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Monday, July 23, 2007

रद्दी के ढेर से उभरा बीसवीं सदी का डिजीटल अवतार

कुछ वर्ष पूर्व मुम्बई मे एक उध्योगपति को सन्डे बाज़ार मे एक बहुत ही आकर्षक मासिक की कुछ प्रतियां मिली। उध्योगपति नवनीत शाह को आज भी याद नहीं कि ये प्रतिया उनके हाथ कब लगी। इसी प्रकार कुछ समय पहले अहमदाबाद के एक पत्रकार धीमंत पुरोहित को एक सचित्र प्रकाशन की कुछ प्रतिया हाथ लगी। इन दोनो सहित्य के रसियाओं ने अपने अपने प्रकाशन के और अंकों की खोज शुरू कर दी।

और आज से लगभग दो वर्ष पूर्व गुजरात के एक मशहूर कोलमनिस्ट रजनी पंडया को इन दोनो ने अपनी इन अंकों की खोज के बारे मे कहा। उसे मालूम पडा कि ये दोनो एक ही मासिक के अंको के ढूंढ रहे थे। यह था गुजराती भाषा मे तब बम्बई से प्रकाशित होने वाला मासिक वीसमी सदी अर्थात बीसवीं सदी। १९१६ मे शुरू हुआ यह मासिक केवल पांच वर्ष ही निकला यानि की केवल ६० अंक।पर इसके सम्पादक की सोच, प्रकाशन की गुण्वत्ता के कारण १९१६ का यह मासिक ९० वर्ष बाद भी पत्रकारिता का एक स्तम्भ है।

उस जमाने मे इसके मालिक एंव सम्पादक हाजीमोहम्मद अल्लारखा शिवजी ने बीसवी सदी को फ़ोर कलर मे निकाला था। उनका नाम वे अपने दादा के नाम के साथ लिखते थे, और यह इस बात का परिचय देता था कि उनके दादा हिन्दु थे। इसका टाईटल पेज इंगलैंड मे बनता था और इसके १०० पन्नों मे १२५ चित्र होते थे और वह भी गुण्वत्ता वाले।

हाजीमोहम्मद खुद को बीसवीं सदी का अधीपती कहते थे। उनके विचार स्पष्ट थे। पाठक को रोचक शैली मे सचित्र पठनीय सामग्री देना।

खैर, अब इन तीनों, नवनीत भाई, धीमंत और रजनी पंडया ने बाकी के अंकों की खोज जारी रखी। अथक प्रयत्नों के बाद वे केवल ५५ अंक ही इकठ्ठे कर पाये। नवनीत भाई के आर्थिक सहयोग और बिरेन पाध्या के तकनीकी संसाधनों की मदद से इन ५५ अंको को डिजीटाईज किया गया । और इस डिजीटल अवतार का अनावरण कल शाम को अहमदाबाद में एक भव्य कार्यक्रम मे हुआ। इस वेबसाईट को लोंच किया ९७ वर्षीय रतन मार्शल ने । अपनी पूरी सलामत बत्तीसी वाले मार्शल की आवाज मे किसी फ़ौजी की बुलन्दी खनकती है। मार्शल की खासियत यह है कि गुजराती पत्रकारिता का ईतिहास लिखने वाले मार्शल की ५७ वर्ष पूर्व लिखी गई पुस्तक का कोई सानी नही है।

इस वीसवीं सदी को डिजीटल अवतार दिलाने वाले मित्रों को एक बात का बहुत दुख है। उनके तमाम प्रयत्नों के बावजूद वे हाजी के वंशजो को ढूंढ नही पाये हैं। उनके इन प्रयत्नों के बारे मे भी हम लिखेंगे। यदी आप किसी को यह जान्कारी मिले तो आप हमे या इस प्रकाशन की वेबसाईट पर दे सकते है। यह वेबसाईट वीसवीं सदी के सौंदर्य और भव्यता की झलक देती है। पीले पडे कागजों मे बिखरी हाज़ी की पत्रकारिता कहती है- खंडहर बता रहें हैं कि इमारत कभी बुलंद थी। इस वेब साईट का URL है, http://www.gujarativisamisadi.com/ भले ही आपको गुजराती नही आती हो, हाजी का सौंदर्य बोध तो आपअको उसी तरह लुभायेगा जिस तरह उसका जादू नवनीत भाई और धीमंत के सिर चढ कर बोल रहा है ।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

लेख द्वारा अच्छी जानकारी दी है।धन्यवाद।

36solutions said...

अच्‍छी जानकारी, शुक्रिया ।

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