारे में रोटरी क्लब के एक कार्यक्रम में की थी। उनके पास रोटरी क्लब द्वारा इस बारे में दिया गया प्रमाणपत्र भी है।
वे भविष्य कथन करते हैं, पर खुद वर्तमान में जीते हैं और अन्य सभी को भी केवल वर्तमान में जीने की ही सलाह देते हैं। भविष्य की जानकारी से हम आनेवाले दिनों को बेहतर बना सकते हैं। पर जीना तो आज है। जिन्दादिली से जियो।
अन्य भविष्य वक्ताओं की तरह वे भी आने वाली समस्याओं से निपटने के रास्ते बतलाते हैं। पर वे भविष्य वक्ता की साथ साथ जो मोटीवेशनल गुरू का काम करते हैं वो उनका अपना ही अनोखा अंदाज है। बहुत कम ज्योतिष इस प्रकार की सीख देते हैं। आज जियो , भरपूर जियो।
हम हमारे वाहन का जिस प्रकार रख रखाव रखते हैं उसी तरह से शरीर का रख रखाव करें और प्रसन्न चित्त रहें यह एक ऐसा जीवन मंत्र है जो शान्तिभाई सभी को देते है भले ही वह व्यक्ति उनसे यूं ही मिलने आया हो या फिर हाथ बताने। बीच बीच में अंग्रेजी बोल वे यह भी जता देते हैं कि वे मोर्डन हैं, इसलिये उन्हें गंभीरता से लें !!
वे खुद इस जिन्दादिली का सबूत हैं। हमेशा अच्छे कपड़े, पेन्ट में सही अन्दाज में कमीज, पॉलिश किये हुए जूते और क्लीन शेव चेहरा. जवानी से 80 साल की उम्र तक का यह एक शाश्वत नियम है, जो उन्हें सदाबहार बनाए हुए हैं।

और इसे देखते हुए जब वे कहते हैं कि रहो देवानन्द की तरह तब यही कहा जा सकता है कि सदाबहार शान्ति आडेसरा।

Saturday, January 9, 2016

घर के दरवाजे पर शहनवाज हुसैन

32 वर्षीय छात्र नेता शहनवाज हुसैन अब अहमदाबाद के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र जमालपुर के पार्षद हैं। यह उनका पहला नगर निगम चुनाव था और वे जीत कर पार्षद बन गए।
एक मंझे राजनेता की तरह बतियाते शाहनवाज ने अपने कार्यकाल के पहले महिने में ही मतदाताओं से मिलने का कार्यक्रम एक अभियान के रूप में शुरू किया है। उन्होंने इसका नाम दिया है कॉर्पोरेटर एट योर होम – आपके घर पर आपका पार्षद।
एक महिने में पूरे क्षेत्र के दो राउन्ड लाग चुके हैं शहनवाज भैय्या। हर शनि-रवि को यही काम। सोम-मंगल को अधिकारियों के साथ लोगों की समस्या के मुद्दे। और बाद में उसका फालोअप।
उनका कहना है कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें एक बात सबसे अधिक सुनने को मिली। चुने जाने के बाद कार्पोरेटर पांच साल में एक बार ही दिखते हैं।
इसे केन्द्र में रखते हुए मैंने निर्णय किया कि मैं अधिक से अधिक मतदाताओं के सम्पर्क में रहूंगा और उनकी समस्याओं को हल करूंगा, शहनवाज कहते हैं। हालिंक उनके क्षेत्र में 80 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम है, फिर भी उनका मानना है कि पार्षद के रूप में उन्हें सभी की समस्याओं को केन्द्र में रखना चाहिए।
शहनवाज और उनके क्षेत्र के दो अन्य पार्षद जल्द ही उनके वार्ड का 24x7 कार्यालय खोलने जा रहे हैं। उनका कहना है कि रात को एक जिम्मेदार व्यक्ति रहेगा जो मतदाताओं की समस्या सुनेगा और उन्हें मदद करेगा। मेडीकल और पुलिस इन दो प्रकार की समस्याएं ही जरूरी मुद्दे होते हैं रात के समय।
शहनवाज एनएसयूआई के नेता हैं। फिलहाल वे गुजरात युनिवर्सिटी के सेनेट मेम्बर हैं।
2001 से छात्र राजनिति में जुड़े शहनवाज ने विभिन्न राज्यों में एनएसयूआई के प्रभारी के रूप में कार्य किया है। उनके अनुसार यही उनकी राजनीति की शिक्षा का स्थल रहा है। 2007 में यूपी 2008 बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के अनुभव ने उन्हें बहुत कुछ सिखलाया है।
उनका कहना है कि यदि जिन्दगी को जानना है, सही मायने में सीखना है तो हमें घूमना चाहिए। भले ही हम एक सामान्य यात्री के रूप में घूमें। कॉलेज में सतत तीन वर्ष तक वे गाने की प्रतियोगिता जीतते रहे। उनका कहना है कि इससे एक ओर उनका स्टेज का डर निकला तो दूसरी ओर उन्हें पब्लिक लाईफ का चस्का लगा। यही उन्हें एनएसयूआई में लाया और फिर अब अहमदाबाद नगर निगम में।
उनके पिता एक डाक्टर हैं। वे ही उनके प्रेरणा स्त्रोत है। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में रहकर हिन्दुओं के क्षेत्र में चिकित्सा सेवा यह उनके पिता की खासियत है। मेरे पिता के किसी भी समय बिना किसी कटुता के मरीज को देखने के निस्वार्थ भाव से मैंने लोगों के लिए कार्य करना सीखा है, वे कहते हैं।
शहनवाज दो जिम से जुड़े हुए हैं, जो उनकी आय का स्त्रोत हैं।

