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Friday, February 22, 2013




इन्टेलीजेंस एजेंसियों का इन्टेलीजेंट खेल !

भारत में कोई भी आतंकवाद की घटना के साथ दो चीज जरूर जुड़ी हुई हैं । पहला तो यह कि इस घटना की जानकारी इन्टेलीजेंस एजेंसी को थी और यह जानकारी सम्बन्धित सरकार की दी गई थी। और दूसरा इलेक्ट्रोनिक मीडिया से ले सोशल मीडिया तक सभी जगह सरकार को गालियां और हिंसा के रोंगटे खड़े कर देने वाले दृश्य। हैदराबाद की घटना मे भी यही सब कुछ हुआ।
इस घटना से कुछ घंटे पहले विधान सभा में मज़ेदार बात हुई। गृह सचिव एस के नन्दा को पत्रकारों ने घेर लिया। वे आई पी एस सिन्घल के गिरफ्तारी के बारे में जानना चाहते थे । पत्रकारों का कहना था सिन्घल  को सी बी आई ने गिरफ्तार कर लिया है। नन्दाजी का कहना था कि गिरफ्तारी के पूरे आसार हैं।
कुछ देर बाद जब नन्दाजी लिफ्ट में नीचे उतर रहे थे एक इन्टेलीजेंस का बंदा लिफ्ट में आया और नन्दाजी को एक एस एम एस पढ़ाया। बाद में मालूम पड़ा कि वह संदेश सिन्घल के गिरफ्तार होने के बारे में था। आप सोच सकते हैं कि अपने इन्टेलीजेंस वाले किस तरह से काम करते हैं।
तीन दशक की पत्रकारिता में इस प्रकार की बहुत सारी घटनाएं देखी हैं। हर प्रकार की जानकारी इन्टेलीजेंस के नाम पर इधर उधर होती रहती है। अगर वह जानकारी घटना मे तबदील होती है तो इन्टेलीजेंस के बंदे दावा करते हैं कि यह जानकारी उन्हें पहले से थी।
हमारे मित्र, एक उच्च पुलिस अधिकारी,  का कहना है कि यदि इन्टेलीजेंस की जानकारी पर काम करने बैठें तो कुछ और काम हो ही नही और जानकारी पर भी पूरा काम नही हो पाये। हमारी इन्टेलीजेंस की समस्या है कि उसकी जानकारी आधी अधूरी होती है। उस पर कोई भी कार्रवाई लगभग असम्भव होती है।
1994 के करीब की बात है। डी जे पांडियन उस समय गृह विभाग में डेप्युटी सेक्रेटरी थे। उनका एक काफी प्रिय जोक था। उनका कहना था कि सुबह अगर वो लॉ एन्ड ऑर्डर की किसी समस्या की चर्चा करते हुए कोई अटकल करते हैं तो शाम को वही बात उनकी टेबल पर इन्टेलीजेंस के रूप में आ जाती है!
देखा । अगर कुछ हुआ तो इन्टेलीजेंस एजेंसी सही और सरकार गलत और नही हुआ तो इन्टेलीजेंस वाले कह सकते हैं कि सामने वालों को मालूम हो गया है कि हमें मालूम हो गया है इसलिये उन्होने प्लान बदल दिया!!!

Thursday, February 21, 2013



विधान सभा की भगवा छटा

गुजरात विधान सभा का यह सत्र कई अर्थों में नया है। पिछले सात टर्म से भी अधिक समय से गुजरात विधान सभा के सदस्य और वित्त मंत्री रह चुके वजुभाई वाला अब विधान सभा अध्यक्ष हैं।

बार बार विधान सभा में तरह तरह के कोमेंट के लिये मशहूर अपने नितिनभाई अब वित्त मंत्री जैसी भारी पोस्ट पर बैठ सरकार को बचाने के फायर फाईटिंग ऑपरेशन में इस तरह फंसे दिखाई देते हैं कि कोमेंट वोमेंट कम ही कर्ते दिखलाई देते हैं।

खैर मुद्दा तो भगवा छटा का है। प्रतिपक्ष के नेता शंकरसिंह वाघेला  किसी जमाने के भाजपा के कद्दावर नेता हैं। गुजरात में भाजपा की नींव रखने वाले शंकरसिंह वाघेला  ने गुजरात में भाजपा को तोड़ यह भी बता दिया कि भाजपा अटूट नही हैं। वह भी और दलों की तरह ही है। हां पर भाजपा में शंकरसिंह वाघेला  की टक्कर का कोई और नेता नही है। पूरे देश में।

