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Saturday, July 28, 2007

दो बार इस्तीफ़ा देने के बाद भी बने हुए हैं मंत्री अपने भाई..

राजनीति में इस्तीफ़ा बडा ही सशक्त शस्त्र है। बस इस्तीफ़े के धमकी से ही काम चल जाता है। लोग देते नही है। मालूम नहीं कब स्वीकार हो जाए।

पर अपने भाई तो भाई हैं। उनके दोस्त और दुश्मन सभी उन्हे भाई कहते हैं वैसे उन्हे भी यह सम्बोधन काफ़ी प्रिय है। वैसे तो उनके दो दो चुनाव जीतने के बावजूद भी वो मुम्बई पुलिस की भाई की लिस्ट में ही हैं।

अपने भाई है गुजरात के पुरषोत्तम सोलंकी। मोदीजी के मंत्रीमंडल में मछली मंत्री! सरकारी गनमैन हो या न हो भाई के अपनी सिक्योरिटी तो हमेंशा साथ रहती है।

उन्होने उनकी जाति की दो युवतियों के बलात्कार के विरोध में दो बार इस्तीफ़ा दे दिया। कार और बंगले का भी उपयोग करना बंद कर दिया। गांधीनगर में सचिवालय की तरफ़ मुंह करना भी बंद कर दिया।

एका एक कल सभी समाचार पत्रों में उन्होने एक प्रेसनोट भेज डाली। पाकिस्तान की जेलो से भारतीय मछुआरों को छुडवाने के लिये । सभी पत्रकार आश्चर्यचकित! कई मित्रो ने फ़ोन कर डाले। पूछा भाई ये क्या?

अपने भाई भी कम थोडे है। बोले हमने इस्तीफ़ा दिया यह एक हकीकत । पर साथ ही यह भी एक हकीकत है कि मुख्यमंत्री नरेन्द्रभाई ने अभी तक स्वीकार नही किया है! और मजबूरन में मंत्री हूं !!

गुजरात के सांसद जेटली गुजरात आ रहे है!

अरुण जेटली गुजरात के सांसद हैं। उनका गुजरात आना एक समाचार बन जाता है। वो कब आते है, कब चले जाते है, क्या कर जाते है वह शायद केवल भाजपा कार्यालय के रिकार्ड की बाबत है, जिस तरह संसद में उनका गुजरात का प्रतिनिधि होना।

गुजरात भाजपा के मीडिया को आर्डिनेटर और जेटलीजी के अहमदाबाद के एक निकटतम सूत्र यमल व्यास बतलाते है कि जेटलीजी पिछ्ली बार अप्रैल में आए थे। प्रयोजन था चेम्बर में एक कार्यक्रम । वैसे भी राज्यसभा सांसदो को आम आदमी से नाता ही क्या?

पहले महिने दो महिने में चक्कर मार लेते थे, पर जबसे उन्होने माधुपुरा बैंक का कई हजार घोटाला संभाला है सब कुछ दिल्ली में ही निपटा लेते हैं। वो घोटालेबाजो की पैरवी कर रहे हैं। क्योंकि केस सुप्रीम कोर्ट में था इसलिये वे घोटालेबाजो को दिल्ली में ही मिल लेते है।

यह बैंक घोटाला इतना बडा था कि गुजरात की १०० से ज्यादह बैंक इसके कारण डूबने के कगार पर आ गई। नतीजा यह हुआ कि इससे लोगो ने जेटलीजी का अहमदाबाद आना ही बंद करवा दिया!

खैर अब जब वो आ रहे हैं तो मोदीजी अपनी जेड प्लस सिक्योरिटी दे कर भी उन्हे बचायेंगे। वैसे मोदी-जेटली रिश्ता काफ़ी प्रेम भरा है। पर अब तो अपने जेटलीजी मोदीजी के भाजपा इलेक्शन एजेंट बन कर आ रहे हैं।

राजनाथसिंहजी ने आगामी विधानसभा चुनाव की बागडोर तो मोदी जी के हाथ में सौंपते हुए कहा कि आपके प्रिय अरुण जेटली इस कार्य में आपके सहयोगी होंगे।

Friday, July 27, 2007

गुजरात में जनसंघ ने छेडी भाजपा के विरुद्ध जंग

गुजरात में चुनावी दौड में जनसंघ ने भी उसके घोडे उतारने की तैयारीयां शुरु कर दी है। उसके प्रदेश अध्यक्ष गोपाल भाई पटेल ने हाल ही में एक फ़ोर कलर पुस्तिका भी प्रकाशित भी की है। इसमे जनसंघ और हिन्दुत्व के बारे में कई लेख भी है।

सबसे अधिक ध्यान खेंचने वाला एक रंगीन चार्ट है जो यह बताता है कि भाजप उसकी मूल संस्था जनसंघ से कितना अलग और गिरा हुआ है। स्थापक के बारे में लिखा गया है कि जनसंघ की स्थापना भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और राजश्री बलराज मधोक जैसे महानुभावो ने की तो भाजप की स्थापना अटल आडवानी की जुगल जोडी ने की।

दल के ध्वज के बारे में इनका कहना है कि जनसंघ का ध्वज शत प्रतिशत शुद्ध भगवा है जबकि भाजपा के झंडे में ३३ प्रतिशत हरा रंग मुस्लिम तुष्टिकरण का संकेत है। जनसंघ के प्रेरणा स्त्रोत है डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय जैसे हिन्दुवादी नेता जबकि भाजपा के प्रेरणा स्त्रोत है गांधी, नेहरु, जयप्रकाश नारायण और सिकंदर बख्त जैसे नेता।

लक्ष्य के बारे में उनका कहना है कि जनसंघ का लक्ष्य हिन्दु राष्ट्र बनाना है और भाजपा का लक्ष्य मुस्लिम तुष्टिकरण कर किसी भी किंमत पर सत्ता हांसिल करना। जनसंघ के पास बलराज मधोक और प्रफ़ुल गोरडिया जैसे प्रतिभा संपन्न स्वच्छ, निडर और बहादुर नेता है तो भाजपा बाजपाइ, आडवानी जैसे सत्ता लोलुप, स्वार्थी, भ्रष्टाचारी और बिनकार्यक्षम शासन प्रणाली नेताओ का शंभु मेला है।

भैया चुनाव है, इस वर्ष चुनाव है ।

Thursday, July 26, 2007

फ़ेल नही हो पाने से नाराज छात्र

गुजरात की सौराष्ट्र युनिवर्सिटी का एक छात्र बडा दुखी है। उसकी तमाम कोशिशो के बावजूद वह फ़ेल होने मे सफ़ल नही हो सका। इस छात्र अमित पंड्या ने युनिवर्सिटी से पूछा है कि उसके गलत और वाहियात जवाबों के बावजूद उसे पास क्यों किया गया है।

उसका कहना है की उसने केवल ४० नंबर के प्रश्नो के ही जवाब लिखे थे। वे भी गलत सलत। इसके बावजूद उसे पास कर दिया गया है। क्यों ? क्या मै युनिवर्सिटी का दत्तक पुत्र हू? उसने युनिवर्सिटी को प्रश्न किया है। आमित की नारजगी का कारण जोरदार है।

MA -I हिन्दी की परीक्षा मे उसके तीन पेपर खराब गये थे। परिणाम अच्छा लाने के लिये उसने सोचा कि वो फ़ेल हो जाये और अगले साल बेहतर तैय्यारी के साथ परीक्षा मे बैठे। इसलिये उसने गलत सलत जवाब लिखे। और केवल ४० नंबर के प्रश्नों का ही जवाब लिखा।

उसका कहना है कि पहले तीन प्रश्नों का जवाब ही नही लिखा। चौथे प्रश्न के जवाब मे उसने अपनी ही व्याख्यायें ही लिखी और लेखकों के नाम पर अपने दोस्तों के नाम लिख दिये। प्रश्न था काव्यानुवाद की समस्या के बारे मे।अमित ने अपने मित्रों के नाम और उनके घर के पते लिख डाले। प्रश्न पांच के सवाल के जवाब मे अमित ने रजनीश और गौतम बुध्ध के बारे मे लिखा और जब इससे भी संतोष नही हुआ तो क्यों की सांस भी कभी बहु थी सीरियल के बारे मे लिख डाला।

उसने युनिवर्सिटी से पूछा है कि सभी सवालों के जवाब लिखने वाले फ़ेल हुए है तो मै कैसे पास हो गया? युनिवर्सिटी के अधीकारियों के होश उड गये है अमित के खुले प्रश्नों से ।

Wednesday, July 25, 2007

दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के जन्मदिन

चुनाव के दिनों मे नेताऒ के जन्मदिन की बात ही अलग है पिछ्ले चार दिनों में गुजरात के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने उनके जन्मदिन मनाए। ये है शंकरसिंह वाघेला और केशुभाई पटेल । दोनों में काफी समानताए है ।

दोनों मूलत: संघ परिवार से है । गुजरात के अन्य मुख्यमंत्रियो को कौन पूछता है। माधवसिंह सोलंकी, दिलीप परिख, छबील्दास मेहता, सुरेश महेता, सब ना जाने कहां खो गये हैं ।

दोनों ही राजनीति में सक्रिय है । वाघेला मनमोहन सिंघ सरकार में कपडा मंत्री है। केशुभाई राज्यसभा के सदस्य है और गुजरात की राजनीति में काफी सक्रिय है। मजेदार बात तो यह है कि इन दोनों का दुश्मन एक ही है, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ।

शंकरसिंह वाघेला के गांधीनगर स्थित आलीशान बंगले “वसंत वागड“ में तो बसंत का ही माहौल था। साढे नौ से डेढ बजे तक में हजारों की भीड़ । बगंले से एक किलोमीटर दूर लम्बी पार्किंग की भीड़ । हमेशा ही शंकरसिंह बापू के दर्शन के लिए १००-१५० की लाईन ।

हमें तो बापू के जन्मदिन पर एक चीज बडी ही जोरदार लगी । खाने के दस काउन्टर । हलवा, आम के मठा के साथ तरह तरह के व्यंजन । लोग आते रहे ,बापू के दर्शन के बाद भोजन कर देर तक बतियाते रहे।

हर साल वसंत वगडा में २१ जुलाई को बहार आती है। इस बार तो इस बहार की बात ही कुछ और थी। बापू के एक विशवस्त ने इसका राज खोला । इस वर्ष चुनाव हैं। सही बात है टिकट चाहिए तो अपना प्रभाव यहां बताओ।

केशुभाई भी वाघेलाजी की तरह जमीनी नेता हैं। इस बार उनके यहां नेताओं को तो छोडों कार्यकर्ता भी नहीं दिखाई दिये। हाँ अपने मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीजी जरुर आये। आने से पहले ही उन्होने फोटोग्राफरों और चैनलवालों को केशुभाई से जन्मदिन हैडंशेक के एतिहासिक फोटो के लिये न्योता दे दिया था।

सब आए। पर केशुभाई ने मोदीजी के साथ फोटो खिचवाने से इंकार कर दिया। साफ है एक दिन पहले ही मोदीजी ने उनके पांच प्यारों को शहीद कर दिया था। अपने पांच प्यारों के खून से रक्तरंजित मोदी से तो वो बात भी नहीं करना चाहते । वो तो अतिथि देवो भव: के भाव से उन्होने मोदीजी को उनके बंगले में आने दिया।

आज सभी कह रहे हैं कि कौन जायेगा केशुभाई के बंगले । चुनाव का वर्ष है, टिकट चाहिए। केशुभाई की छाया पडना मतलब है टिकट कट जाना !!

