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Friday, April 15, 2016

भाजपाइयों का मीडिया प्रेम

मीडिया और भाजपा। एक अलग ही रिश्ता है भाजपा का मीडिया के साथ। एक विपक्ष के स्तर से सत्ता पर आई भाजपा से बेहतर मीडिया पावर को कौन जानता हैबेचारे कांग्रेसी वर्षों की सत्ता को भाजपा की मीडिया पावर की धुलाई में खो बैठे।

अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने मीडिया उपयोग की नई प्रणाली शुरू की। मीडिया से मिलो मत, मीडिया का उपयोग करो। अपने भाषणों का प्रहार लोगों पर करो मीडिया के जरिये। पर मीडिया से सीधा मिलना टालो।
पर अब शायद स्थिति भाजपा के हाथ से सरकती जा रही है। राज्यों के चुनावों में खराब स्थिति इसका प्रबल संकेत है। दूसरी ओर भाजपा की टीका वाले समाचार सुर्खियों में छाये जा रहे हैं। साफ है मीडिया के साथ दोस्ती के अलावा कोई चारा नहीं। मीडिया से मिलना जरूरी है।
अगले वर्ष के चुनावों को ध्यान में रख अपनी मुख्यमंत्री आनन्दीबहन पटेल ने गुजरात में मीडिया प्रेम का नया अध्याय शुरू कर दिया है। नये प्रदेशाध्यक्ष विजय रूपाणी के माध्यम से। इसकी शुरूआत आज रामनवमी के दिन पत्रकार स्नेह मिलन से की।
भाजपा हो और हिन्दुत्व की बात न हो यह कैसे सम्भव है। साफ है रामनवमी का दिन इसी विचार को लोगों के दिमाग में बैठाता है। आनन्दीबहन और रूपाणीजी के साथ हाजिर थे चेहरे पर कॉलगेट मुस्कराहट चिपकाए नए प्रवक्ता पर राजनीति के पुराने खिलाड़ी भरत पंड्या।
साथ ही थी भाजपा की पूरी मीडिया टीम, दिग्गज यमल व्यास से लेकर नवोदित विक्रम जैन और किशन सोलंकी ।क्राउन होटल के मालिक संघवी और नरहरी के अमीन खास हितेश पोची और अपने SMS वाले जयंतिलाल भी हाजिर थे इस विस्तृत मीडिया स्नेह मिलन टीम में।
भाजपा नेताओं ने जाहिर किया कि भाजपा और पत्रकार सभी के दिल में गुजरात का हित है इसलिए हाथ मिलायें। आज की प्रचलित भाषा में कहें तो अपने भाजपाई मित्रों ने MOU की घोषणा कर दी। यह बात अलग है कि इकतरफा प्रेम की इकतरफा घोषणा।
जो भी बोले वो अपने भरतभाई ही बोले। प्रवक्ता जो ठहरे। कल को कुछ उल्टा हो जाये तो आनन्दीबहन और रूपाणीजी आसानी से बच सकें।  पत्रकारों की एक दुखती रग पर हाथ रख उन्होंने भाजपाई संवेदना के सुर छेड़े। पत्रकारों के लिए हेल्थ कैम्प के विचार की घोषणा के साथ। वैसे हर साल विधानसभा के बजट सत्र के दौरान एक हैल्थ कैम्प का आयोजन होता ही है।
भरत भाई ने कुछ पत्रकारों का नाम ले कहा कि हाल ही में कैसे उन बेचारों को हार्ट अटैक, कैंसर आदि जैसे भयानक  रोगोंका सामना करना पड़ा। तो MOU के तहत हो गई भाजपा स्वास्थ्य सुरक्षा कवच घोषणा।
भई MOU की घोषणा भले इकतरफा हो, अमल में तो दोनों का साथ जरूरी है। नहीं तो गुजरात सरकार के MOU जैसा हाल हो!
पार्टी के मीडिया सेल में हेमन्त भट्ट और पराग शेठ जैसे पत्रकार फ्रेंडली डॉक्टर हों और सरकार के पास स्वास्थ्य सेवाएं हो तो स्वास्थ्य सुरक्षा कवच की बात पर सभी को विश्वास करना ही पड़ेगा। वैसे भी महंगाई के जमाने में इस प्रकार की सेवा हर कोई चाहेगा।छोटी मोटी बीमारी में ही हजारों घुस जाते हैं, हार्ट अटैक, कैंसर आदि जैसे भयानक  रोगों में तो लाखों।  
एक बात निश्चित है। गुजरात की आज की परिस्थिति देखते हुए यह मीडिया प्रेम 2017 के चुनावों तक तो चलेगा ही। वैसे भाजपा अहमदाबाद नगर निगम चुनावों में चुनाव से पहले वार्ड आधारित स्वास्थ्य कैम्प कर लोक स्वास्थ्य सुरक्षा कवच का प्रयोग सफलता पूर्वक कर चुकी है।
भारत माता की जय।
हां इसके बिना तो भाजपा संबन्धित कोई भी कार्य पूरा ही नहीं हो सकता।