दो बार मुख्य मंत्री रह चुके अपने केशूभाई पटेल विरोध का दूसरा छोर हैं। दो सदस्यों वाली गुजरात परिवर्तन पार्टी के नेता हैं। पूरी जिंदगी आर एस एस से जुड़े रहे अपने केशूभाई पटेल ने मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी को कोसते हुए भाजपा छोड़ दी और चुनाव से कुछ महीने पहले गुजरात परिवर्तन पार्टी बना ली।

पर केशुबापा के नाम से मशहूर अपने केशूभाई पटेल की किस्सा तो पहले प्यार के टूटने वाले आशिक जैसा है। दिल तो उनका अभी भी भगवा ही है। इसलिये चुनाव के दौरान वे यह कहते थे कि असली भाजपा तो उनकी है।

आप विधान सभा अध्यक्ष वजुभाई वाला की हालत की कल्पना कर सकते हैं। सदन मे वे जहां भी नज़र करते हैं , बुलन्दी पर भगवा ही दिखलाई देता है। फिर चाहे वो उनके अपने भाजपा वाले मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी हों या फिर भूपू भाजपाई शंकरसिंह वाघेला  और केशूभाई पटेल हों।

तीनों की विषेशता यह है कि , तीनों एक ही स्कूल की प्रोडेक्ट हैं। विचार से ले भाषण देने की कला तक।

इसलिये आज जब शंकरसिंह वाघेला  ने अपना धांसू भाषण दिया तो भाजपाईयों के पास उसका कोई तोड़ ही नही था। क्योंकि छटा तो भगवा थी!

Wednesday, February 20, 2013

बजट और टैक्स का खेल


पिछले कई वर्षों से सरकार का बजट बस आंकडों का मायाजाल बन कर रह गया है। सरकार करों मे वृद्धी और कटौती के खेल से आम आदमी को छलती रहती है। अब गुजरात सरकार के इस बार के बजट को ही ले लो।
वित्त मंत्री नितिन पटेल का यह पहला बजट था। वैसे इसका कोई खास फर्क नही पड़ता। बजट तो बाबू ही बनाते हैं। पर बाबू लोग भी क्या करें। कुछ रहा ही नहीं कर लादने के लिये। तो हर साल होता है संगीत कुर्सी जैसा खेल।
सिगरेट और तम्बाकू की लगभग हर दूसरे बजट मे शामत आ जाती है। हानिकारक बता इन चीजों पर कर का दर बढा दिया जाता है। इस बजट में सिगरेट पर कर २५ से ३० प्रतिशत कर दिया गया। सरकार को भी मालूम है कि स्वास्थय के लिये हानिकारक की चेतावनी के बावजूद लोग इन्हें नहीं छोड़ेंगे। लत जो लगी हुई है।
सरकार कर लगाने के नये नये रास्ते ढूंढती रहती है। अब कार्बन क्रेडिट का मुद्दा ही लो। यह सारा खेल दुनिया में प्रदूषण कम करने के लिये हो रहा है। कार्बन की खपत कम करने के लिये प्रोत्साहन दिये जा रहे हैं। इससे कार्बन क्रेडिट का अलग सट्टा बाज़ार शुरू हो गया है। लोग कमाने का कोई रास्ता ही नही छोड़ते।
उधर सरकार भी टैक्स लगाने की ताक लगाये रहती है। इस बार वित्त मंत्री नितिन पटेल ने साफ कर दिया कि अब कार्बन क्रेडिट के धंधे में सरकार भी अपना हिस्सा लेगी बतौर टैक्स के। ठोक दिया ५ प्रतिशत टैक्स। अब शुरू हो गया टैक्स का खेल। शायद अगले वर्ष यह बढ़ कर दस हो जाये फिर बारह …।
पिछले साल सरकार ने सेकन्ड हैन्ड कारों की खरीद फरोक्त पर टैक्स लगाया था। इस बार दुपहिया वाहनों पर ठोक दिया । अगली बार दोनो पर टैक्स बढ़ जायेगा अगर कोई नया मुद्दा नही मिला तो।
वर्षों हो गये यह सुने हुए कि सराकार ने मंत्रियों और बाबुओं के खर्च मे कटौती की है या फिर अब बाबू नजदीक की जगहों पर गाड़ी मे जायेंगे या फिर चार बाबू मिल कर एक ही गाड़ी का उपयोग करेंगे।
कैसे हो यह। बजट बनाने वाला बाबू और बजट मंजूर करने वाला मंत्री! इन दोनों के बीच मे फंसे हम और तुम।

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