Tuesday, July 24, 2007

एक सम्‍पादक जो सभी रचनाओं का उपयोग करता था

प्रत्‍येक लेखक की इच्‍छा होती है कि उसकी सभी रचनाएं छपें। पर पत्रकारिता में यह सम्‍भव नहीं। इसीलिये तो हर पत्रकारिता के छात्र को पहले दिन ही कहा जाता है कि कभी भी रचना के वापिस लौटने से नाराज न हों।


खैर, हम यहां एक ऐसे सम्‍पादक के बारे में लिख रहे हैं जिसके बारे में यह मशहूर है कि वह कभी भी किसी रचना को वापिस नहीं लौटाता था। वह उसके कार्यालय में आई प्रत्‍येक रचना का उपयोग करता था।


यह था "वीसमी सदी" मासिक का सम्‍पादक हाजी मोहम्‍मद अल्‍लारखा शिवजी। १९१६ में शुरु हुआ यह प्रकाशन पांच वर्ष तक निकला। इसका हर अंक लाजवाब था। जैसा कि हम अपनी पिछली पोस्‍ट में लिख चुके हैं कि इसके रद्दी के अंकों ने कुछ मित्रों को इतना प्रेरित किया कि इस रविवार को उन्‍होंने इसका डिजीटल अवतार लांच किया।

मासिक में प्रत्‍येक रचना उसके हाथों से लिखी होती थी। आज के जमाने मे टाइम और न्यूजवीक कोपी राइटर रखते है , हाजी उस जमाने मे यह विचार लाया था उस जमाने में भी वह लेखकों को अच्‍छे पैसे देने में मानता था। दीपोत्‍सव अंक में उन्‍होंने गोवालणी नामक लघु कथा छापी। वह गुजराती की पहली लघु कथा थी। लोगों ने उसकी बहुत तारीफ़ की। हाजी ने अपने कुछ मित्रों को कहा को यदि मेरे पास पैसे होते तो मैं इसके लेखक रा।मलयानिल को सौ रुपये देता।

किसी सम्‍पादक को यह लगे कि उसने लेखक को कम पैसे दिये हैं यह एक बहुत ही बिरली घटना है। एक बार उन्‍होंने अपने एक लेखक मित्र के समक्ष इसका राज खोला। वो बोले मैं पैसे उडाता नहीं हूं। मैं मेरे प्रकाशन को लाभ के लिये भी नहीं करता हूं।


पर, उन्‍होंने कहा, मेरी इच्‍छा है कि मेरे गुजरात में कोई बर्नाड शो बने, कोई जी चेस्‍टटर्न बने, कोई एच जी वेल्‍स बने। ये नामक प्रखर विचारकों के हैं। आम आदमी उन्‍हें नहीं पढता। पर वीसमी सदी में हाजी का उद्देश्‍य था लोगों को मनोरंजक शैली में चित्रात्‍मक स्‍वरुप में ओतप्रोत जानकारी देना।
एक बार हाजी अपने मित्रों को नाचने गाने वाली महिलाओं के क्षेत्र में ले गये। एक लटके झटके वाली महिला आई। इनके मित्र काफ़ी अचम्‍भित। हाजी यहां क्‍यों लाएं। हाजी ने अपने इस मित्र, एक बहुत बडे चित्रकार, रविशंकर रावल को कहा कि घबराओ मत। मैं तुम्‍हें यह बताने लाया हूं कि, यहां की महिलाएं भी वीसमी सदी पढती हैं।


उस महिला ने तुरंत कहा कि हाजी इस बार का अंक नहीं मिला। हाजी ने कहा कि वो इस बार का अंक खुद लाये है। क्‍योंकि उनकी प्रति डाक में वापिस आई है !! ऐसे थे हाजी।


उनके ४,००० से अधिक सशुल्‍क ग्राहक थे। ए एच व्‍हीलर जो भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों को महत्‍व नहीं देता था वह भी वीसमी सदी रखता था। रु १५-१६ मासिक तन्‍ख्‍वाह वाले उनके चाहक मिल कर अठन्‍नी खर्च कर वीसमी सदी खरीदा करते थे।


यह सब हमने वीसमी सदी के डिजीटल स्‍वरुप के कार्यक्रम में दी गई जानकारी के आधार पर लिखा है। आप भी http://www.gujarativisamisadi.com/ क्लिक कर इस पत्रिका की भव्‍यता का नजारा देखिये।

Monday, July 23, 2007

गुजरात भाजपा की महाभारत के पात्र

गुजरात भाजपा मे चल रहे महाभारत को कौन नही जानता। कल ही आला कमान ने पांच बागियो को निलम्बित कर दिया। इन पांच पांडवों से पहले दो तो निलम्बित की सूची मे है ही। आप कह सकते हैं- सप्तरंगी विरोध बागियों का । यदि आप लिंग भेद ढूंढना चाहते हैं तो आप सफ़ल नही होंगे। इसमे दुर्गा स्वरूप रमीलाबेन देसाई भी है।

अब जब महाभारत चल रही है तो पात्र तो होंगे ही। बागी गोरधन झडफ़िया ने इन पात्रों की जो सूची जारी की है वह आज के गुजरात के अखबारों मे काफ़ी चमक रही है।

इस महाभारत के धृतराष्ट्र हैं, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी , दुर्योधन हैं, मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ,भीष्म है पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ।पूर्व केंद्रिय कपडा मंत्री काशीरम राणा को दिया गया है द्रोणाचार्य का नाम और पूर्व मुख्य मंत्री सुरेश महेता बने है कृपाचार्य ।
प्रदेश अध्यक्ष पुरुशोत्तम रूपाला हैं इस महाभारत के कर्ण और प्रभारी ओम माथुर बने शकुनी मामा ।पूर्व मंत्री गोरधन झडफ़िया है युधिष्टर और पूर्व मंत्री बेचर भादाणी का पात्र है भीम का , बावकु उघाड को दिया गया है नाम सहदेव, विधायक बालु तंती की भूमिका है नकुल की , विधायक सिद्धार्थ परमार को नाम दिया गया है अभिमन्यु। कार्यकर्ता बने है द्रौपदी और गुजरात की जनता कृष्ण।
रमीलाबेन को कोई पात्र नही दिया गया है शायद इस्लिये कि वे स्वयं को रणचंडी घोषित कर चुकी है।

कुछ सुर्खिया भी जोरदार हैं:

भाजपा मे महाभारत, पांच पांड्वों को बाहर निकाल दिया

अरुण जेटली ने पहले माधुपुरा बैंक डुबोई अब भाजपा डुबोयेगा

जरासंध मोदी के अत्याचार बहुत हुए अब उसका वध जरूरी, सांसद कथीरिया

पार्टी शुद्ध हुई अब चुनाव की तैय्यारी करो, रूपाला

एक कुलपति जो स्‍कूल में भी नहीं पढा

यह कोई स्‍कैंडल नहीं है। यह है कहानी गुजरात विद्यापीठ के नये कुलपति नारायण देसाई की। महात्‍मा गांधी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई ने गुजरात विद्यापीठ के कुलपति का कार्यभार संभाल लिया है।

८३ वर्षीय नारायण देसाई आज अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ में आये। नारायण देसाई आजकल उनकी गांधी कथा के लिये मशहूर हो रहे हैं। उनका कहना है कि गांधी संदेश फ़ैलाने का यह अभियान ही उनका मुख्‍य कार्य है।

गुजरात विद्यापीठ का उनका कार्य उसी सीमा तक होगा जहां तक वह उनके इस मिशन में बाधा नहीं बनता। वे विद्यापीठ के कामकाज में दखलंदाजी नहीं करेंगे। साथ ही उन्‍होंने यह भी स्‍पष्‍ट किया कि उनकी भूमिका वर्ष में सात दिन की हाजरी के नियम तक सीमित नहीं रहेगी।
नारायण देसाई गांधीवादी है यह तो सभी को मालूम है। पर, उनकी सबसे बडी खासियत यह है कि उन्होंने औपचारिक शिक्षा नहीं पाई है। स्‍कूल में एकाध वर्ष ही उनकी औपचारिक शिक्षा है।महात्‍मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण के खुले विद्यापीठ में उन्‍होंने निरंतर शिक्षा प्राप्‍त की है। वे अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। अभी तक उन्‍होंने लगभग ५० पुस्‍तकें लिखी हैं। उनकी मशहूर पुस्‍तकों में "संत सेवता सुकृत वाद्ये" "रवि छबि" "टु वार्डस ए नान-वायलेंट रिवोल्‍यूशन" "मने केम बिसरे रे" "अग्‍नि कुंड में उगा गुलाब" और मारु जीवन एज मारी वाणी भाग-१ से ४ शामिल है।

नारायण देसाई ने जीवन के अधिकांश वर्ष खादी, नई तालीम, भूदान, ग्रामदान, शांति सेना एवं अहिंसक आंदोलन में बिताए हैं। उन्‍होंने सर्वोदय कार्यकर्ता, पत्रकार, एवं शिक्षाविद के रुप में भी यशस्‍वी कार्य किए हैं। "भूमिपुत्र" के स्‍थापक संपादक एवं "सर्वोदय जगत" (हिन्‍दी) एवं विजिल (अंग्रेजी के संपादन-प्रकाशन) में सहयोग दिया है। आपातकाल के दौरान वे भूमिगत रहकर कार्यरत थे। नारायण देसाई ने संपूर्ण क्रांति विद्यालय, वेलघी द्वारा सच्‍चे अर्थ में शिक्षा, प्रशिक्षण एवं वैकल्‍पिक जीवन शैली के निर्माण का कार्य किया है।

उप-कुलपति सुदर्शन अयंगर का कहना है कि देसाई वैकल्पिक शिक्षा के जीवन्त उदाहरण हैं ।

फ़र्जी मुठभेड में गिरफ़्तार वणझारा जब जेल से बाहर निकले

फ़र्जी मुठभेड मे गिरफ़्तार डग डी जी वणजारा और अन्य को आज अदालत मे पेश किया गया। वणजारा का अंदाज एक हीरो सा था और उससे मिलने भी काफ़ी लोग आये थे। पेश है कुछ तसवीरें ।





सरदार पटेल ने जब विक्‍टोरिया गार्डन में तिलक का बुत रख दिया

आज बाल गंगाघर तिलक का १५१वां जन्‍मदिन है। अहमदाबाद से उनका काफ़ी महत्‍वपूर्ण सम्‍बन्‍ध रहा है। आज से ९९ वर्ष पूर्व उन्‍हे काफ़ी रहस्‍यमय तरीके से साबरमती जेल में लाया गया था।
हालांकि वे इस जेल में ५३ दिन रखे गये, यहीं उन्‍होंने स्‍वराज हमारा जन्‍मसिद्ध अधिकार है, हम स्‍वराज लेकर रहेंगे का नारा दिया था।
इस स्‍वतंत्रता सेनानी को उनकी पुस्‍तक गीता रहस्‍य के लिये भी जाना जाता है। उनकी मृत्‍यु १ अगस्‍त १९२० में हुई। १९२४ में अहमदाबाद के विक्‍टोरिया गार्डन में उनका बुत रखा गया। विक्‍टोरिया के स्‍तूप के समान्‍तर।
उस समय सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी के अध्‍यक्ष थे। यह बुत उन्‍होंने लगवाया था। इस अवसर पर गांधीजी ने कहा था कि सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्‍युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी है। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्‍थापित करने की हिम्‍मत बताने के लिये उन्‍हें अभिनन्‍दन देता हूं।

रद्दी के ढेर से उभरा बीसवीं सदी का डिजीटल अवतार

कुछ वर्ष पूर्व मुम्बई मे एक उध्योगपति को सन्डे बाज़ार मे एक बहुत ही आकर्षक मासिक की कुछ प्रतियां मिली। उध्योगपति नवनीत शाह को आज भी याद नहीं कि ये प्रतिया उनके हाथ कब लगी। इसी प्रकार कुछ समय पहले अहमदाबाद के एक पत्रकार धीमंत पुरोहित को एक सचित्र प्रकाशन की कुछ प्रतिया हाथ लगी। इन दोनो सहित्य के रसियाओं ने अपने अपने प्रकाशन के और अंकों की खोज शुरू कर दी।

और आज से लगभग दो वर्ष पूर्व गुजरात के एक मशहूर कोलमनिस्ट रजनी पंडया को इन दोनो ने अपनी इन अंकों की खोज के बारे मे कहा। उसे मालूम पडा कि ये दोनो एक ही मासिक के अंको के ढूंढ रहे थे। यह था गुजराती भाषा मे तब बम्बई से प्रकाशित होने वाला मासिक वीसमी सदी अर्थात बीसवीं सदी। १९१६ मे शुरू हुआ यह मासिक केवल पांच वर्ष ही निकला यानि की केवल ६० अंक।पर इसके सम्पादक की सोच, प्रकाशन की गुण्वत्ता के कारण १९१६ का यह मासिक ९० वर्ष बाद भी पत्रकारिता का एक स्तम्भ है।