Thursday, April 14, 2016

अम्बेडकरी अमित ज्योतिकर

अम्बेडकरी रंग में अमित 
आज अम्बेडकर जयंति है। पिछले कुछ महिनों से अम्बेडकर धुन जोर शोर से बज रही है। अम्बेडकर पर किताबें प्रकाशित हो रही हैं। हर रोज अम्बेडकर पर भाषणबाजी हो रही है। हर कोई अम्बेडकर को अपना कह दूसरों को अम्बेडकर का दुश्मन बताने में लगा हुआ है। लोग अम्बेडकर को अन्याय हुआ का नारा लगा कांग्रेसियों पर हर तरह का प्रहार कर रहे हैं । दूसरी ओर कांग्रेसी बचाव की मुद्रा में आ जय भीम के नारे जोर शोर से लगा रहे हैं। 
मजेदार बात यह है कि इस शोरगुल में अम्बेडकर की सोच तो खो ही गई है। यदि कहीं कोई अम्बेडकर की बात कर रहा है तो वह आवाज शोर गुल में दब गई है। इन्हीं आवाजों में एक आवाज है अपने युवा अमित भाई की। अमित ज्योतिकर के पिता प्रियदर्शी ज्योतिकर अम्बेडकर के विषय में जाने माने विद्वान है। अम्बेडकरी सोच अमितभाई को विरासत में मिली है।
आज जब सब अम्बेडकर को अन्याय की बात कर रहे हैं, अपने अमितभाई का कहना है कि अम्बेडकर की सोच को समाज में लाने की बात करो। अम्बेडकर पर राजनीति न करो। अम्बेडकर विद्वान थे, रहेंगे। उन्हें हमारे सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है। आज जरूरत है अम्बेडकर की सामजिक समरसता की बात को जीवन में उतारने की।
हाल ही में अपने अमितभाई की एक पुस्तक का विमोचन हुआ। पुस्तक है सौराष्ट्र में अम्बेडकरी अभियान का इतिहास। किसी भी शोधग्रन्थ की तरह यह किताब भी सीमित वर्ग के रस की ही है। पर अमितभाई की सोच इससे विशाल है। विमोचन कार्यक्रम में उन्होंने सबसे हट कर आज अम्बेडकर के नाम पर हो रहे शोरगुल की टीका की।
कार्यक्रम में उनके पिता की वाणी में भी तल्खियत थी, पर युवा अमित की आवाज में एक अनुभवी ज्ञानी की शांति और गहराई थी। यही उनकी विशेषता है। वे भाजपाई हैं। कार्यक्रम में सभी भाजपाई थे। सभी का सुर भाजपाई था। अपने अमितभाई की आवाज अम्बेडकरी थी।
उनकी किताब का नीले रंग का कवर पेज उनकी पार्टी सोच से उठ अम्बेडकरी सोच को ही दर्शाता है। उनके पिता ने अम्बेडकर की 100वीं जयंति पर गुजरात में अम्बेडकरी अभियान पर पुस्तक लिखी तो उनकी पुस्तक 125वें वर्ष पर प्रकाशित हुई है। उनका मानना है कि उनका पुत्र 150वें वर्ष पर पुस्तक लिखेगा।
उनका साफ कहना है कि अम्बेडकर किसी जाति के विरोधी नहीं थे। वे अस्पृश्यता के विरोधी थे। उन्हें किसी जाति के विरोधी के रूप में रंगना या दलीय राजनीति के घेरे में बांधना गलत है। उन्होंने अम्बेडकर और ब्राह्मणों के सम्बन्ध में दर्जनों किस्से बता यह सिद्ध कर दिया कि भीमराव जातिवाद से ऊपर उठकर मानवतावाद की बुलन्द आवाज थे।
उनके जीवन निर्माण में ब्राह्मणों के योगदान की कुछ विशेष घटनाएं इस प्रकार हैः
बरसात में भीगे हुए भीम को अपने घर ले जाकर उनके ब्राह्मण शिक्षक ने अपने पुत्र के साथ गर्म पानी से स्नान करवाया। डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपने 50वें जन्मदिवस इस घटना को स्मरण करते हुए कहा था कि छात्र जीवन का यह उनका पहला सुख था।