Monday, August 3, 2015

भारत का पहला धर्म रिपोर्टर डॉ. प्रणव दवे

विषय धर्म और डॉ. का सम्बोधन ये दोनों ही हमें किसी ऐसे व्यक्ति का ध्यान कराते हैं जो उम्र लायक है। पर हमारे धर्म रिपोर्टर डा. प्रणव दवे केवल 33 वर्ष के है और देश के पहले पूर्णकालीन धर्म रिपोर्टर है।
प्रणव दवे फिलहाल टाइम्स ऑफ इन्डिया के गुजराती दैनिक नवगुजरात समय में पूर्णकालीन रिलीजन रिपोर्टर हैं और पिछले 14 वर्षों से वे केवल धर्म के बारे में ही लिखते आ रहे हैं और प्रतिष्ठित अखबारों के धर्म परिशिष्ठ का संकलन कर रहे हैं।
उनका परिचय उनकी विद्वता और उनक लेख उनके कलम की पहचान हैं। उन्होंने संस्कृत और पाली (संस्कृत का वह रूप जिसमें जैन साहित्य लिखा गया है) में गुजरात यूनिवर्सिटी से डबल एमए किया है। भविष्य पुराण में सूर्य पूजा पर शोध ग्रन्थ लिख पीएचडी किया है। अब वे दूसरी पीएचडी कर रहे हैं। विषय है साइबर मीडिया का हिन्दू धर्म पर प्रभाव। डबल एमए के बाद डबल पीएचडी की तैयारी वह भी 33 वर्ष की अल्पायु में ही।
हिन्दी की सहजता से ही संस्कृत में संवाद करने वाले डॉ. प्रणव दवे अपनी इस उपलब्धियों के लिए उनके पिता रोहित दवे को उनका गुरु मानते हैं। रोहित भाई सूचना विभाग से जुड़े थे और गायत्री परिवार से शुरू से ही जुड़े हुए हैं। उनका धर्म और पत्रकारिता का घरेलू वातावरण ही उनका इन दो विषयों में आगे बढ़ने का प्रेरणा मंत्र बना।
प्रणव जितने धर्म में निपुण हैं उतने ही आधुनिक टेक्नोलॉजी में दक्ष। गुजरात के अग्रणी समाचार पत्र गुजरात समाचार के दो वर्ष के कार्यकाल में धर्म रिपोर्टिंग के अलावा प्रणव उस समाचारपत्र के वेब पोर्टल का कामकाज भी सम्भालते थे। यही कारण है कि उनकी दूसरी पीएचडी साइबर मीडिया और धर्म के बीच एक कड़ी है।
उनके यादगार क्षणों में कोई कमी नहीं है। जयेन्द्र सरस्वती जिन्हें जयललिता केस में जेल जाना पड़ा था, उन्होंने अहमदाबाद में किसी को भी इन्टरव्यू देने की ना कह दी थी। केवल प्रणव दवे को ही इन्टरव्यू दिया था। इसका कारण न तो प्रणव दवे का नाम था और न ही उनके अखबार का बैनर। इसका कारण इतन मात्र था कि प्रणव दवे ने अपना परिचय उन्हें संस्कृत में दिया था।
उनका कहना है कि हिन्दू धार्मिक संस्थाएं काफी तेजी से आईटी का उपयोग कर रही हैं और यह उनके प्रचार प्रसार का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने सूर्य मीमांसा नामक पुस्तक भी लिखी है जिसमें गुजरात के सूर्य मंदिरों के विषय में जानकारी है।
उन्हें ज्योतिष में भी काफी विश्वास है। उनका कहना है कि ज्योतिष एक प्रकार का साईन बोर्ड है जो हमें आने वाली घटनाओं से अवगत कराता है।
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