उस जमाने मे इसके मालिक एंव सम्पादक हाजीमोहम्मद अल्लारखा शिवजी ने बीसवी सदी को फ़ोर कलर मे निकाला था। उनका नाम वे अपने दादा के नाम के साथ लिखते थे, और यह इस बात का परिचय देता था कि उनके दादा हिन्दु थे। इसका टाईटल पेज इंगलैंड मे बनता था और इसके १०० पन्नों मे १२५ चित्र होते थे और वह भी गुण्वत्ता वाले।

हाजीमोहम्मद खुद को बीसवीं सदी का अधीपती कहते थे। उनके विचार स्पष्ट थे। पाठक को रोचक शैली मे सचित्र पठनीय सामग्री देना।

खैर, अब इन तीनों, नवनीत भाई, धीमंत और रजनी पंडया ने बाकी के अंकों की खोज जारी रखी। अथक प्रयत्नों के बाद वे केवल ५५ अंक ही इकठ्ठे कर पाये। नवनीत भाई के आर्थिक सहयोग और बिरेन पाध्या के तकनीकी संसाधनों की मदद से इन ५५ अंको को डिजीटाईज किया गया । और इस डिजीटल अवतार का अनावरण कल शाम को अहमदाबाद में एक भव्य कार्यक्रम मे हुआ। इस वेबसाईट को लोंच किया ९७ वर्षीय रतन मार्शल ने । अपनी पूरी सलामत बत्तीसी वाले मार्शल की आवाज मे किसी फ़ौजी की बुलन्दी खनकती है। मार्शल की खासियत यह है कि गुजराती पत्रकारिता का ईतिहास लिखने वाले मार्शल की ५७ वर्ष पूर्व लिखी गई पुस्तक का कोई सानी नही है।

इस वीसवीं सदी को डिजीटल अवतार दिलाने वाले मित्रों को एक बात का बहुत दुख है। उनके तमाम प्रयत्नों के बावजूद वे हाजी के वंशजो को ढूंढ नही पाये हैं। उनके इन प्रयत्नों के बारे मे भी हम लिखेंगे। यदी आप किसी को यह जान्कारी मिले तो आप हमे या इस प्रकाशन की वेबसाईट पर दे सकते है। यह वेबसाईट वीसवीं सदी के सौंदर्य और भव्यता की झलक देती है। पीले पडे कागजों मे बिखरी हाज़ी की पत्रकारिता कहती है- खंडहर बता रहें हैं कि इमारत कभी बुलंद थी। इस वेब साईट का URL है, http://www.gujarativisamisadi.com/ भले ही आपको गुजराती नही आती हो, हाजी का सौंदर्य बोध तो आपअको उसी तरह लुभायेगा जिस तरह उसका जादू नवनीत भाई और धीमंत के सिर चढ कर बोल रहा है ।

Saturday, July 21, 2007

अहमदाबाद में अब एक और एफ़ एम रेडियो

अहमदाबाद वासियों को अब एक और एफ़ एम रेडियो मिल गया है। यह है ९४.३ माई एफ़ एम दिल से। अभी कुछ समय पहले ही (दोपहर तीन बजे) इस एफ़ एम रेडियो का प्रसारण शुरु हुआ।

टाइम्स के रेडियो मिर्ची की टक्कर में भास्कर ग्रुप का माई एफ़ एम दिल से। रेडियो मिर्ची २४ घंटे है जबकि माई एफ़ एम सुबह सात से रात के बारह तक होगा।

घोषणा के अनुसार यह कार्यक्रम ७० किमी की त्रिज्या में सुना जा सकता है। इस ग्रुप के अन्य भारतीय शहरों में एफ़ एम है इसलिए श्रोताओं को वैरायटी मिलने की पूरी संभावना है।

कुछ भी हो अब अपने अमदावादियों को बोरियत का तीसरा विकल्प मिल गया है।

Friday, July 20, 2007

जब विधानसभा मे मोदी जिन्ना भाई भाई गूंजा

गुजरात विधान सभा का दो दिन का मानसून सत्र बडे ही चटपटे अंदाज मे खत्म हुआ। पूरे दिन ही कांग्रेसियों की नारेबाजी गूंजती रही। वाक आउट का नया अंदाज देखने को मिला। अपने कांग्रेसी भाई मोदी सरकार की हाय हाय बोलते सदन के बाहर जाते और अगले पल वापिस आ जाते। ये था अपने कांग्रेसियों का सांकेतिक वोक आउट।
इस सब आवन जावन मे अध्यक्ष ने दो सद्स्यों को बाहर भी निकाल दिया। पर अपने भाजप के बागी धीरु गजेरा का तो अंदाज ही अलग। खडे हो गये सरकारी मैगेजीन गुजरात को हाथ मे ले और बोले इसमे ये जिन्ना के लेख का क्या? बस कांग्रेसी तो थे ही टूट पडने को तैय्यार ।शुरू हो गये नारे मोदी-जिन्ना भाई भाई और सांकेतिक वोक आउट ।
पर इस दौरान अपने धीरुभाइ को बाहर नही निकाला गया। अध्यक्ष ने सिपाही भेज उन्हे उनकी कुर्सी पर बिठवा दिया। और बाहर अपने कांग्रेसी लगे चिल्लाने आडवाणी-जिन्ना भाई भाई,जशवंत मसूद भाई भाई ...
और थोडी देर मे गजेरा चुपचाप खिसक लिये। भैय्ये इसे राजनीति कहते हैं।

Wednesday, July 18, 2007

गोल्फ़ क्लब से अपना स्टेटस बनाओ

आज गांधीनगर मे अपने शिब्बू भाई मिल गये। आजकल वो गांधीनगर के एकमात्र रेसोर्ट और स्पा, केम्बे रेसोर्ट एंड स्पा मे है। हमने पूछ ही लिया शिब्बू भाई क्या चल रहा है? आजकल कहां घूम रहे हो। अपनी मलयाली अंग्रेजी मे बोले कि अब वो मैनेजर गोल्फ़ हैं केम्बे रेसोर्ट और स्पा मे । काम क्या करते हो ?, हमने पूछा । तपाक से बोले मार्केटिंग करता हू, गोल्फ़ क्ल्ब की।

बोले आओ कभी, गोल्फ़ बडा अच्छा खेल है । ट्राई करो, हमारे गेस्ट बन कर आऒ। हमने कहा, पर यार हमे तो गोल्फ़ बडा उबाउ खेल लगता है। पतली डंडी से छोटी सी बोल को मारो और फ़िर चलो। अपनी क्रिकेट अच्छी। एक बार जम गये तो जब तक आउट ना हो तब तक बोल को झूडते रहो। खुद मझा लो और देख्नने वाले को भी मझा कराओ।

बोले कैसे पत्रकार हो। गोल्फ़ बडा ही अच्छा खेल है। प्रदूषण मुक्त वातावरण मे खेलते है आप। वैसे भले ही आपको चलना अच्छा नहि लगता है, पर हरे भरे वातवरण मे बोल के पीछे तो आप उत्साह से जायेंगे। हो गई ना आपकी वाकिंग ।सबसे अच्छा तो यह है कि आपका कम्पीटीशन आपसे खुद से ही है । अपना गोल ऊंचा रखिये और अपना ध्यान केंद्रित कर खेलिये आपकी एकाग्रता बढेगी। क्रिकेट खेल्ने के लिये तो कई खिलाडी चाहियें यहा तो बस आप ही आप है।

हमने कहा कि यार टाईम किसके पास है लम्बे मैदान मे इधर उधर होने का। क्या बात करते हैं आप, शिब्बू भाई बोले। हाई सोसाईटी मे काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है गोल्फ़। पिछले छह महिनो मे ही १५० मेम्बर बन गये है। इतने बडे शहर अहमदाबाद और गांधीनगर मे से १५० मेम्बर भी कोई संख्या है क्या? हमने कहा। उनका कहना था कि यह काफ़ी बडी संख्या है । इसकी फ़ीस ही रू १.५० लाख है, २५ साल की । साथ ही केम्बे रेसोर्ट और स्पा मे कई सेवाएं । १०० से ऊपर कमरे है रिसोर्ट मे वो बोले ।

बोले मेम्बर बनने से ही आपका स्टेटस बढ जायेगा। देश विदेश मे लोग इसका उपयोग नेट्वर्किंग के लिये करते है। मतलब- सही मेलजोल बढाने के लिये। मालूम नही मेम्बर के स्टेटस कैसे बढते है, केम्बे रेसोर्ट और स्पा ने इस गोल्फ़ क्लब से गुजरात मे उसका स्टेटस जरूर बना लिया है । अपने शिब्बू भाई को ही लो। कहां तो सरकारी दफ़्तर मे स्टेनोग्राफ़रगिरी करते थे, और कहा अब गोल्फ़ मैनेजरी। बोले कि पहले तीन महिने तो लोगो से मिल्ने और उन्हे समझाने मे ही गये । बाद मे ही ये १५० मेम्बर बने। लगता है की गोल्फ़ समझाते समझाते उनकी गोल्फ़ खिलाडी सी लक्ष्य दक्षता बन गई है !!!

पत्रकार होने के नाते अपने पास तो कभी कभार शिब्बू भाई के गेस्ट बन अपना स्टेटस बढाने का मौका तो है ही । ही ही....

Tuesday, July 17, 2007

गुजरात मे गाईड पहले, किताब बाद मे

अपना गुजारात काफ़ी प्रगतिशील राज्य है। खैर यह किसी को बताने की जरूरत नही है । हर क्षेत्र मे प्रगतिशील। आज कई क्षेत्रो मे अन्य राज्य गुजरात के नक्शे कदम पर चलते है। जगह जगह लोग पाठ्य पुस्तक रामायण से उपर नही आते, अपने यहा तो पुस्तक आये या नही आये गाईड तो पुस्तक छपने से पहले ही आ जाती है।। अरे भैये हिन्दी मे जिसे सुनहरी कुंजी कहते हैं।

दस की किताब तो पचास की कुंजी। और लोग खरीदते है।अरे भैये दुनिया का खेल तो कुंजी का खेल ही तो है । अब सीधी बात है। जब जवाब है तो सवाल तो होगा ही। सभी को मालूम है कि परिक्षा मे नंबर तो जवाब के मिलते है। आप अगर प्रश्न लिखे बिना उत्तर पुस्तिका मे लिखे, जवाब ५, जवाब ३... कोइ कम नंबर देगा क्या?

अब एसे मे यदि नये पाठ्यक्रम की पुस्तके स्कूल खुल्ने के बाद भी बजार मे ना आये तो क्या समस्या ? गाईड जिंदाबाद । मास्तर जी जो पढायेंगे वो आप घर से ही सवाल जवाब के रूप मे गाईड मे पढ कर जाईये और खुश रहिये। आप हीरो तो बन नही सकते क्योकि आपके सभी साथी यही फ़ार्मुला अपना क्लास मे मेघावी छात्र बने हुए है!!

इस साल कक्षा ५ और ६ की नई पुस्तके छ्पी है। एक महिना हो गया, अभी थोडी थोडी बजार मे आ रही है। मा बाप ने बच्चो को गाईडे दिलवा दी हैं। रोज पूछ्ताछ करते हैं कि किताबे आयी है क्या ? जवाब मिलता है, जल्द ही आ जायेंगी। अब जब पुस्तके आयी हैं तब उनके भाव आसमान पर हैं । ५वी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ७।५० से बढ कर रु २८ हो गया है। ६ठी की अंग्रेजी की किताब का दाम रु ९ से बढ कर रु १५ हो गया है। इस तरह सभी के दाम बढा दिये है। आज कांग्रेस ने इस मुद्दे पर आंदोलन की धमकी दे डाली । शक्तिसिंह, कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता बोले कि गरीबों का क्या मोदीजी के राज मे?