उनके ब्राह्मण शिक्षक कृष्णाजी केशव आंबेडकर को बालक भीमा का उपनाम आंबवडेकर का उच्चारण करने में कठिनाई होती थी। उन्होंने भीमा को अपना उपनाम आंबेडकर देते हुए कहा कि तुम्हारी अटपटी और कठिन उच्चारणों वाले उपनाम के बदले अब इसे लिखना। साथ ही उन्होंने रजिस्टर में आंबेडकर कर दिया। आज यह करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा रूप है।
इसी शिक्षक की एक और घटना का वर्णन डॉ. आंबेडकर किया करते थे। यह सतारा सेना के स्कूल (साल्वेशन आर्मी स्कूल) की घटना है। वहां छूआछूत बहुत ही कम थी। कृष्णाजी केशव आंबेडकर शिक्षक थे। वे सभी शिष्यों से समान व्यवहार करते थे। दोपहर को भीमा भोजन के लिए घर जाता था। वह देर से वापस आता। यह गुरुजी को अच्छा नहीं लगता। इसलिए गुरुजी अपने टिफिन में रोटी और सब्जी कुछ ज्यादा ही लाने लगे। वे भोजनावकाश के समय भोजन प्रेम भाव के साथ देते थे। डॉ. भीमराव ने इस स्वाद को जीवन भर याद रखा। अपने जन्मदिन हीरक महोत्सव के अवसर पर उन्होंने गौरव के साथ इसका उल्लेख कर कहा कि पाठशाला के जीवन काल का यह उनका दूसरा सुखद संस्मरण है।
यह घटना 1902 से 1906 के बीच की है। नारायण मल्हावराज जोषी एल्फीस्टन हाईस्कूल में अंबेडकर के शिक्षक थे। उन्होंने छात्र अंबेडकर को आखिरी बैंच से उठा कर पहली बैंच पर बैठाया। ब्लैक बोर्ड पर लिखने को कहा, नतीजा यह आया कि सभी सवर्ण छात्रों को ब्लैकबोर्ड के पीछे रखा अपना टिफिन हटाना पड़ा।
गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे ब्राह्मण थे। इनके नेतृत्व में 25-12-1927 मनुस्मृति की होली कर दी गयी। वे बाद में जनता के संपादक रहे। सार्वजनिक स्थलों पर दलितों के प्रवेश का प्रस्ताव पेश करने वाले सीताराम केशव बोले भी भंडारी जाति के थे।
दलितों को यज्ञोपवित देने, समूह भोजन आयोजित करने और अंतर्जातीय विवाह के लिए स्थापित समता संघ के आगेवान लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सुपुत्र श्रीधरवंत तिलक भी ब्राह्मण थे। इन्होंने गायकवाड के तिलक के दीवान खाना में डॉ. अंबेडकर तथा दलित नेताओं के साथ बैठकर चाय-पानी पिया।
समाज के समता संघ के मुखपत्र समता के संपादक देवराम विष्णुनाईक गोवर्धन भी ब्राह्मण थे। वे बाद में जनता साप्ताहिक के संपादन का कार्य भी किया।
रामगोपालाचार्य जिन्हें राजाजी के नाम से जाना जाता था, ब्राह्मण थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में डॉ. भीमराव अंबेडकर को शामिल करने का सुझाव दिया।
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने डॉ. शारदाकृष्ण राव कबीर नामक सारस्वत ब्राह्मण महिला के साथ 1948 में पुनर्विवाह किया। महाराष्ट्रियन परम्परा के अनुसार विवाह के बाद डॉ. अम्बेडकर ने उन्हें सविता नाम दिया। डॉ. अंबेडकर के पौत्र प्रकाश अंबेडकर ने भी ब्राह्मण युवती के साथ विवाह किया।
हिन्दू कोड बिल के साथ लोकसभा में डॉ. अंबेडकर का पंडित हृदयनाथ कुजरा, एनवी गाडगिल जैसे ब्राह्मणों ने समर्थन किया। गुजरात की हंसा मेहता भी ब्राह्मण थी। वे भी भीमराव के साथ थी।
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