ये कांग्रेसी गरीबों को गरीब ही बने रहना देने चाहते है। अपने मोदीजी ने देर से पुस्तके छपवा सभी को गाईड का उपयोग करते कर दिया। अब ये बच्चे महंगी किताबे खरीदेंगे। देखा गरीबों की भी खरीद शक्ति बढवा दी अपने मोदीजी और शिक्षा मंत्री आनन्दीबेन ने। कांग्रेसी मोदी राज मे कुछ अच्छा देख ही नही सकते।

Monday, July 16, 2007

एक गुजराती वेबसाइट की क्लिक अपील


क्या आपने कभी किसी को विज्ञापन पढने की अपील करते हुए सुना है? इस गूगल जमाने में क्या नही हो सकता। एक गुजराती अखबार अकिला की वेबसाइट पर आज एक अनोखी अपील देखने को मिली। वेबसाइट पर अखबार के निमिष गणात्रा ने लोगो को कहा है कि पिछ्ले १० वर्षो से यह अखबार लोगो को वेबसाइट के माध्यम से मुफ़्त समाचार उपलब्ध करा रहा है।

गणात्रा का कहना है कि वेबसाइट चलाने का खर्च बढता जा रहा है। वेबसाइट देखने वालो को विज्ञापन को क्लिक कर उन्हे यह खर्चा उठाने में सहयोग देना चाहिये। अकिला दुपहर का अखबार है और राजकोट में काफ़ी लोकप्रिय है। सौराष्ट्र क्षेत्र जहा लोग दुपहर को आराम करने की संस्कृति वाले है वहा इस अखबार का नारा है, "सुबह चाय, दुपहर को अकिला"। उल्लेखनीय है कि इस अखबार ने कुछ समय पहले ही गूगल एड्सेंस के विज्ञापन छापने शुरु किये है। साफ़ है कि यह अपील गूगल एड के लिये ही है।

आपने कोइ एसा प्रकाशन देखा है जो आप को विज्ञापन पढने के लिये प्रेरित करे? यह है उसकी अपील की तस्वीरें,



अहमदाबाद की रथयात्रा के साथ साथ

चलो अहमदाबाद की रथयात्रा शांतिपूर्ण पूरी हो गई। पुलिस से ले पत्रकार तक सभी ने रथयात्रा के शाहपुर से गुजरने के बाद चैन की सांस ली। पिछले कुछ वर्षो से यह यात्रा उजाले में ही संवेदनशील क्षेत्रो में से गुजर जाती है। अकेले शाहपुर क्षेत्र में ही एमर्जेसी बिजली व्यवस्था के लिये बडे पैमाने पर इंतजाम किये जाते है।

इस बार और वर्षो की अपेक्षा भीड कम थी। रथयात्रा के समय सामान्यत: बरसात होती है जिसे अमी छांटणा यानि की अमृत बरसना कहते है। पर इस बार अमृत नही बरसा। रथयात्रा के कुछ दिन पहले से गिरफ़्तारियां शुरु हो जाती है। इस बार तो जगन्नाथ मंदिर में से ४० जेबकतरें पकडे गये। इसमे से १० तो महिलाए थी!

यात्रा की एक झलकी,




Sunday, July 15, 2007

प्रतिभाजी हमारे गुजरात की

प्रतिभाजी आज दोपहर को अहमदाबाद के हवाई दौरे पर आई । पिछले हफ़्ते नही आ पाई थी। अब वो जमाने लद गये जब राष्ट्रपति घर बैठे चुने जाते थे। अब तो उन्हे भी प्रचार करना पडता है। पिछले हफ़्ते अपने आड्वाणीजी और सुष्माजी शेखावतजी के लिये आई थी। शेखावतजी ने तो एक कांग्रेसी विधायक के फ़ोन कर अपना प्रचार भी किया था।

खैर, कांग्रेसियों की बैठक मे दो निर्दलीय विधायकों ने घोषणा कर दी कि उनकी अंतरआत्मा तो बस प्रतिभा प्रतिभा कह रही है। अर्थात ये बंधु अब प्रतिभाजी को वोट देंगे। देखा अंतरात्मा का खेल। उधर अपने कमल ब्रांड भाजपाई बागी विधायकों और सांसदों की अंतरआत्मा से काफ़ी घबराई हुई है।

प्रतिभाजी लगभग दो घंटे लेट आई। पर उनका शाब्दिक स्वागत तो जरूरी था । दाढी वाले विधान सभा मे प्रतिपक्ष के नेता अर्जुन मोढ्वाडिया बोले कि देखो कांग्रेस को देखो। पहली महिला प्रधानमंत्री दी देश को , कांग्रेस अध्यक्षा दी और अब देश को पहली महिला राष्ट्रपति देने जा रही है। महिलाओं के लिये ३३ प्रतिशत की बात तो सब करते हैं, कांग्रेस ने तो ६६ प्रतिशत आरक्षण दे दिया महिलाऒ को। और उन्होने समझाया कि सोनिया गांधी, मनमोहन जी और प्रतिभाजी। हो गये ना ६६ प्रतिशत। वाह अर्जुन जी मान गये आपके कांग्रेस लक्षी बाण को।

खैर फ़िर बारी थी अपने प्रदेश अध्यक्ष भरत सोलंकी की। वो पीछे रहने वालॊ मे थोडे ही है। उनकी फ़ाईटिंग स्पिरिट तो लोगो की चर्चा का विषय है। बोले प्रतिभा जी का जन्म हुआ था बृहद बम्बई मे । उस समय गुजरात बृहद बम्बई का भाग था। इसलिये प्रतिभा जी अपने गुजरात की।

देखी अपने कांग्रेसी नेताओं की क्रियेटीविटी। ऎडवर्ड डि बोनो और टोनी बुज़ान जैसे अंतर्राष्ट्रीय क्रियेटीविटी गुरुओं के लियी भी एक सबक है इनकी भज नेतम शैली।

अहमदाबाद में रथयात्रा की सुरक्षा तैयारीयां

अहमदाबाद में जगन्नाथजी की १३० वी रथयात्रा की तैयारी पुरे जोर शोर से शुरु हो रही है। सोमवार को अहमदाबाद में होने वाली इस यात्रा की सुरक्षा के लिये पुलिस और अर्धसैनिक बल तैनात किये गये है। इन सभी ने शनिवार को रिहर्सल किया।

रिहर्सल की कुछ बोलती तस्वीरें,


पुराने शहर के आस्टोडिया से निकलता पुलिस कारवां


आस्टोडिया में अश्वदल


दरियापुर में गश्त लगाती RAF

Friday, July 13, 2007

डेड सी की नमकीन कीचड से सुंदरता निखारिये

सेंधा नमक पर लिखे लेख की प्रतिक्रियाओं से उठे सवालों का उत्तर खोजते-खोजते हमारे पास काफ़ी जानकारी इकठ्ठी हो गयी है। सोचा अपने साथी ब्लोगरियों के साथ बांट ले।

समुद्री नमक, पहाडी नमक, जमीनी नमक के बारे में तो बताया। उसके साथ काला नमक भी चर्चाया। पर समुद्री नमक के ही कई प्रकार हैं।

मनुष्य के खाने वाला नमक और औद्योगिक उपयोग वाला। मनुष्य के खाने वाले के भी कई प्रकार है। सादा नमक तो आजकल सरकार के कारण लुप्‍तप्राय: ही हो गया हैं। अब जमाना है आयोडीन वाले नमक का। अगर आपको रक्तचाप की समस्‍या है तो है लो सोडियम सोल्‍ट। यदि आप खून की कमी के शिकार है तो आपके लिये हैं आयर्न फ़ोर्टीफ़ाईड सोल्‍ट।

अंग्रेजी दवाओं में भी नमक का उपयोग होता है। पर उसके प्रकार अलग है। दवाओं का मापदंड फ़ार्मोकोपिया द्वारा निश्‍चत होता है। भारतीय और ब्रिटिश फ़ार्मोकोपिया के नमक के मापदंड अलग है।

अपने नमक विशेषज्ञ जामनगर के एन के भारद्वाज का कहना है कि नमक के १३२ उपयोग है। त्‍वचा के सौंदर्य के लिये स्‍पा में नमक का उपयोग होता है। डेड सी जहां के पानी में नमक की मात्रा बहुत अधिक है, वहां समुद्र तल की मिट्टी का व्‍यापार इस सौंदर्यवर्धक गुण के कारण अरबों खरबों रुपयों का है।

गूगल सर्च में यदि हम डेड सी मड लिखे तो २०,६०,००० प्रविष्‍ठियां हैं। प्रतिवर्ष डेड सी क्षेत्र में लाखों लोग इसी लाभ के लिये आते हैं। डेड सी के पानी और कीचड के फ़ायदों में कुछ ये हैं।

यह रक्‍त प्रवाह और त्‍वचा को सुधारती है। इस मिट्टी के कण त्‍वचा की अशुद्वियों और विषाक्‍त पदार्थों को दूर करते हैं। सोराईटिस, एक्‍जाईमा और झुर्रियों की तकलीफ़ में राहत।

त्‍वचा को नैसर्गिक रुप से नमी देती है। मृत त्‍वचा को बहुत ही नरमाई से हटा युवा और स्‍वस्‍थ त्‍वचा को उभारता है।

Thursday, July 12, 2007

गुजरात में न्‍यायिक जांच का गोरख धंधा

मालूम नहीं कि चाणक्‍य को राजनीति का यह फ़ंडा मालूम था या नहीं। आजकल के चाणक्‍यों के लिये तो यह एक बडा ही प्रभावशाली शस्‍त्र है। कुछ भी हो शुरु हो जाते हैं कि न्‍यायिक जांच होनी चाहिए। हाईकोर्ट के जज द्वारा होनी चाहिए।

हमारे मोदीजी को मालूम है कि कांग्रेस उन पर येन केन प्रकारेण कोई जांच ठोक देगी। तो वो खुद ही जांच का आदेश कर देते हैं। गोधराकांड के बाद उन्‍हें जब लगा कि दिल्‍ली सरकार कुछ करेगी, या कोई अदालत कोई आदेश देगी तो उन्‍होंने खुद ही जांच बिठवा दी। उनका नानावटी शाह कमीशन अभी भी जांच कर रहा है।

पर अपने रेलगाडी वाले लालूप्रसाद यादव भी कम थोडे ही हैं। उन जैसा क्रिएटिव ब्रेन तो खालिश भैंस के दूध पीने वालों का ही होता है। उन्‍होंने रेलमंत्रालय की जांच रेल साबरमती एक्‍सप्रेस की पटरी पर चला दी। उनके जस्‍टिस बनर्जी ने तो फ़ैसला भी दे डाला। लालूजी के आदेशानुसार मोदीजी की खाट भी खडी कर डाली।

अब पिछले साल की सूरत की बाढ को लो।बडा हल्ला गुल्ला हुआ था । घर की समस्‍याओं के लिये हाईकोर्ट के जज की नई नई नौकरी को छोड देने वाली सुज्ञा भट्ट को मोदीजी ने न्‍यायिक जांच सौंप दी। कहा कि निवृत हाईकोर्ट जज जांच करेंगी। दिसम्‍बर तक में दूध का दूध पानी का पानी कर देंगी।

गुजरात के वकील (भाजपाईयों के सिवाय) आज तक यह नहीं समझ पाएं कि सुज्ञाजी निवृत हाईकोर्ट जज कैसे हुई। भई जब जज के पद का प्रोबेशन ही पूरा नहीं किया तब वो जज कैसे बनी। खैर हमारे मोदीजी के कायदा आजम अशोक भट्ट के लिये तो वो हाईकोर्ट वाली जज ही थी।

सुज्ञाजी क्‍या कर रही हैं किसी को नहीं मालूम। अपने कांग्रेसियों ने एक सिटीजन जांच करवाई थी। गुजरात हाईकोर्ट के निवृत जज आर ए महेता द्वारा। उन्‍होंने दो दिन पहले २६० पन्‍नों की रिपोर्ट भी दे डाली। तब लोगों को मालूम पडा कि ऎसी कोई जांच हुई है।
सुज्ञाजी की घोषणा हुई, पर वो गायब हो गई। महेता साहब के बारे में लोगों को तब मालूम पडा जब उन्‍होंने उनकी जांच रिपोर्ट दी।

मोदीजी के प्रवक्‍ता चीख-चीख कर कह रहे हैं कि ये बेईमानी है। कहना है तो सरकारी जांच में कहो। ये प्राईवेट जांच का गोरख धंधा गलत है। कांग्रेस के हसमुख पटेल का कहना है कि हमने सरकार को उसका पक्ष रखने को कहा था अब हम सुज्ञाजी को रिपोर्ट भिजवा देंगे। उनका काम आसान हो जायेगा !

शेखावतजी का गुजरात में टेलीफ़ोन चुनाव प्रचार

आजकल राष्‍ट्रपति पद के लिये अपने भैरोसिंह शेखावतजी का प्रचार गुजरात में जोर शोर से चल रहा है। छोटे छोटे बच्‍चों को भी मालूम पड गया है कि शेखावतजी राष्‍ट्रपति पद का चुनाव लड रहे हैं।
वो किस दल से हैं वो किसी को नहीं मालूम। हां वो उपराष्‍ट्रपति पद पर तो भगवा कमल के रुप में ही खिले थे। रविवार को अपने आडवाणीजी और सुष्‍मा दीदी उनका प्रचार करने आए थे। उनके भाजपा के विधायक ही अब अन्‍तर आत्‍मा की आवाज पर वोट डालने की बात कर रहे हैं। भाजपाई इस अन्‍तरआत्‍मा की आवाज को क्रोस वोटिंग समझ रहे हैं।
खैर अपने शेखावतजी कोई चान्‍स नहीं लेना चाहते। आडवाणी वगैरह का क्‍या भरोसा? चुनाव में खडा करवा दिया और बाद में कहा कि ये तो निर्दलीय। बेचारों ने पूरी जिन्‍दगी भगवा ओढा और वो भी पार्टी पोलिटिक्‍स में छीन लिया अपनों ने ही।
तो उन्‍होंने खुद का प्रचार खुद करना शुरु किया है। कांग्रेस के कड़ी के विधायक बलदेवजी ठाकोर का कहना है कि शेखावतजी ने उन्‍हें खुद फ़ोन कर कहा कि ठाकोर उन्‍हें मत दें।
ठाकोरजी का कहना है कि शेखावतजी को उन्‍होंने बता दिया कि वे तो प्रतिभाजी को मत देंगे। आखिर पार्टी के वफ़ादार जो ठहरे। उधर से, ठाकोर का कहना है, शेखावत बोले प्रतिभा तो बेकार है। मैं तुम्‍हारा काम करुंगा। सही बात है, भारत में हर सरकारी काम राष्‍ट्रपति के नाम पर ही तो होता है। ठाकोर ने मोबाईल में शेखावत का फ़ोन नं ०११२३०२२३२१ स्‍टोर भी कर लिया है।
अपने दाढी वाले विपक्ष के नेता अर्जुनभाई ने ठाकोर-शेखावत संवाद मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि शेखावतजी तो यह बहुत गलत कर रहे हैं। पहले कुर्सी छोडे फ़िर कुर्सी के लिये प्रचार करें।

Wednesday, July 11, 2007

गुजरात विद्यापीठ को गांधी मिल गया

महात्‍मा गांधी द्वारा स्‍थापित गुजरात विद्यापीठ को आखिरकार उसका कुलपति बनने के लिए एक गांधीवादी मिल ही गया। ये हैं गांधीजी के सेक्रेटरी महादेव देसाई के पुत्र नारायण देसाई।
एक बात साफ़ है कि इस किस्‍से में बंगाल के गर्वनर गोपालकृष्‍ण गांधी जैसा कोई चक्‍कर नहीं पडेगा। गोपालकृष्‍ण गांधीजी के पौत्र हैं। उन्‍होंने कुलपति बनना स्‍वीकार कर लिया था, पर उसके बाद उन्‍हें मालूम पडा था कि वो तो गुजरात विद्यापीठ के कुलपति बनने के लायक गांधीवादी नहीं हैं।

देसाई तो गांधीकथा कहते हैं। शहर शहर जाते हैं और कथाकारों की तरह गांधी कथा कहते हैं। उन्‍होंने गांधी को आम आदमी तक लोककथा शैली से पहुंचाने का बीडा उठाया है। वो काफ़ी सफ़ल हो रहे हैं। उनकी कथाएं बुध्धिजीवियों और अन्‍य को काफ़ी आकर्षित कर रही हैं। वे २००२ के दंगों के बाद से यह गांधी कथा कर रहे हैं।

१९२४ में जन्‍में नारायण देसाई गांधीआश्रम और वर्धा के सेवाग्राम में गांधीजी और उनके साथियों के साथ ही बडे हुए हैं। दक्षिण गुजरात के वेडछी में अपना कार्यक्षेत्र शुरु करने वाले नारायण देसाई ने विनोबा भावे के साथ भी काफ़ी काम किया। उन्‍हें उनके पिता महादेव देसाई और महात्‍मा गांधी की जीवनी लिखने के लिये साहित्‍य अकादमी का अवार्ड भी मिला है।
विध्यापीठ मे हर रोज सभी को प्रार्थना मे भाग लेना और चर्खा कातना अनिवार्य है। इसके बावजूद यह एक हकीकत है कि गांधी के मूल्य इन छात्रो मे नही उतर रहे हैं । आशा है कि नारायण देसाई की रामकथा विध्यापीठ के छात्रों को गांधी के मार्ग पर चलायेगी।

अब मोदी और गुजरात जिन्‍ना विवाद में

लालकृष्‍ण आडवाणी के बाद उनके शिष्‍य गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी जिन्‍ना विवाद में फ़ंस रहे हैं। इसके केन्‍द्र में है राज्‍य सरकार के पाक्षिक गुजरात में जिन्‍ना की प्रशंसा करता हुआ लेख- जिन्‍ना का खास दोस्‍त हिन्दू था।

यह लेख जून १६ के अंक में छपा था। और यदि सरकार के दावे पर विश्‍वास करें तो गुजरात का सरकुलेशन दो लाख से अधिक है। यह इस पाक्षिक में छपता है। यह कहता है कि गुजरात यानि कि सरकार का नहीं, साडे पांच करोड गुजरातियों का "गुजरात" है। पर यह बात अलग है कि यह विवाद इस समाचार के एक अंग्रेजी अखबार मे ६ जुलाई के छपने के बाद हुआ । यह अखबार दो लाख नही बिकता।

इस लेख में कहा गया है कि हिंदू नेताओं ने जिन्‍ना से संबंध काट दिए थे, इसलिए उससे किसी भी प्रकार के संवाद के रास्‍ते बंद हो गये। जिन्‍ना इससे बहुत ही व्‍यथित और कटु हो गये।

लेखक गुणवंत शाह ने जिन्‍ना के एक करीबी "दोस्‍त" कानजी द्वारकादास का उल्‍लेख करते हुए कहा है कि जिन्‍ना के आत्‍म सम्‍मान को ठेस पहुंची थी और इसलिए वे कटु हो गये और उनके आसपास अविश्‍वास का वातावरण हो गया।

विहिप नेता प्रवीण तोगडिया ने तो जिस दिन इस लेख की रिपोर्ट एक अंग्रेजी अखबार में छपी उसी दिन उसकी भर्तत्‍सना की थी। मौका नहीं चूकते हुए विपक्ष के नेता ने भी इस लेख के लिए मोदी पर बंदूके तानी है।

पाक्षिक के एक्‍जीक्‍युटिव एडीटर सुघीर रावल का इस विषय में बहुत औपचारिक जवाब है कि ये लेखक के अपने विचार हैं। क्‍या यह इतना आसान है? क्‍या किसी कांग्रेसी नेता या आम आदमी द्वारा मोदी के विरुद्ध लिखे गए लेख पर भी क्‍या उनका यही रवैया होगा?

देखे इस चुनावी वर्ष मे किसे क्या फ़ायदा होता है।

Tuesday, July 10, 2007

पूजा के प्रतिरोध का फ़िल्‍मी प्रतिरोध

अभी जहां पूजा के प्रतिरोध का चर्चास्‍पद विवाद पराकाष्‍ठा पर है, राजकोट की एक और महिला विरोध में पूजा के रास्‍ते पर दौडी। हम नक्‍शे कदम तो नहीं कहेंगे क्‍योंकि ये बहनजी पूरे कपडे पहने हुए थी।
इनका नाम है काजल जोशी। सुना है फ़िल्‍मों में जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रही है।
जैसा कि फ़िल्‍म वाली बहनजियों के किस्‍से में होता है, इनके विचार भी इनकी अम्‍मा ने मीडिया को बताए।उनका कहना है कि काजल काफ़ी संवेदनशील है। अम्‍मा का कहना है कि पूजा की अर्धनग्‍न दौड से हुए भारतीय संस्‍कृति के नुकसान से काजल इतनी दुखी हुई कि वह उसका प्रतिरोध करने के लिए मशाल ले उसी रास्‍ते पर दौडी। साफ़ है कि काजल को सुर्खिया तो मिली पर उतनी नहीं जितनी पूजा को मिली थी।

उधर पूजा के ससुराल वाले भी मीडिया कांफ़्रेस कर रहे है कि पूजा बदचलन है। चौहान के साथ शादी के पूर्व उसकी दो शादी हुई थी। उसका तथ्‍य उसने चौहान परिवार से छुपाया था।

पूजा के ससुराल वालों के विरुध्ध पुलिस ने सुबह कार्रवाई की थी, इसके बावजूद वह शाम को दौडी थी। इस मुद्दे पर काफ़ी विवाद है। यह तथ्‍य एक हकीकत है। यह भी हकीकत है कि उसे नंगी दौड लगाने का आईडिया देने वाले मीडिया के लोग ही थे। सुना है कि मुख्यमंत्री ने राजकोट के कमिश्नर नित्यानंद को इस मुद्दे की जांच करने को कहा है।

पर मुद्दा यह है कि इस मूर्खता के लिये उस पर किसी प्रकार की कोई जोर जबरदस्‍ती नहीं थी। और अगर उसने किसी लालच के लिये ऎसा किया था तब वह इसके लिये और अधिक जवाबदार थी।
अपने २६ वर्षों के पत्रकारिता के कैरियर में मैंने यह देखा है कि लोग सुर्खी में आने की कला में उत्तरोतर दक्ष होते जा रहे हैं। वे मीडिया की समाचार की व्‍याख्‍या को उनकी जरुरत के अनुसार बडे प्रेम से भुना लेते हैं। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है काजल जोशी।
राजकोट में वह उसी रास्‍ते पर दौडी जिस पर पूजा दौडी थी। क्‍यों? एक विवाद में कूदी। क्‍यों? साफ़ है कि फ़िल्‍मी क्षेत्र में संघर्ष करने वाली युवती को इस विवाद में लोगों में नाम कमाने का रास्‍ता, सुलभ और प्रभावशाली तरीका दिखा।
अपने पहले चिट्‍ठे में मैंने यह बतलाय था कि किस तरह एक वरिष्‍ठ पत्रकार ने चैनल को गाली बक खुद वाह वाह बटोरी थी। इससे भी गंभीर बात यह थी कि इस कांड का "ब्रेन" उन्‍हीं के अखबार का पत्रकार था। सभामंडप में कह देते कि दुख की बात है कि उनका अपना पत्रकार ही पूजा चौहान दौड का भेजेबाज था।
मित्रों, मीडिया को जिम्‍मेदाराना ढंग से काम करना चाहिए। इसके बावजूद ऎसी घटनाएं होंगी। क्‍योंकि छ्पात रोग का कोई ईलाज नहीं है !!!

मोदी को हराने के लिये कांग्रेस अंकल साम की शरण में

गुजरात में इस वर्ष होने वाले विधानसभा के चुनावों पर पूरे हिन्‍दुस्‍तान की नहीं दुनिया की नजर है। चुनाव का केन्‍द्र अपने मोदीजी ही हैं।

पिछ्ली बार तो उनकी गाडी गोधरा कांड की आग से पूरी तेज गति से चल पडी थी। इस बार उनका नारा विकास का नारा है ( अभी तक तो है)। चुनाव के आखिरी दिनों में यह ऊंट (कहावत वाला) कहां बैठता है यह तो शायद ऊंट को भी नहीं मालूम।

खैर अपने कांग्रेसी पूरा जोर लगा रहे हैं, मोदीजी को हराने के लिये। शायद ही कभी चुनाव के एक वर्ष पूर्व चुनावी बिगुल और युध्ध के ढोल ताशे बजे होंगे। आखिरकार मोदीजी को हराना मतलब हिन्‍दू ताकत को खत्‍म करना। भाजपा के एक मात्र बचे हुए हिन्दू चेहरे को मिटाना।

अपने कांग्रेस के प्रतिपक्ष के नेता, मोदीजी की तर्ज की दाढी वाले अर्जुन मोढवाडिया, युवा शक्‍ति का नेता बने रहने में मशगूल प्रदेशाध्य्क्ष भरत सोलंकी एडी चोटी का जोर ही नहीं दिल्‍ली से अमरीका तक की दौड भी लगा रहे हैं। किसी तरह से भी मोदी की छुठ्ठी कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया लें। वो कभी साईकल पर पोरबंदर तक गांधीगिरी करने जाते है तो कभी आदिवासियों के साथ मोदी सरकार पर तीर कमान खींचते हैं।

भैय्‍ये बार बार अपनी सोनियाजी को बुला लाते हैं। अगर वो नहीं आती तो उनके राजनीतिक सलाहकार अपने गुजरात के अहमद पटेल को बुला श्रोताओं को उनके कुछ शेर सुनवा देते हैं।

अब तो वो अमरीका से साम अंकल की मदद ले रहे हैं। अरे साम अंकल यानी कि अपने सत्‍यनारायण गंगाराम पित्रोडा । जब तक हिन्‍दुस्‍तान में थे तब तक वे सत्‍यनारायण गंगाराम पित्रोडा ही थे। अमरीका जाते ही वे साम पित्रोडा हो गये। कहा है ना कि रोम में रोमन की तरह रहे। अमरीका में अपने सत्‍यनारायण भैय्‍या ने तो नाम भी अमरीकी रख लिया और साम हो गये। वे अपने भरत और अर्जुन को ऎसा गुजरात बनाने का गुर बतायेंगे कि गुजरात के लोग गुड पर मधुमख्‍खी की तरह भनभनाते हुए बैलेट बोक्‍स में केवल पंजे से पंजा मिला जीत की तालियां बजायेंगे।

मालूम है वो क्‍या करेंगे। वो गुजरात कांग्रेस के लिये मैनीफ़ेस्‍टो यानि कि चुनावी घोषणापत्र बनायेंगे।

मित्रों साम भैय्‍या को कम मत समझना। वे भारत के नोलिज कमीशन के अध्‍यक्ष हैं। शंकरसिंह वाघेला ने गुजरात के ज्ञानियों का जो दरबार रचा था उसके एक मंत्री थे। उसके बाद कई सरकार आई पर वह दरबार ही नहीं लगा। पर अपने सत्‍तू भैय्‍या उर्फ़ साम काका (अंकल को गुजराती में काका कहते हैं, पंजाबी वाला काका नही) गुजरात के चुनावी क्षितिज पर उभरेंगे। वेलकम अंकल साम।

Monday, July 9, 2007

चंद्रशेखर और गुजरात का फ़ाफ़डा

चंद्रशेखरजी का गुजरात से बहुत गहरा नाता था। गुजरात की राजनीति मे बहुत से एसे लोग मिलेंगे जो चंद्रशेखरजी के बारे मे व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर घंटों बातें कर सकते है ।
चन्द्रशेखरजी खाने खिलाने के शौकीन थे। गुजरात का फ़ाफ़डा उनका सबसे प्रिय नाश्ता था। यहां आ सबसे पहले फ़ोन करते उनके चहेतों की चौकडी को - कांग्रेस के हाल के प्रवक्ता जयंतीलाल परमार , पूर्व पार्षद रोहित पटेल और दिनेश वक्ता और मजीद शेख। और ये सब सर्किट हाउस मे हाजिर हो जाते उनके प्रिय फ़ाफ़डा और चटनी के साथ।
अपने चिठ्ठाकार मित्रों को बता दे कि फ़ाफ़डा इतना लोकप्रिय है गुजरात मे कि रोज लाखों रुपयो का फ़ाफ़डा खाया जाता है। दशहरा के दिन तो हर घर मे फ़ाफ़डा खाया जाता है। जगह जगह फ़ाफ़डा और जलेबी बिकता है । करोडों का फ़ाफ़डा जलेबी खाया जाता है। फ़ाफ़डा बेसन का बनता है और तेल मे लम्बी लम्बी पट्टिया तली जाती हैं।
जयन्तिलाल परमार और रोहित पटेल के लिये चंद्रशेखर की मृत्यु औरो की अपेक्षा अधिक दुखदायी घटना है। चंद्रशेखर की मृत्यु से एक दिन पहले ही, शनिवार को, दिनेश वक्ता की मृत्यु हुई थी । मजीद शेख की मृत्यु कुछ वर्ष पूर्व एक सडक हादसे मे हुई थी।
जयन्तिलाल परमार एक रसप्रद किस्सा बताते हैं। एमरजेंसी के दौरान चंद्रशेखर तत्कालीन गृहमंत्री अशोक मेहता के आदेश पर गिरफ़तार कर लिया गया। उनके दोनों पुत्र छोटे थे। अशोक मेहता ने उन दोनों बच्चों को अपने घर रख लिया। और बाद में राजकपूर की हिंदी फ़िल्म की तरह अशोक मेहता की एक पुत्री की चंद्रशेखर के पुत्र पंकज के साथ शादी हो गई।
हमारे जयन्तिलाल ने कहा कि वह जमाना राजनीतिक सहिष्णुता का था।

गुजरात भाजपा में आ बैल मुझे मार

चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

पिछले कुछ महिनों से गुजरात भाजपा यादवास्‍थली बन गई है। कौन क्‍या है यह तो नहीं मालूम पर बागी भाजपाई लालकृष्‍ण आडवाणी को खुल कर धृतराष्‍ट्र पुकार रहे हैं। नरेन्‍द्रमोदी के मोह में अंधे धृतराष्‍ट्र। पर हम ईमानदारी से कहें कि हमारे मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदीजी के लिये अभी कोई प्रचार पात्र नहीं चुना गया है।

बागी अपने को बहुसंख्‍यक बतलाते हैं। पर, अगर प्रदेशाध्‍यक्ष पुरुषोतम रुपाला की बात माने तो वे पौने पांच साल में पांच के साडे पांच नहीं हुए हैं। पर उन्‍होंने उन्‍हें कभी पांडव नहीं कहा। कहें भी कैसे? यदि बागी पांडव बने, तो बाकी सब कौरव। आडवाणीजी तो धृतराष्‍ट्र घोषित ही किये जा चुके हैं। अब दुर्योधन की घोषणा होनी बाकी है।

हर रोज बागियों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। पहले अपने मुख्‍यमंत्रीजी को ही गाली बकते थे। प्रचार के भूखे, भाजपा को खत्‍म करने वाले और हिटलर जैसी अभिव्‍यक्‍तियों का उपयोग करते थे। अब तो धीरु गजेरा खुल कर आडवाणी को धृतराष्‍ट्र कह रहे हैं।

पिछ्ले तीन साल में तीन विधायकों को निलम्‍बित और कुछ और को पार्टी से निकाल देने वाले नेता चुपचाप छाती पर वार सह रहे हैं। रुपालाजी का कहना है कि असंतुष्‍ट कांग्रेस और एनसीपी दोनों से सौदेबाजी कर रहे है और वे चाहते हैं कि उन्‍हें भाजपा दल से खदेडे। इससे वो अपना मार्केट बढाना चाहते हैं। उनकी भाषा में बागी पार्टी से निकाले जानेका टाईटल क्लीयरन्स सर्टीफ़िकेट की जुगाड में है।

इधर अपने मोदीजी का गुट भी सुर्रे छोडता रहता है वह भी चाहता है कि ये पांडव चालू रहें। उनका मानना है कि इससे लोग उन्‍हें परख लेंगे। खुद ही थक कर खतम हो जायेंगे।

कुछ दिन पहले बावकूभाई उधाड को नोटिस ठोक दिया था। कल अमरेली में मोदीजी के विश्‍वस्‍त दिलीप संघाणी ने विधायक धीरु गजेरा के भाई पर आरोप लगाया कि उन्‍होंने उन्‍हें फ़ोन पर जान से मार डालने की धमकी दी। इधर बागी कहते है कि मोदी ने केडर बेज्ड पार्टी को प्राइवेट लि. कंपनी बना दिया है।

गुजरात में लोग आजकल शंकरसिंह वाघेला को याद करते है। कोई शोर शराबा नही। ले गये विधायको को काम कला कृति के लिये मशहुर खजुराहो के मंदिर दिखलाने और कर दिया केशुभाई सरकार का काम तमाम। यहा तो महीनो से युध्ध वृंद बज रहे है, नतीजा कुछ भी नही।

दोनों पक्ष लगे हुए कि कैसे अगला उन पर वार करे। बागी इस्‍तीफ़ा दे अपनी राह चुन सकते हैं पर वे डटे हुए है। मोदी गुट उन्‍हें बाहर निकाल आडवाणी को धृतराष्‍ट्र बनने से बचवा सकता है, पर वह भी कह रहा है आ बैल मुझे मार। किसी दिन कोई बैल तो दूसरे को मार ही देगा। सभी को इन्‍तजार है कि कौन किसको मारता है।

Sunday, July 8, 2007

पूजा के प्रतिरोध मे मीडिया की नग्नता

मै पिछले कुछ दिन से सोच रहा था कि पूजा के प्रतिरोध मे मीडिया की नग्नता के बारे मे लिखू । कुछ देर पहले मसिजीवी का चिठ्ठा पढा। सो अब वो लिख रहा हूं जो आपको किसी अखबार मे पढने को नही मिलेगा । इससे पहले यह स्पष्ट कर दू कि मै पूरी तरह से यह मानता हू कि पूजा चौहान हमारे समाज की पुरूष केंद्रित सोच का शिकार है। गुजरात मे सौराष्ट्र ऎसा क्षेत्र है जो पूरे गुजरात मे धार्मिक क्षेत्र के रूप मे जाना जाता है, पर आर्थिक और क्षैक्षिक रूप से अन्य क्षेत्रो से बहुत ही पिछडा हुआ है ।
वास्तव मे यह सारा नग्नता का खेल कुछ पत्रकारों का है जिसमे एक प्रतिष्ठित अखबार के पत्रकार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है । हाल मे एक राष्ट्रीय परिसंवाद मे इस अखबार के वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि यह बहुत ही शर्मजनक घटना है और यह सब एक चैनल पत्रकार ने अपनी स्टोरी बनाने के लिये पूजा को उकसा कर किया । उन्होने कहा कि पूजा को दो साल के संघर्ष के बाद न्याय मिल रहा था, पर चैनल पत्रकार की स्टोरी नही बन रही थी। इसलिये उस पत्रकार ने उसे इस नग्न दौड के लिये उकसाया । संघर्ष से थकी पूजा हर तरीका आजमाना चाहती थी और इसलिये उसने नग्न दौड का दांव भी आजमा देखा ।
हमारे इस पत्रकार मित्र ने परिसंवाद मे पत्रकारिता के इस रूप के लिये माफ़ी मांगते हुए कहा कि एसी पत्रकारिता बहुत खराब है। हाल मे काफ़ी तालिया बजी। मंच संचालन मे लगे एक प्रमुख चैनल पत्रकार ने स्पष्ट्ता की कि वो हमारी चैनल नही थी । कुछ देर मे कार्यक्रम समाप्त हो गया ।
इस वरिष्ठ पत्रकार मित्र के पास कुछ चैनल पत्रकार मित्र गये। उसमे से एक ने कहा कि मित्र सुना है कि पूजा को उकसाने वाला पत्रकार आपके अखबार का ही था। अपने इन मित्र ने तुरंत जवाब दिया, तभी तो मै इतना अधिक जानता हूं ! चैनल पत्रकार भी एक दिग्गज चैनल से थे। क्या करते ? श्रोता तो भोजन के लिये जा रहे थे। फ़िर बोले तभी पहले दिनो मे आपका अखबार ही इसे चमका रहा था । वो यह हक़ीक़त किसे बताते कि वाह वाह लूटने के तरीके हजार है, सच जाये भाड मे !!!

Saturday, July 7, 2007

जब चिठ्ठा चोरी हो जाये

श्रीश जीं का चिठ्ठा चोरी वाला चिठ्ठा पढा उस पर टिप्पणिया भी पढी चोरी के सकारात्मक पहलू को जान मेरी सोच काफी विकसित हुई चोरी अच्छी चीज की ही होती है आप को भी मालूम होगा की कई जगह आयकर के छापे पडना , दिवाला निकलना जाति मे अच्छी बात मानी जाती है । आपके किस्से मे तो एक नंबर के बुद्धीधन की चोरी हुई है , वह भी टयुटोरियल क्लास वाले द्वारा । शुध्ध २४ केरेट का माल है आपका ।

खैर, मै आप सभी को एक ऎसी वेबसाईट के बारे मे बताना चाहता हू, जहा से आप यह ध्यान रख सकते हैं कि आप का माल कहां कहां से उठाया गया है । जैसा कि अधिकअतर व्यवसायिक वेबसाईटो मे होता है, यहां भी थोडी सेवा मुफ़्त होती है, बाकी की सेवा प्रीमियम सेवा के नाम से पैसे से होती हैं ।
यह वेबसाईट है

http://copyscape.com/

आप गूगल मे Digital Millennium Copyright Act लिख सर्च मारे तो आपको कापीराईट के विषय मे उसे बचाने के लिये काफ़ी उपयोगी जानकारी मिल सकती है । DMCA की मदद से आप ऎसी वेबसाईट को सर्च ऎंजिन से निकलवा सकते है और अन्य कार्यवाही कर सकते है।

अच्छी खबर भी कोइ खबर है

आजकल मीडिया को गाली ही सुनने को ही मिलती है मीडिया एक ऐसा शब्द है , जव आम भाषा मे ही नही , आम आदमी के जुबान मे भी रम गया है । हमे हमारे बचपन का किस्सा याद आता है रेलवे इन्स्टीट्युट मे हर हफ्ते पिक्चर हुआ करती थी मुफ़्त के पास पर सब देखने आते थे । नाच गाने के दृश्यो पर मुई कैसी है, इसको लाज शर्म नही है ... । पर हर बार भीड़ हमेशा जैसी ।
बस मीडिया की भी यही हालत है । लोग जब देखो तब कोसते ही रहते हैं। इसमे अपने मोदीजी अकेले नही है। फ़िर भी लोग टी वी पर शाम को चिपके रहते है । ऎसे हजार किस्से लिख सकते हैं । पर यहां हम बात कर रहे है आज के एक सेमीनार की । सेमीनार का विषय था ब्रोड़कास्टिंग बिल । ओपन सेश्न मे सवाल जवाब थे । लगभग सभी सवाल मीडिया के बारे मे थे , बिल के बारे मे नहीं ।
किसी ने कहा मीडिया को कुछ अच्छा नही दिखता । एक ने सवाल दागा, गुजरात के बारे मे खराब क्यो लिखा या दिखाया जाता है ? इसके साथ लम्बी टिप्पणी भी कर डाली । सवाल पूछना भी एक विशेषता है । अच्छे अच्छे विद्वान भी सही सवाल नही पूछ सकते । इसीलिये तो कहते हैं कि कोई व्यक्ति उसके सवाल से जाना जाता है, जवाब से नही । खैर , अपने प्रकाश शाह ने बिल्कुल सही टिप्पणी । ये सब अच्छे सुझाव है, हम इन्हे सुझाव के रूप मे हमारे दस्तावेज मे रखेंगे !
प्रसार भारती के पूर्व सी ई ऒ के एस सर्मा का जवाब था कि आप सब जानते हैं कि नो न्यूज इज गुड न्यूज तो गुड न्यूज इज नो न्यूज। सही बात है सर्मा जी । उन्होने उदाहरण दे बताया कि लोग कैसे गुड न्यूज के लिये कहते है की इसमे क्या और बेड न्यूज सुनते ही और जानने को उत्सुक हो जाते है । हमारा तो अनुभव है कि सत्ता मे लोग अपने बारे मे अच्छी और औरों के बारे मे खराब न्यूज सुनना चाहते हैं । इसीलिये गुड न्यूज इज नो न्यूज।

किस्सा सेंधा नमक और काला नमक का

सेंधा नमक पर लिखे गये लेख ने अपने ब्लोगर बंधुओ मे काफ़ी उत्सुकता जगायी थी। जैसा कि हमने लिखा था, वैद्य मुकेश पानेरी ने हम लोगो के लिये सेंधा नमक और काला नमक के गुणधर्म लिख भेजें है। उन्होने काला नमक बनाने की आयुर्वेद की विधि भी लिख भेजी है । हम यह विधि इसलिये लिख रहें हैं क्योकि जामनगर के नमक विशेषज्ञ भारद्वाज जी का कहना है कि काला नमक सेंधा नमक की तरह केवल प्राकृतिक रूप मे ही होता है । हमारा यह लेख था नमक खाओ तो सेंधा नमक खाओ ।

सेंधा नमक

सेंधा नमक को लाहोरी नमक भी कहा जाता है, क्योकि यह पाकिस्तान मे अधिक मात्रा मे मिलता है । यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है। यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं। रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है। यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है । दस्त, कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।

सेंधा नमक के विशिष्ठ योग

हिंगाष्ठक चूर्ण, लवण भास्कर और शंखवटी इसके कुछ विशिष्ठ योग हैं ।

काला नमक

यह भी ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, वायु शामक है । पेट फ़ूलने की समस्या मे मददरुप है। इसके सेवन से डकार शुध्ध आती है और छोटे बच्चो की कब्ज की समस्या मे इसका उपयोग होता है ।

काला नमक बनाने की विधि

काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार सम प्रमाण मे ले। साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है। इस मिश्रण को पानी मे घोलें । अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें । अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है ।

Friday, July 6, 2007

वड़ोदरा के पणीकर की अहमदाबाद मे धुलाई

वड़ोदरा के अपने शिवाजी पणीकर आज अहमदाबाद आये थे । उन्हें क्या मालूम था कि उनके चेले चंद्रमोहन की करतूत का खामियाजा उन्हे एम एस युनिवर्सिटी छोड्ने के बाद भी भुगतना पडेगा। चंद्रमोहन के विवादास्पद चित्रो के कारण उन्हे युनिवर्सिटी से निलंबित कर दिया गया था।


वो अहमदाबाद में अनह्द द्वारा आयोजित एक प्रदर्शन का उदघाट्न करने आये तब २० लोगो के टोले ने उनकी धुलाई की और उनकी कार के कांच तोड दिये। उन्होने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है । पिटाई करने वाले भाजपा और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता थे। ये है बोलती तस्वीरें,







Thursday, July 5, 2007

भारत मे विश्व की फ़ौजों का ओलेम्पिक

प्रसिद्ध ओलेम्पिक की तर्ज सेनाओं का भी खेलों का ओलेम्पिक होता है। चार वर्ष मे एक बार । १९९५ मे इसकी शुरुआत भी ओलेम्पिक की तरह रोम से ही हुई थी। इस वर्ष चौथा ओलेम्पिक हो रहा है । इसके लिये भारत को चुना गया है। हैदराबाद मे अक्टूबर १४ से २१ के दौरान होगा यह।
इसमे १३० देशों की फ़ौजों के ६००० से अधिक खिलाडी भाग लेंगे। इसमे कई ओलेम्पिक खिलाडी भी होंगे । सेलिंग और ट्राईथेलोन को छोड़ बाकी सभी खेल यही होंगे। ये दो खेल मुम्बई मे होंगे । खेल से दोस्ती नारा है इस बार ओलेम्पिक का। इसमे कुल पंद्रह खेल है ।
रोम के बाद यह ओलेम्पिक क्रोशिया और इटली मे हुआ था। इसे वर्ल्ड मिल्ट्री गेम्स नाम दिया गया है और इसका संचालन इंटरनेशनल मिल्ट्री स्पोर्ट कौंसिल द्वारा किया जाता है जो इंटरनेशनल ओलेम्पिक कमीटी द्वारा मान्य है ।

जामनगर के क्रिकेट धुरंधर

भारत की प्रतिष्ठित रणजी ट्राफ़ी और दुलीप ट्राफ़ी जामनगर के राजाओं की याद में हैं। अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट खेलने वाला पहला भारतीय खिलाडी जामनगर से था। वेस्‍ट इंडीज पर भारत की पहली जीत दर्ज कराने वाली टीम में सलीम दुर्रानी की बडी भूमिका थी। अर्जुन अवार्ड पानेवाला पहला क्रिकेटर सलीम दुर्रानी जामनगर से है। आज भी वह जामनगर में ही रहता है।

ये तो सुर्खियां है गुजरात के इस तटीय शहर जामनगर के भारतीय क्रिकेट में योगदान की। आज जब भारत आफ़ीशियल क्रिकेट का ७५वां वर्ष मना रहा है तब जामनगर के उल्‍लेख के बिना सब अधूरा नहीं, बिल्‍कुल बेकार है।

पिछ्ले सौ से अधिक वर्षों से क्रिकेट को पालने पोसने वाला जामनगर का राजघराना आज भी क्रिकेट का एक महत्‍वपूर्ण स्‍थल है। लोग अजय जाडेजा को जानते हैं। वे जामनगर के हाल के जामसाहब शत्रुशल्‍यसिंहजी का भतीजा है।

इन सौ साल में जामनगर ने एक दर्जन अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति वाले खिलाडी दिये हैं तो ५० जितने रणजी ट्राफ़ी प्‍लेयर। जामनगर के एकता डायरी के प्रकाशक दीपक जोबनपुत्र जामनगर के इतिहास को अपनी डायरी में उभारने के लिये प्रख्‍यात है। उनके पास जामनगर की क्रिकेट की रसप्रद घटनाओं का पिटारा है।

वे एक रसप्रद किस्‍सा बतलाते हैं। जिस व्‍यक्‍ति को क्रिकेट की दुनिया वीनू मांकड के नाम से जानती है, उसका असली नाम था मूलवंतराय हिम्‍मतलाल मांकड। जामनगर के जामसाहब के कहने पर उन्‍होंने उनका नाम वीनू मांकड लिखना शुरु कर दिया।

१९७१ में जन्‍मा लेफ़्‍ट आर्म बाऊलर नागर ब्राह्मण था। यह भारत के उन तीन खिलाडियों में से था जो पहले से ग्‍यारहवें खिलाडी तक के सभी स्‍थानों पर खेला। मजेदार बात यह है कि वह राईट आर्म बल्लेबाज था। उसके परिवार के कुछ लोग आज भी जामनगर में रहते है। उनका पुत्र अशोक मांकड भी टेस्ट खिलाडी रह चुका है।

जामनगर ने भारत को छह क्रिकेटर दिए है। यह सभी अपने समय में धुरंधर रहे है। उनके नाम है, प्रिंस रणजीत सिंह और उनका भतीजा प्रिंस दुलीप सिंह, विनु मांकड, सलीम दुरानी, इन्द्रजीतसिंह और अजय जाडेजा। रणजीतसिंह ने १८९६ से १९०२ तक १५ टेस्ट मेच में दो शतक तथा ५ अर्धशतक के साथ ९९५ रन बनाए थे। जबकि उनके भतीजे दुलीप ने १९२९ से १९३१ तक १२ टेस्ट में ३ शतक तथा पांच अर्धशतक के साथ ९९५ रन बनाए थे।

विनु मांकड ने सन १९४६ से १९५९ के दौरान ४४ टेस्ट में पांच शतक और ६ अर्धशतक के साथ २१०९ रन बनाए। सलीम दुरानी १९६० से १९७३ तक टेस्ट खिलाडी रहे। इस दौरान उन्होने २९ टेस्ट में एक शतक और ९ अर्धशतक के साथ १२०२ रन बनाए थे। वे ओलराउंडर थे और उन्होने ७५ विकट लिये थे। इन्द्रजीतसिंह १९६४ से १९६९ तक टेस्ट खिलाडी रहे। इस दौरान उन्होने ४ टेस्ट में कुल ५१ रन बनाए थे। अजय जाडेजा १९५२ से १९९८ तक टेस्ट खिलाडी रहे। इस दौरान उन्होने १३ टेस्ट में ४ अर्धशतक के साथ ५३८ रन बनाए थे।

जब कोई शिकायत न सुने...

RTI यानि कि सूचना अधिकार। इस कानून ने आम आदमी के अधिकारों में क्रांति ला दी है। अब हम हमारी जानकारी पा कर ही रहते हैं। अगर अधिकारी जानकारी न दे तो उसकी खाट खड़ी हो जायेगी, हो रही है।

पर जानकारी का क्या फ़ायदा? मतलब तो काम होने से है। सरकार ने उसके विभिन्न कार्यालयों के लिये सिटीजन चार्टर बना रखे हैं। ये बतलातें हैं कि संस्था क्या करती है। यह यह भी बतलाते है कि कौन क्या काम करता है।

पर इससे अपना काम हो जाये यह जरुरी तो नहीं है। जन्म मृत्यु रजिस्ट्रेशन कार्यालय सूचना अधिकार के तहत यह तो बतलायेगा कि अर्जी कहां है। सिटीजन चार्टर यह बतायेगा कि कौन अधिकारी अर्जी की कौनसी चटनी बनायेगा।

पर मुझे यह सर्टिफ़िकेट मिले इसकी गारंटी क्या? निश्चित समय में मिले इसका कोई प्रावधान नही। जानकारी लेने मात्र से क्या होगा? हाल ही में संसद की एक स्थायी समिति जब दौरे पर निकली तब उसे ऎसे बहुत से किस्से जानने को मिले। लोगो ने शिकायत तो की है पर अधिकारी अपनी पूरी क्रिएटीविटी से उनकी फ़ाईल को टल्ले चढाते रहते है।

गुजरात के दौरे पर आई इस समिति के अध्यक्ष सुदर्सन का कहना है कि अब जन फ़रियाद के निश्चित समय पर निकाल के लिये कानून बनना चाहिये। पर उनकी समिति केवल सिफ़ारिश ही कर सकती है। कानून बनाना सरकार के हाथ में है। समिति जल्द ही उसकी सिफ़ारिश करेगी।

भैये भगवान करे सरकार जल्द ही आपकी राय मान कानून बना दे। करोडो़ को राहत होगी। भगवान तक हम इसलिये पहुंचे कि हमारे हिन्दुस्तान को भगवान ही तो चला रहा है।

Wednesday, July 4, 2007

मोदीजी स्वीटजरलैंड से वापिस आ गये

आप सोच रहे होंगे कि इसमे ऎसी क्या खास बात है ? जब गये थे तो वापिस तो आयेंगे ही। अभी तो गुजरात मे उनका राज चलता है । नही जीं, जिस तरह अपने मोदीजी का जाना एक चर्चा का विषय था उसी तरह उनका वापिस आना भी।
मालूम है, गुजरात की खराब हालत देखते ही मोदीजी जल्दी से वापिस आ गये। यह हम नही कह रहे हैं, उनके राजस्व मंत्री कौशिकभाई पटेल और कृषि मंत्री भूपेन्द्र चूडासमा का कहना है। उन्होने कल बताया था कि लगभग चार घंटे जल्दी आयेंगे।
मोदीजी तो विशेष वायुयान से गये थे। उसका कोई टाईम टेबल तो होता नही । जब दिल करे, उडवा दो। अब चार घंटे के लिये कोई झूठ थोडे ही बोलेगा। देखो भैये, मोदीजी गये थे तीन दिन के प्रवास पर । यानि कि पूरे ७२ घंटे । अब अगर ऎसे मे अपने गुजरात के साडे पांच करोड लोगो के ह्रुदय सम्राट (हम नही कहते, मंत्री और अन्य मोदीजी के भाषण मे कहते हैं ) चार घंटे जल्दी आते हैं तो वह हुआ साडे पांच प्रतिशत । कम है क्या ?
खैर , इधर उनका जहाज उतरा, उधर बारिश बंद । इसे हमारी नानी राजा का सत कहती थी । सूचना विभाग का कहना है इधर जहाज से उतरे उधर हवाई अड्डे पर ही अधिकारियो की बैठक की और दूसरा जहाज पकड वो चल दिये बाढ प्रभावित इलाके का हवाई निरीक्षण करने । भावनगर पर जब उनका जहाज तेल लेने के लिये उतरा तो वहा भी उन्होने प्रभारी मंत्री और अधिकारियों की मीटिंग कर डाली।
ये कांग्रेसी बेकार मे कहते हैं कि मोदीजी के राज मे बस मीटिंग, ईटिंग और चीटिंग ही है । स्वीटजरलैंड से आ बिना टाईम लेग और जेट लेग की चिंता किये अपने मोदीजी दौरे पर निकल गये। मीटिंग बेकार नही करते । अहमदाबाद हवाई अड्डे की मीटिंग के बाद उन्होने घोषणा कर दी कि बरसात से मरने वाले को अब रु ५०,००० की जगह रु एक लाख दिया जायेगा । बरसात मे पिछले साल भी काफ़ी लोग मरे थे । पर समय समय की बात है । ये चुनावी वर्ष जो ठहरा।
अपने मोदीजी सूचना मंत्री भी हैं । उनके विभाग का कहना है कि देखो देखो कैसा समय आया है। बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही मौसम की आधी बरसात हो गयी। देखा मोदीजी के सत का प्रताप । काश एक बारिश मे ही सारी फ़सल पैदा हो जाती । पर उस जमीन का क्या जो इस बरसात मे बिगड गई । नही हमे यह सब नही सोचना चाहिये । यह कांग्रेस के नकारात्मक राजनीति का प्रभाव है । हमे सकारात्मक सोच रखनी चाहिये ।
शाम को कांग्रेस के शक्तिसिंह मिले। पत्रकारो को बोले कि हमारे मंत्री आ रहे थे और उन्हे मालूम पडा कि पाटडी मे कुछ लोग फ़ंसे थे और उन्हे बचाने के लिये हमारे मंत्री उतर गये (आकाश मे नही, हवाई अड्डे पर) । उन्होने उनका हेलिकोप्टर इन लोगों को बचाने के लिये भेज दिया ( अंदाज ऎसा कि वो यान उनका अपना था या फ़िर जेब से पैसा दे किराये पर लिया था) । हमसे रहा नही गया। हमने पूछ ही लिया । भैये हेलिकोप्टर किसका था ? बोले, भारतीय वायु सेना का ।
और जब हम आफ़िस पहुंचे, वहां सूचना विभाग का प्रेस नोट था कि राज्य सरकार ने हेलिकोप्टर की मदद से पाटडी मे पानी मे फ़ंसे लोगो को बचा लिया !
सच तो राम जाने किसका हेलिकोप्टर था और किसने बचाया । हमे तो बस यह मलूम है कि हमारे मोदीजी वापिस आ गये हैं ।

Tuesday, July 3, 2007

बाबू बजरंगी , शिव सेना का गुजरात मे हिंदू चेहरा

सुप्रीम कोर्ट के लफ़डे से लुप्त अपने बाबू बजरंगी अब नये स्वरूप मे अवतरित हुए है। शिव सैनिक के रूप मे! पूरे जोर शोर से। मीडिया की चकाचौंध मे उन्होने दुनिया को अपना नया रूप दिखलाया। और कुछ लिखे उससे पहले हम अपने ब्लागियों की सुविधा के लिये बता दें कि बाबू बजरंगी बंदा कौन है? वैसे बाबू बजरंगी और मेरा हम दोनो का मानना है हिंदुस्तान मे हर कोई बाबू बजरंगी को जानता है।
मालूम है , एक फ़ोन ठोक दिया था थियेटर वालों को और किसी की हिम्मत नही हुई थी परजानिया फ़िल्म बताने की पूरे गुजरात मे। महेश भट्ट भी कूद पडे थे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का झंडा ले। फ़िल्म रिलीज हुए बिना ही परजानिया और राहुल धोलकिया मशहूर हो गये थे पूरे देश में ।
अपने बजरंगी साहब की विशेषता यह है कि जब कभी भी उन्हे लगता है कि कोई हिन्दू लडकी किसी मुसलमान लडके के साथ चली गई तब वे उस लडकी को वापस लाने का उनका धर्म निभा कर ही रहते हैं। ऎसा ही एक धर्म निभाते हुए उनका पंगा सुप्रिम कोर्ट से पड गया और वे लुप्त हो गये। बजरंग दल और विश्व हिन्दु परिषद ने उन्हे गर्म आलू (hot potato वाली अंग्रेजी कहावत ) की तरह उन्हे छोड दिया था। घोषणा कर दी कि हमारा उनसे कोई नाता नहीं।
अपने इस नये अवतार में उन्होने पहला वार उनके गुरु विहिप नेता प्रवीण तोगडिया पर किया। बोले बेकार है उनकी दुकान। वो डाक्टरी करें। वे हिन्दू नेता नहीं है। भाजपा को भी पेट भर गालिया बकी । बोले किसी काम के नही हैं ये लोग । हिंदुऒ के लिये क्या किया है इन्होने ?
वे शिव सेना नेताओं के प्रशंसक है। उनके अनुसार वे बजरंग दल - विहिप की तरह बीच रास्ते में नहीं छोडते। भैये अभी तो सफ़र शुरु किया है। आधा रास्ता तो आने दो।
उनका कहना है कि वें हिन्दु लडकी बचाओ का उनका धर्म निभाते रहेंगे। वे यह काम उनकी नव चेतन ट्र्स्ट द्वारा करते हैं । मालूम है कि उनका सबसे पहला काम क्या होगा? गोधरा कांड के कारण जेल में सड रहे हिन्दूओं का भोजन भिजवाया करेंगे। उन्हे मदद करेंगे। भैये क्या बडे भैया प्रविण तोगडिया ना कह्ते थे इसके लिये?
खैर अब वे गुजरात में शिव सैनिक बन तलवार चलायेंगे मैदाने चुनावी जंग में। कब कैसे इसके बारे में वे बाद में बताऎंगे।
पर एक बात में वे स्पष्ट हैं। नरेन्द्र मोदी उनके नेता हैं। बोले मै तो उनके चरणों में हूं
देखें गदा वाले बजरंगी अब तलवार कैसे चलाते हैं।

Monday, July 2, 2007

नमक खाओ तो सेंधा नमक खाओ

नमक का महत्व कौन नही जानता? सभी को मलूम है कि नमक हमारे शरीर के लिये बहुत जरूरी है। इसके बावजूद हम सब घटिया किस्म का नमक खाते है। यह शायद आश्चर्यजनक लगे , पर यह एक हकीकत है ।

जामनगर स्थित एन के भारद्वाज का कहना है कि भारत मे अधिकांश लोग समुद्र से बना नमक खाते है । श्रेष्ठ प्रकार का नमक सेंधा नमक है, जो पहाडी नमक है । इस नमक से हम सब परिचित है । व्रत के समय इसी नमक का उपयोग होता है । भारद्वाज नमक विशेषज्ञ हैं और नमक उत्पादन से ले नमक आधारित उध्योग मे पिछले ३० वर्ष से हैं।

अहमदाबाद के प्रख्यात वैद्य मुकेश पानेरी कहते है कि आयुर्वेद की बहुतसी दवाईयों मे सेंधा नमक का उपयोग होता है।आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप का भय रहता है । इसके विपरीत सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है । इसकी शुध्धता के कारण ही इसका उपयोग व्रत के भोजन मे होता है ।

सेंधा नमक की सबसे बडी समस्या है कि भारत मे यह काफ़ी कम मात्रा मे होता है , और वह भी शुध्ध नही होता है। भारत मे ८० प्रतिशत नमक समुद्री है, १५ प्रतिशत जमीनी और केवल पांच प्रतिशत पहाडी यानि कि सेंधा नमक । भारद्वाज कहते हैं कि सबसे अधिक सेंधा नमक पाकिस्तान की मुल्तान की पहडियों मे है।

यदि बाजार का सर्वेक्ष्ण करे तो मालूम पडेगा कि समुद्री और सेंधा नमक के दाम मे इतना अधिक अंतर है जिसके कारण लोग समुद्री नमक खरीद्ते हैं । हमने अहमदाबाद बाजार मे जांच की तो मालूम पडा कि समुद्री नमक जहां नौ रु किलो है तो सेंधा नमक का दाम रु ४० प्रति किलो है । सेंधा नमक समुद्री नमक से कम नमकीन होता है । साफ़ है कि इसका अधिक उपयोग करना पडता है ।
और इसीलिये लाख उपयोगी होने के बावजूद लोग इसकी जगह समुद्री नमक से ही चला लेते है ।
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